🌹 व्यावहारिक साधना के चार पक्ष
🔴 अब जप और ध्यान की बारी आती है। दोनों एक साथ चल सकते हैं। गायत्री जप मानसिक हो तो भी ठीक है। जितनी देर करने का निश्चय हो उसका हिसाब माला या घड़ी के सहारे किया जाता है। जिन्हें गायत्री की अपेक्षा कोई अन्य मंत्र रुचिकर होवे उसे अपना सकते हैं। ॐकार भी सार्वभौम स्तर की जप मान्यता बन सकता है।
🔵 जप के साथ प्रात:काल के उदीयमान स्वर्णिम सूर्य का ध्यान किया जाय। भावना करनी चाहिये कि अपना खुला शरीर सूर्य के सम्मुख बैठा है। इष्ट की सूूक्ष्म किरणें अपने स्थूल, सूक्ष्म और कारण-तीनों शरीरों में प्रवेश कर रही हैं। किरणें, ऊर्जा और आभा की प्रतीक हैं। ऊर्जा अर्थात् शक्ति, आभा अर्थात् प्रकाश प्रज्ञा। दोनों का समन्वय तीनों शरीरों में प्रवेश करके उन्हें प्रभावित करता है-ऐसी भावना की जानी चाहिये। प्रत्यक्ष शरीर में स्वास्थ्य और संयम, सूक्ष्म शरीर मस्तिष्क में विवेक और साहस, कारण शरीर अर्थात् अन्त:करण में श्रद्धा, सद्भावना सूर्य किरणों के रूप में प्रवेश करके अस्तित्त्व की समग्र सत्ता को अनुप्राणित कर रही है। यह ध्यान धारणा और मंत्र जप साथ-साथ नियत निर्धारित समय तक चालू रखे जायें और अन्त में पूर्णाहुति में सूर्य के सम्मुख जलरूपी अर्घ्य दिया जाये। इसका तात्पर्य है-परमसत्ता के सम्मुख जलरूपी आत्मसत्ता का समर्पण। भजन भावना इतनी ही है। यदि नियत स्थान पर बैठ सकना सम्भव नहीं, सफर में चलने जैसी स्थिति हो तो वह सारे कृत्य मानसिक रूप से बिना किसी वस्तु की सहायता के भी किये जा सकते हैं।
🔴 प्रज्ञायोग साधना का चौथा चरण है- मनन यह मध्याह्नोत्तर कभी भी, कहीं भी किया जा सकता है। समय पन्द्रह मिनट हो, तो भी काम चल जायेगा। इसमें अपनी वर्तमान स्थिति की समीक्षा की जाती है और आदर्शों के मापदण्ड से जाँच-पड़ताल करने पर जो कमी प्रतीत हो, उसे पूरा करने की योजना बनानी पड़ती है। यही मनन है। इसके लिये एकान्त स्थान ढूँढ़ना चाहिये। आँखें बन्द करके अन्तर्मुखी होना और आत्मसत्ता के सम्बन्ध में परिमार्जन परिष्कार की उभयपक्षीय योजना बनानी चाहिये। इसमें आज के दिन को प्रधान माना जाये। प्रात: से मध्याह्न तक जो सोचा और किया गया हो, उसे आदर्शों के मापदण्ड से जाँचना चाहिये और उस समय से लेकर सोते समय तक जो कुछ करना हो उसकी भावनात्मक योजना बनानी चाहिये, ताकि दिन के पूर्वार्द्ध की तुलना में उत्तरार्द्ध और भी अच्छा बन पड़े।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔴 अब जप और ध्यान की बारी आती है। दोनों एक साथ चल सकते हैं। गायत्री जप मानसिक हो तो भी ठीक है। जितनी देर करने का निश्चय हो उसका हिसाब माला या घड़ी के सहारे किया जाता है। जिन्हें गायत्री की अपेक्षा कोई अन्य मंत्र रुचिकर होवे उसे अपना सकते हैं। ॐकार भी सार्वभौम स्तर की जप मान्यता बन सकता है।
🔵 जप के साथ प्रात:काल के उदीयमान स्वर्णिम सूर्य का ध्यान किया जाय। भावना करनी चाहिये कि अपना खुला शरीर सूर्य के सम्मुख बैठा है। इष्ट की सूूक्ष्म किरणें अपने स्थूल, सूक्ष्म और कारण-तीनों शरीरों में प्रवेश कर रही हैं। किरणें, ऊर्जा और आभा की प्रतीक हैं। ऊर्जा अर्थात् शक्ति, आभा अर्थात् प्रकाश प्रज्ञा। दोनों का समन्वय तीनों शरीरों में प्रवेश करके उन्हें प्रभावित करता है-ऐसी भावना की जानी चाहिये। प्रत्यक्ष शरीर में स्वास्थ्य और संयम, सूक्ष्म शरीर मस्तिष्क में विवेक और साहस, कारण शरीर अर्थात् अन्त:करण में श्रद्धा, सद्भावना सूर्य किरणों के रूप में प्रवेश करके अस्तित्त्व की समग्र सत्ता को अनुप्राणित कर रही है। यह ध्यान धारणा और मंत्र जप साथ-साथ नियत निर्धारित समय तक चालू रखे जायें और अन्त में पूर्णाहुति में सूर्य के सम्मुख जलरूपी अर्घ्य दिया जाये। इसका तात्पर्य है-परमसत्ता के सम्मुख जलरूपी आत्मसत्ता का समर्पण। भजन भावना इतनी ही है। यदि नियत स्थान पर बैठ सकना सम्भव नहीं, सफर में चलने जैसी स्थिति हो तो वह सारे कृत्य मानसिक रूप से बिना किसी वस्तु की सहायता के भी किये जा सकते हैं।
🔴 प्रज्ञायोग साधना का चौथा चरण है- मनन यह मध्याह्नोत्तर कभी भी, कहीं भी किया जा सकता है। समय पन्द्रह मिनट हो, तो भी काम चल जायेगा। इसमें अपनी वर्तमान स्थिति की समीक्षा की जाती है और आदर्शों के मापदण्ड से जाँच-पड़ताल करने पर जो कमी प्रतीत हो, उसे पूरा करने की योजना बनानी पड़ती है। यही मनन है। इसके लिये एकान्त स्थान ढूँढ़ना चाहिये। आँखें बन्द करके अन्तर्मुखी होना और आत्मसत्ता के सम्बन्ध में परिमार्जन परिष्कार की उभयपक्षीय योजना बनानी चाहिये। इसमें आज के दिन को प्रधान माना जाये। प्रात: से मध्याह्न तक जो सोचा और किया गया हो, उसे आदर्शों के मापदण्ड से जाँचना चाहिये और उस समय से लेकर सोते समय तक जो कुछ करना हो उसकी भावनात्मक योजना बनानी चाहिये, ताकि दिन के पूर्वार्द्ध की तुलना में उत्तरार्द्ध और भी अच्छा बन पड़े।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य