माना कि हमसे नित्य प्रति भूलें होती हैं। ये हमारे शरीर और मन की भूलें हैं। नित्य दंड पाकर वे इन भूलों की क्षतिपूर्ति भी करते रहते हैं। आत्मा, जो कि हमारी मूल सत्ता है, इन नित्य की भूलों से ऊपर है। वह कभी भूल या पाप में प्रवृत्त नहीं होती। हर बुरा काम करते समय विरोध करना और हर अच्छा काम करते समय संतोष अनुभव करना, यह उसका निश्चित कार्यक्रम है। अपने इस सनातन-स्वभाव को वह कभी नहीं छोड़ सकती।
उसकी आवाज को चाहे हम कितनी ही मंद कर दें, कितनी ही कुचल दें, कितनी ही अनसुनी कर दें, तो भी वह कुतुबनुमा की सुई की तरह अपना रुख पवित्रता की ओर ही रखेगी, उसकी स्फुरणा सतोगुणी ही रहेगी, इसलिए आत्मा कभी अपवित्र या पापी नहीं हो सकती। चूँकि हम शरीर और मन नहीं वरन् आत्मा हैं, इसलिए हमें अपने को सदैव उच्च, महान्, पवित्र, निष्पाप परमात्मा का पुत्र ही मानना चाहिए। अपने प्रति पवित्रता का भाव रखने से हमारा शरीर और मन भी पवित्रता एवं महानता की ओर द्रुतगति से अग्रसर होता है।
हम स्वयं ही कर्त्ता एवं भोक्ता हैं। कर्म करने की पूरी-पूरी स्वतंत्रता हमें प्राप्त है। जैसे कर्म हम करते हैं, ईश्वरीय विधान के अनुसार वैसा फल भी तुरंत या देर में मिल जाता है। इस प्रकार अपने भाग्य के निर्माण करने वाले भी हम स्वयं ही हैं। परिस्थितियों के जन्मदाता हम स्वयं हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति-जन. 1947 पृष्ठ 8
All World Gayatri Pariwar Official Social Media Platform
Shantikunj WhatsApp
8439014110
Official Facebook Page
Official Twitter
Official Instagram
Youtube Channel Rishi Chintan
Youtube Channel Shantikunjvideo