गुरुचेतना में समाने की साहसपूर्ण इच्छा
शिष्य संजीवनी के प्रत्येक नए सूत्र के साथ यात्रा रहस्यमय होती जाती है। शिष्यत्व निखरता चला जाता है। शिष्य की अन्तर्चेतना का चुम्बकत्व इतना सघन हो जाता है कि उस पर स्वतः ही गुरुकृपा बरसती चली जाती है। गुरुदेव की शक्तियाँ उसमें आप ही समाती चली जाती हैं। कई बार साधकों के मन में जिज्ञासा अंकुरित होती है कि गुरुदेव की कृपा पाने के लिए क्या करें? उनका दिव्य प्रेम हमें किस तरह मिलें? किस भाँति परम पूज्य गुरुदेव की दिव्य शक्तियों के अनुदान से हम अनुग्रहीत हों? इन सारे सवालों का एक ही जवाब है- शिष्यत्व विकसित करें। शिष्य संजीवनी में बताए जा रहे सूत्र ही वह विधि है जिसके द्वारा सहज ही साधक में शिष्यत्व का विकास होता है। उसमें अपने सद्गुरु की कृपा शक्ति को ग्रहण-धारण करने की पात्रता पनपती है।
इसमें बताया जा रहा प्रत्येक सूत्र अनुभव सम्मत है। जिसके वचन है, उसने इन सूत्रों के प्रत्येक अक्षर में समाए सच को अनुभव किया है। इसकी प्रक्रिया एवं परम्परा अभी भी गतिमान है। इस सत्य का अनुभव आप आज और अभी कर सकते हैं। जो शिष्य संजीवनी के सूत्रों को आत्मसात करने की कोशिश कर रहे हैं- वे जानते हैं कि प्रतिदिन उनके पाँव अध्यात्म के रहस्यमय लोक की ओर बढ़ रहे हैं। हर नया सूत्र उन्हें नयी गति-नयी ऊर्जा एवं नया प्रकाश दे रहा है।
पाँचवे सूत्र में भी सत्य का यही उजाला है। शिष्य संजीवनी का वही गुणकारी रूप है। इसमें कहा गया है- जो तुम्हारे भीतर है, केवल उसी की इच्छा करो। क्योंकि तुम्हारे भीतर समस्त संसार का प्रकाश है। इसी प्रकाश से तुम्हारा साधना पथ प्रकाशित होगा। यदि तुम इसे अपने भीतर नहीं देख सकते, तो कहीं और उसे ढूँढना बेकार है। जो तुमसे परे है, केवल उसी की इच्छा करो। वह तुमसे परे है, इसलिए जब तुम उसे प्राप्त कर लेते हो, तो तुम्हारा अहंकार नष्ट चुका होता है। जो अप्राप्य है, केवल उसी की इच्छा करो। वह अप्राप्य है, क्योंकि पास पहुँचने पर वह बराबर दूर हटता जाता है। तुम प्रकाश में प्रवेश करोगे, किन्तु तुम ज्योति को कभी भी छू न सकोगे।
क्रमशः जारी
- डॉ. प्रणव पण्डया
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/Devo/guruc
शिष्य संजीवनी के प्रत्येक नए सूत्र के साथ यात्रा रहस्यमय होती जाती है। शिष्यत्व निखरता चला जाता है। शिष्य की अन्तर्चेतना का चुम्बकत्व इतना सघन हो जाता है कि उस पर स्वतः ही गुरुकृपा बरसती चली जाती है। गुरुदेव की शक्तियाँ उसमें आप ही समाती चली जाती हैं। कई बार साधकों के मन में जिज्ञासा अंकुरित होती है कि गुरुदेव की कृपा पाने के लिए क्या करें? उनका दिव्य प्रेम हमें किस तरह मिलें? किस भाँति परम पूज्य गुरुदेव की दिव्य शक्तियों के अनुदान से हम अनुग्रहीत हों? इन सारे सवालों का एक ही जवाब है- शिष्यत्व विकसित करें। शिष्य संजीवनी में बताए जा रहे सूत्र ही वह विधि है जिसके द्वारा सहज ही साधक में शिष्यत्व का विकास होता है। उसमें अपने सद्गुरु की कृपा शक्ति को ग्रहण-धारण करने की पात्रता पनपती है।
इसमें बताया जा रहा प्रत्येक सूत्र अनुभव सम्मत है। जिसके वचन है, उसने इन सूत्रों के प्रत्येक अक्षर में समाए सच को अनुभव किया है। इसकी प्रक्रिया एवं परम्परा अभी भी गतिमान है। इस सत्य का अनुभव आप आज और अभी कर सकते हैं। जो शिष्य संजीवनी के सूत्रों को आत्मसात करने की कोशिश कर रहे हैं- वे जानते हैं कि प्रतिदिन उनके पाँव अध्यात्म के रहस्यमय लोक की ओर बढ़ रहे हैं। हर नया सूत्र उन्हें नयी गति-नयी ऊर्जा एवं नया प्रकाश दे रहा है।
पाँचवे सूत्र में भी सत्य का यही उजाला है। शिष्य संजीवनी का वही गुणकारी रूप है। इसमें कहा गया है- जो तुम्हारे भीतर है, केवल उसी की इच्छा करो। क्योंकि तुम्हारे भीतर समस्त संसार का प्रकाश है। इसी प्रकाश से तुम्हारा साधना पथ प्रकाशित होगा। यदि तुम इसे अपने भीतर नहीं देख सकते, तो कहीं और उसे ढूँढना बेकार है। जो तुमसे परे है, केवल उसी की इच्छा करो। वह तुमसे परे है, इसलिए जब तुम उसे प्राप्त कर लेते हो, तो तुम्हारा अहंकार नष्ट चुका होता है। जो अप्राप्य है, केवल उसी की इच्छा करो। वह अप्राप्य है, क्योंकि पास पहुँचने पर वह बराबर दूर हटता जाता है। तुम प्रकाश में प्रवेश करोगे, किन्तु तुम ज्योति को कभी भी छू न सकोगे।
क्रमशः जारी
- डॉ. प्रणव पण्डया
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/Devo/guruc