शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

👉 रोशन हुआ कुलदीपक का जीवन

🔵 मेरा भतीजा अमल कुमार पाण्डेय मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव था। साथ ही वह झारखण्ड में मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव एसोसिएशन में सेक्रेटरी भी था। उसकी सभी जगह अच्छी पकड़ थी। १९९८ के अक्टूबर- नवम्बर महीने की घटना है। अचानक उसे हेपेटाइटिस- बी हो गया और धीरे- धीरे बहुत घातक स्थिति में पहुँच गया। उसे राँची के अपोलो अस्पताल में एडमिट किया गया। उसका इलाज बहुत अच्छे तरीके से शुरू हो गया। लेकिन कोई दवा काम नहीं कर रही थी। धीरे- धीरे उसकी हालत बिगड़ती ही रही। उसका लीवर, किडनी, हर्ट सब एक साथ प्रभावित हो गया, जिस कारण वह मृतप्राय स्थिति में पहुँच गया।
     
🔴 हम लोगों ने उसे राँची में ही भारत के विख्यात ब्रेन एण्ड न्यूरो स्पेशलिस्ट डॉ० के० के० सिन्हा को दिखाया। उन्होंने देखने के बाद कोई सकारात्मक उत्तर नहीं दिया। उन्होंने कहा कि लड़का तो ९८ प्रतिशत खत्म हो चुका है। मात्र २ प्रतिशत ही उम्मीद है। वह भी भगवान के हाथ में है। यदि उसे २४ घण्टे के अन्दर प्लेटलेट्स चढ़ाया जा सके तो कुछ उम्मीद बन सकती है, यदि यह २४ घंटे जीवित रह सके।
     
🔵 उन दिनों राँची में प्लेटलेट्स उपलब्ध नहीं था। कलकत्ता से मँगाना पड़ता था। यह बहुत कठिन कार्य था। कहते हैं अच्छी दोस्ती भगवान की कृपा से मिलती है। उसके दोस्तों के अथक प्रयासों से यह कठिनतम कार्य संभव हो सका। जब डॉ० सिन्हा देखकर चले गए तो मैं स्वयं हॉस्पिटल के अधीक्षक से मिला एवं उनसे आग्रह किया कि मैं उसे देखना चाहता हूँ। मैं उसके स्वास्थ्य के लिए भगवान से आधा घंटा प्रार्थना करना चाहता हूँ। उन्होंने मेरा आग्रह स्वीकार कर लिया और मुझे अपने साथ सघन चिकित्सा कक्ष तक ले गए।
 
🔴 मैंने वहीं से एक धुली चादर ली और चादर बिछाकर पालथी मारकर बैठ गया। वहाँ पर एक डॉक्टर तथा दो नर्स उपस्थित थे, जिनकी वहाँ पर ड्यूटी थी। मुझे देखकर वे बोले कि यह तो खत्म हो चुका है। वास्तव में उसकी हालत बिल्कुल खराब होने के कारण वह मृतप्राय हो चुका था। उसकी पेशाब की नली से एक बूँद भी पेशाब नहीं आ रहा था। उसका पूरा शरीर फूल गया था। उसके पूरे हाथ पाँव सुन्न पड़े थे। ऑक्सीजन ने भी काम करना बंद कर दिया था। किसी भी प्रकार की हरकत नहीं हो रही थी। मैं वहीं उसके पैर के पास चादर डालकर बैठ गया तथा दोनों नेत्र बन्द करके सीधे शान्तिकुञ्ज में प्रज्ज्वलित अखण्ड दीप एवं गुरु देव माताजी के चरणों में प्रार्थना करने लगा।
     
🔵 मैं सबसे बेखबर ध्यान में तल्लीन था। लगभग २०- २५ मिनट हुए होंगे। मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसे गुरु देव मेरे कान में कह रहे हैं कि घबड़ाओ नहीं, सब ठीक हो जाएगा। मुझे अखण्ड दीपक की लौ काफी तेज जलती प्रतीत हुई। हम पूरी तरह से ध्यान मग्न हो गए थे, जिससे मुझे अपनी सुध भी नहीं रही। जब ध्यान टूटा तो देखा करीब ५० मिनट हो गया था। मैं हड़बड़ा कर उठा और अधीक्षक महोदय से २० मिनट देर होने के लिए माफी माँगी तथा निवेदन किया कि पुनः एक घण्टे बाद मुझे आने की अनुमति दे दें। उन्होंने बड़े ही सहज भाव से स्वीकृति दे दी। मैं पुनः एक घण्टे बाद उसी स्थान पर बैठकर महामृत्युंजय मंत्र और सूर्य गायत्री मंत्र का गायत्री मंत्र में संपुट लगाकर अखण्ड दीप के समीप होने की भावना करते हुए जप करने लगा। इसके पश्चात् करीब आधे घण्टे के बाद मैंने देखा कि उसे दो- दो मिनट पर एक- एक बूँद पेशाब हो रहा है। मैंने जाकर उसी डाक्टर से यह बात बताई, जिसकी ड्यूटी थी तो उन्होंने फिर वही वाक्य दुहराया। लेकिन मैंने हार नहीं मानी।
     
🔴 मैं वापस घर आ गया और शाम को सात बजे आदरणीया शैल जीजी से फोन पर भतीजे की स्थिति के बारे में सूचना दी। जीजी बोलीं कोई नशा या ड्रग्स लेता था क्या? मैंने बताया कि इन सबकी आदत उसे कभी नहीं रही। वे बोलीं कि स्थानीय गायत्री शक्तिपीठ में माँ के सामने अलग से दीपक प्रज्वलित कर दीजिए। गुरु देव की कृपा से ठीक हो जाना चाहिए। मैं राँची स्थित गायत्री शक्तिपीठ आया और आदरणीया जीजी के कहे अनुसार वैसा ही किया। रात्रि में हम लोग सो गए थे। अचानक उठे तो किसी ने आकर बताया कि अमल को रात भर में ७०० एम एल पेशाब हुआ है। उसके लिए प्लेटलेट्स भी कोलकाता से आ गई थीं, जिसे चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। गुरुदेव माताजी के प्रति श्रद्धा से मेरा हृदय भर उठा। पूरे हॉस्पिटल में यह चर्चा का विषय बन गया था कि आज भी धर्म से व्यक्ति की रक्षा होती है।

🔵 मुझे वहाँ के अधीक्षक महोदय ने भी बधाई दी। क्योंकि मेरे भतीजे की उम्र ३८ वर्ष की थी और उसने ३२ बार उसी हॉस्पिटल में रक्तदान किया था। इस कारण वह हॉस्पिटल के सभी डॉक्टर्स को प्रिय था। मैं तुरन्त उसके पास गया। देखा कि अब वह छटपटा रहा है। उसके पूरे शरीर में हलचल है। ऑक्सीजन वगैरह भी चालू हो गया था। मैंने पुनः एकान्त में बैठकर पूर्व की भाँति जप करना शुरू कर दिया। कुछ घण्टों के बाद वह होश में आ गया। होश में आते ही उसने मुझे देखा। उसके होंठ बोलने के लिए हिल रहे थे। बड़ी मुश्किल से उसके मुँह से ‘बाबू’ शब्द निकला। उसके मुँह से यह शब्द सुनकर मेरा हृदय बाग- बाग हो रहा था। अमल कुमार स्वस्थ हो गया। गुरु की इस असीम कृपा और प्यार को मैं जीवन भर नहीं भूल सकता।                   
  
🌹 उड़िया बाबा जमुई (बिहार)
🌹 अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य पुस्तक से
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Samsarn/won/kuldeep

👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 87)

🌹 जीवन साधना जो कभी असफल नहीं जाती

🔴  हमारे मार्गदर्शक ने प्रथम दिन ही त्रिपदा गायत्री का व्यवहार, स्वरूप-उपासना, साधना, आराधना के रूप में भली प्रकार बता दिया था, नियमित जप-ध्यान करने का अनुबंधों सहित पालन करने के निर्देश के अतिरिक्त यह भी बताया था कि चिंतन में उपासना, चरित्र में साधना और व्यवहार में आराधना का समावेश करने में पूरी-पूरी सतर्कता और तत्परता बरती जाए। उस निर्देशन का अद्यावधि यथासम्भव ठीक तरह ही परिपालन हुआ है। उसी के कारण अध्यात्म-अवलंबन का प्रतिफल इस रूप में सामने आया कि उसका सहज उपहास नहीं उड़ाया जा सकता।

🔵 आराधना का अर्थ है- लोकमंगल में निरत रहना। जीवन साधना प्रकारांतर से संयम साधना है। उसके द्वारा न्यूनतम में निर्वाह चलाया और अधिकतम बचाया जाता है। समय, श्रम, धन और मन मात्र इतनी ही मात्रा का शरीर तथा परिवार के लिए खर्च करना पड़ता है, जिसके बिना काम न चले। काम न चलने की कसौटी है-औसत देशवासियों का स्तर। इस कसौटी पर कसने के उपरांत किसी भी श्रमशील और शिक्षित व्यक्ति का उपार्जन इतना हो जाता है कि काम चलाने के अतिरिक्त भी बहुत कुछ बच सके। इसी के सदुपयोग को आराधना कहते हैं। आमतौर से लोग इस बचत को विलास में, अपव्यय में अथवा कुटुंबियों में बिखेर देते हैं। उन्हें सूझ नहीं पड़ता कि इस संसार में और भी कोई अपने हैं, औरों की भी कुछ जरूरतें हैं। यदि दृष्टि में इतनी विशालता आई होती, तो उस बचत को ऐसे कार्यों में खर्च किया गया होता जिससे अनेकों का वास्तविक हित साधन होता और समय की माँग पूरी होने में सहायता मिलती।

🔴  ईश्वर का एक रूप साकार है, जो ध्यान धारणा के लिए अपनी रुचि और मान्यता के अनुरूप गढ़ा जाता है। यह मनुष्य से मिलती-जुलती आकृति-प्रकृति का होता है। यह गठन उस प्रयोजन के लिए है तो उपयोगी, आवश्यक किंतु साथ ही यह ध्यान रखने योग्य भी है कि वास्तविक नहीं, काल्पनिक है। ईश्वर एक है, उसकी इतनी आकृतियाँ नहीं हो सकतीं, जितनी कि भिन्न-भिन्न संप्रदायों में गढ़ी गई हैं। उपयोग मन की एकाग्रता का अभ्यास करने तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। प्रतिमा पूजन के पीछे आद्योपान्त प्रतिपादन इतना ही है कि दृश्य प्रतीक के माध्यम से अदृश्य दर्शन और प्रतिपादन को समझने हृदयंगम करने का प्रयत्न किया जाए।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/hari/jivan.3

👉 आज का सद्चिंतन 22 April 2017


👉 CHINTAN ( Part 1)

(studying the past-period of self-being): its Significance & Mechanics

🔴 ‘CHINTAN’ simply means an exercise you do when you are exclusively with yourself at some convenient time just to study your past life in a nutshell. Just revisit/review how your own ‘PAST’ has passed. ‘OH! So is not possible to you but you definitely know how to do that when it comes to others’. You are intelligent/clever enough to review your neighbor, your wife and of course your children. What to talk of others, you can even review the BHAGWAN to pinpoint his mistakes. To say, you just do not spare anyone.

🔵 Now no one is left there who is not under your scanner except of course you. But what about your mistakes; you do not review that. Once we review our past-life and life-style and investigate ourselves, we will come to know bulk of such things that should not have been done by us, that should not have been adopted by us.  

🔴 Our mind is so remarkably composed that it very easily & cleverly justifies our every action.  It maintains that our temperament is good, good are habits, good are out thoughts and good is our thinking, well our all is well and of others’ wrong. There is no holdup other than this in spiritual progress. That is why self-review/self-inspection must be your starting point.

🌹 to be continue...
🌹 ~Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 22 April 2017


👉 धर्म का पवित्र प्रवाह

🔵 धर्म तो गंगा का पवित्र प्रवाह है, जिसका स्पर्श अन्तःकरण में निर्मलता का शीतल अहसास जगाता है। अपनी छुअन से औरों को निर्मल करने वाला धर्म खुद मलिन कैसे हो सकता है? वह भला भ्रष्ट किस तरह हो सकता है? विधर्मियों द्वारा पवित्र स्थल, धार्मिक स्थल, धर्म आदि को भ्रष्ट किए जाने की बातें बच्चों का बचपना ही तो हैं। इन्हें सुनकर समझ में नहीं आता कि हँसें या रोएँ। हकीकत में ऐसी बातों से धर्म को तो कुछ नहीं होता; हाँ! अपना अहम् और अपनी स्वार्थी भावनाएँ जरूर जख्मी होती हैं।

🔴 स्वधर्मी और विधर्मी-ये सम्भव ही नहीं। धर्म के विधर्म जैसा कुछ भी नहीं होता। इस दुनिया में सूर्य एक है, धरती एक है तो भला धर्म दो, तीन या पाँच किस तरह हो सकते हैं? वास्तव में अज्ञान और अधर्म के लिए संख्या की कोई सीमा ही नहीं है। जितने चाहो, जितनी तरह के चाहो, उतने गिन लो।
    
🔵 समूचे विश्व में क्या कोई ऐसा भी इनसान है, जो साँस में कार्बन डाइऑक्साइड लेता हो, कानों से देखता हो और आँखों से सुनता हो। है क्या कोई ऐसा मनुष्य? यथार्थ में ऐसा सम्भव ही नहीं। बायें हाथ से लिखने वाले, दायें हाथ से लिखने वाले, ईश्वर में आस्था रखने वाले और ईश्वर में आस्था नहीं रखने वाले मनुष्य मिलेंगे, किन्तु श्वास में प्राणवायु न लेने वाले जीवित मनुष्य कहीं नहीं मिलेंगे। शाकाहारी, माँसाहारी, काले, गोरे, पीले मनुष्य सबने देखे होंगे, परन्तु वे सबके सब साँस में प्राणवायु ही लेते हैं। इसमें विभिन्नता ढूँढने पर भी नहीं मिलती। धर्म भी प्राणवायु है। इसमें जो भेद दिखाई देते हैं, वे इसे ग्रहण करने वालों की शक्ल-सूरत के हैं अथवा फिर अपने अज्ञान से उपजे अधर्म के।
    
🔴 शुद्ध प्राणवायु की ही भाँति शुद्ध धर्म को पाने की कोशिश होनी चाहिए। शुद्ध हवा पाने के लिए हम क्या करते हैं? उसे अशुद्ध करने वाली चीजों को हटाने की कोशिश करते हैं। ठीक इसी तरह धर्म को अशुद्ध करने वाले तत्त्वों को हटा दिया जाय, तो शुद्ध धर्म बड़ी ही सरलता एवं स्वाभाविकता से अपने पास आ जाएगा।
    
🔵 धर्म को अशुद्ध करता है कौन? और कोई नहीं, अपने ही झूठे व्यवहार और अपनी ही झूठी मान्यताएँ। इन झूठे व्यवहारों एवं झूठी मान्यताओं को कैसे पहचाना जाय? इस पहचान का तरीका बड़ा सरल है। इनसान-इनसान के बीच जो भेद खड़ा करे, परस्पर द्वेष पैदा करे, वे सबके सब मिथ्या-झूठ हैं। जरा सोचिए, यह हम ही कर पाएँगे कि मेरे और उसके बीच भेद कौन पैदा कर रहा है, कौन है जो वैर के बीज बोये जा रहा है? यदि ‘ईश्वर’ है, तो सन्देहास्पद है। यदि वह ‘धर्म’ है, तो अधर्म भी है। यदि वह ‘शास्त्र’ है, तो बकवास है।
    
🔴 धर्म विवेक को, हमारी आपकी अन्तरात्मा को जाग्रत् करता है। वह मनुष्य की आत्मश्रद्धा को बढ़ाता है। धर्म का पवित्र प्रवाह बिना किसी भेद-भाव के मनुष्य मात्र के भीतर प्रेम की फसल को उपजाता है। जो इसके विपरीत करता है, वह अवश्य अधर्म है। इसे हर तरह से छोड़कर धर्म के निर्मल प्रवाह का स्पर्श पाने की कोशिश करना ही मनुष्य मात्र का कर्त्तव्य है।

🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹 जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 36

👉 आत्मचिंतन के क्षण 22 April

🔴 भावना हृदय की आन्तरिक वस्तु है। यदि हम झूठे भाव से अपने पारिवारिक सदस्यों के बीच अपनत्व, उदारता और त्याग का भाव प्रदर्शन करना चाहेंगे तो कभी न कभी इसकी सत्यता परिलक्षित हो ही जायगी। तब अन्य सदस्यों का दृष्टिकोण हमारे प्रति कितना गलत हो जायेगा। लोग सशंकित हो जायेंगे। हमारे प्रति अश्रद्धालु हो जायेंगे। इस मर्यादा का पालन आन्तरिक गुण है कि हम परिवार में श्रद्धा के पात्र समझे जायं। यह प्रदर्शन की वस्तु नहीं भावना की वस्तु है।

🔵 सफल, प्रगतिशील विकासोन्मुख और सम्मानित जीवन-यापन करना जिन्हें अभीष्ट हो उन्हें इसके लिए अन्तरंग से छिपे हुए सामर्थ्य बीजों को अंकुरित करने का प्रयत्न करना चाहिए। वे आमतौर से उपेक्षित पड़े रहते हैं, लोग बाह्य साधनों में सफलताओं की सम्भावना एवं कामनाओं की पूर्ति के आधार ढूँढ़ते हैं, पर यह भूल जाते हैं कि वे आधार बाहर नहीं भीतर है जिनसे व्यक्तित्व को विकसित करना सम्भव होता है और सफलताओं के रुके हुए द्वार खुलते हैं।

🔴 किसी प्रकार सफलता प्राप्त करने की नीति बुरी है। अधिक जल्दी और अधिक लाभ प्राप्त करने की धुन में लोग अनैतिक काम करने पर उतारू हो जाते हैं और अपराधियों जैसी गतिविधियाँ अपनाते हैं। सम्भव है उससे आरम्भ में कुछ लाभ भी रहे, पर पीछे वस्तुस्थिति प्रकाश में आते ही वह बालू का महल पूरी तरह धराशायी हो जाता है। निन्दनीय और अप्रामाणिक ठहराया गया व्यक्ति हर किसी की आँखों से गिर जाता है। उसका नैतिक पतन न केवल व्यक्तित्व को ही अवाँछनीय ठहराता है वरन् उसके किये कामों में भी अविश्वसनीयता का ढिंढोरा पीटता है। ऐसे व्यक्तियों को एक प्रकार से सामाजिक पक्षाघात ग्रसित ही कहना चाहिए।

🌹 ~पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 समय का सदुपयोग करें (भाग 15)

🌹 समय जरा भी नष्ट मत होने दीजिये

इस कल से बचने के लिए ही महात्मा कबीर ने चेतावनी देते हुए कहा है।
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब।।

🔴 कल पर अपने कोई भी काम न टालें। जिन्हें आज करना है उन्हें आज ही पूरा करलें। स्मरण रखिये प्रत्येक काम का अपना अवसर होता है और अवसर वही है जब वह काम आपके सामने पड़ा है। अवसर निकल जाने पर काम का महत्व भी समाप्त हो जाता है तथा बोझ भी बढ़ता जाता है। स्वेटमार्डेन ने लिखा है बहुत से लोगों ने अपना काम कल पर छोड़ा और वे संसार में पीछे रह गये अन्य लोगों द्वारा प्रतिद्वन्दिता में रहा दिये गये।’

🔵 समय का ठीक-ठीक लाभ उठाने के लिए आवश्यक है कि एक समय एक ही काम किया जाय। जो व्यक्ति एक समय में अनेकों काम करना चाहते हैं उनका कोई भी काम पूरा नहीं होता और उनका अमूल्य समय व्यर्थ ही नष्ट हो जाता है।

🔴 जो काम स्वयं करना है उसे स्वयं ही पूरा करें। अपना काम दूसरों पर छोड़ना भी एक तरह से दूसरे दिन काम टालने के समान ही है। ऐसे व्यक्ति का अवसर भी निकल जाता है और उसका काम भी पूरा नहीं होता।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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