बुधवार, 9 मई 2018

👉 घनश्याम की वीरता

🔶 ‘तुम्हें रुपये देने हैं या नहीं’ क्रुद्ध आवाज में दीवान भीमराव भी चिल्ला रहे थे। ‘मैं जल्दी ही दे दूँगा। इस बार सूखा पड़ गया इसलिए नहीं दे पाया। आपने तो मेरी सदा ही सहायता की है। थोड़ी दया और कीजिए साहब।’ दोनों हाथ जोड़कर गरीब कृषक कह रहा था।

🔷 ‘मैं कुछ नहीं जानता। बस मैं इतना ही कह रहा हूँ कि यदि तुमने एक सप्ताह के अन्दर पैसे नहीं दिये तो तुम्हारे घर की नीलामी करा दूँगा। तुम्हें रुपये इसलिये नहीं दिये थे कि उन्हें दबाकर बैठ जाओ। मूल देना तो दूर रहा, तुमने तो दो वर्ष में ब्याज तक नहीं दी है।’ दीवान जी चिल्लाकार बोले फिर वे क्रोध से पैर पटकते बैलगाड़ी में जाकर बैठ गये। उनके दोनों बेटे एक कोने में सहमें खड़े यह सब सुन रहे थे। पिता की दृष्टि उन पर गयी। तो बोले- ‘अरे तुम लोग क्या कर रहे हो यहाँ। स्कूल जाओ जल्दी से नहीं तो देर हो जायेगी।’

🔶 पिता का आदेश सुनकर घनश्याम और उसके भाई ने बस्ता उठाया और स्कूल की ओर दौड़ चले। रास्ते भर घनश्याम के मन में वही दृश्य उभरता रहा। दीवान जी का क्रोध से तमतमाया चेहरा और रौबीली आवाज जैसे उसके सामने अभी भी साकार थे। पिता का करुण चेहरा भी उसकी आँखों के आगे आ रहा था। उसने सुना था कि दीवान बड़ा कठोर है। जो कहता है, वह करते उसे देर नहीं लगती। वह अनेक गरीब व्यक्तियों को ऋण देकर उन्हें ऐसे ही सताया करता था। कई बार तो घनश्याम ने लोगों को उसकी मौत की कामना करते हुए भी सुना था।

🔷 यही बात सोचते-सोचते घनश्यामकृष्ण काले आगे बढ़ रहा था कि बाजार के बीच में उसे दीवान जी की बैलगाड़ी दिखाई दी। कुछ हल्ला-सा भी सुनाई दिया। लोग इधर-उधर भाग रहे थे। घनश्याम भी एक ऊँची दुकान पर चढ़ गया और देखने लगा कि मामला क्या है ? उसने देखा कि दीवान की गाड़ी के बैल बिगड़ गए थे, वे तेजी से भाग रहे थे। उनके साथ जुती गाड़ी घिसटती पीछे चल रही थी। गाड़ी पर बैठे दीवानजी के हाथ से लगाम छूट चुकी थी। कुछ पल बाद ही उसने देखा कि गाड़ी उलट गयी। जुआ तुड़ाकर एक बैल तो भाग गया, पर दूसरा दीवान जी को अपनी सींगों से मारने दौड़ा। लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे। किसी का यह साहस न हो पा रहा था कि दीवान जी को बचाए। एक बार घनश्याम के मन में आया- ‘इसको अपनी करनी का दण्ड मिल रहा है।’ पर शीघ्र ही उसे मास्टरजी की सीख याद आ गयी, जो सदा यह कहा करते थे कि संकट में पड़े हुए की रक्षा करना ही मनुष्यता है। वे बालकों को वीर बच्चों की कहानियाँ सुना-सुना कर उनमें वीरता का संचार किया करते थे।

🔶 घनश्याम अपने प्राणों की परवाह न कर वहाँ से कूदा और दौड़कर बैल के सामने जा खड़ा हुआ। लोग साँस रोके यह दृश्य देख रहे थे। घनश्याम ने तेजी से बैल की रस्सी पकड़ी और अपनी ओर खींचने लगा। क्रुध बैल और भी चिढ़ गया और दीवान को छोड़कर घनश्याम पर झपटा, पर घनश्याम तो पहले से ही इसके लिए तैयार था। उसने बिना समय खोए और साहस छोड़े विलक्षण चतुराई से जल्दी बैल की रस्सी एक खंभे से लपेट दी। बैल को बँधा देख और भय का कारण दूर जानकर लोग पास आने लगे। थोड़ी देर में बैल भी शांत हो गया। घनश्याम और दूसरे व्यक्तियों ने मिलकर दीवान जी को उठाया।

🔷 उन्होंने घनश्याम को गले लगाते हुए कहा- ‘बेटा ! आज तुमने अपने प्राणों की परवाह न करके मेरी रक्षा की है। मैं तुम्हारे उपकार से झुक गया हूँ। किसके बेटे हो तुम ?’

🔶 घनश्याम ने अपने पिता का नाम बताया तो उन्होंने ध्यान से उसकी ओर देखा। उन्हें याद आया कि जब वे किसान को डांट रहे थे, तो यही बच्चा सहमा-सा एक कोने में खड़ा था। उनका मन उन्हें धिक्कारने लगा- ‘एक मैं पापी हूँ, जो दूसरों को सताता हूँ और एक यह है, जिसने मुझ अपकारी का भी ऐसा उपकार किया है।’

🔷 उन्होंने घनश्याम का हाथ पकड़ा और बोले- ‘चलो मैं तुम्हारे पिता से मिलना चाहता हूँ।’

🔶 वह किसान तो दीवानजी को फिर से आया देखते ही काँपने लगा। घनश्याम को उनके साथ देखकर उसका मन और भी भयभीत हो गया। इस शरारती बालक ने न जाने क्या अपराध किया है। अब तो भगवान ही रक्षक हैं।’ वह मन ही मन सोचने लगा।

🔷 दीवानजी ने किसान को पूरी बात बतायी और कहा कि पूरा पैसा उसने माफ कर दिया है। किसान बहुतेरा कहता रहा- ‘नहीं-नहीं मैं आपका पैसा दे दूँगा, बस मुझे थोड़ा समय और दे दीजिए।’’ परन्तु दीवान ने उसकी बात स्वीकार न की। वे बोले- ‘मैं तुम्हारे ऋण को कभी चुका नहीं सकता।’

🔶 घनश्याम कृष्ण काले के साहस और दयालुता ने पिता के संकट को भी दूर कर दिया उसे वीर बच्चे के रूप में भी पुरस्कृत किया गया।

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 10 May 2018

👉 आज का सद्चिंतन 10 May 2018


👉 Amrit Chintan 10 May

🔶 This is the demand of the time, that men’s thinking must change. In prehistoric time, the great Rishi Parashuram destroyed all evil minded kings of that time and established the ruling of justice on throne.

🔷 The famous philosopher cart Jung have opened that worship is a important factor for harmony in life in every sect and religion. People worship in one way or other and have accepted it for good health and all developments and self rectification. They have concluded that all the physicians and psychologist combined have not benefited to that level as only true worship can do.

🔶 The power of spirituality is far ahead of the power of science. It is the spiritual component of man that controls the disasterous power of science. If man can develop this spiritual power of penance and austerity, he will not develop lethal devices for the mankind. Our planning is to develop that true wisdom of life for the vision of 21st century’s Golden era for all.

🔷 One who is friendly with his own soul be will be utmost sincere in all his duties of his life. He will help others and will give all his services to the down trodden people. Such a person is never alone. God and nature works with him.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 कर्मयोग का रहस्य (भाग 2)

🔶 कर्म योगी का विशाल हृदय होना चाहिये। उसमें कुटिलता, नीचता कृपणता और स्वार्थ बिल्कुल नहीं होना चाहिए, उसे लोभ, काम, क्रोध और अभिमान रहित होना चाहिए। यदि इन दोषों के चिन्ह भी दिखाई देवें तो उन्हें एक एक करके दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए, वह जो कुछ भी खाय उसमें से पहले नौकरों को देना चाहिये, यदि कोई निर्धन रोगी दूध की चाहना रखकर उसी के घर आये और घर में उसी के लिए दूध नहीं बचा हो तो उसे चाहिये कि अपने हिस्से का दूध फौरन ही उसे देदे और उससे कहे कि ‘हे नारायण! यह दूध आपके वास्ते है, कृपा कर इसे पीलो, आपकी जरूरत मुझसे ज्यादा है।’ तब ही वह सच्ची उपयोगी सेवा कर सकता है।

🔷 कर्मयोगी का स्वभाव प्रेमयुक्त, मिलनसार, समाज−सेवी होना चाहिए। उसे जाति, धर्म या वर्ण के विचार बिना हर एक व्यक्ति के साथ मिलना चाहिए, उसमें सहनशीलता, सहानुभूति, विश्व−प्रेम, दया और सबमें मिल जाने की सामर्थ्य होनी चाहिये। उसे दूसरों के स्वभाव और रीति से संयोग रखने की क्षमा होनी चाहिये, उसे उपस्थित बुद्धि होनी चाहिये, उसका मन शान्त और सम होना चाहिये। उसे दूसरों की उन्नति में प्रसन्न होना चाहिये, उसको सारी इन्द्रियों पर पूरा संयम होना चाहिये, और हर एक वस्तु केवल अपने ही लिए चाहता है तो वह अपनी सम्पत्ति दूसरों को कैसे बाँट सकता है, उसे अपने स्वार्थ को जला डालना चाहिए।

🔶 ऐसा ही मनुष्य अच्छा कर्मयोगी बन सकता है और अपने लक्ष्य को जल्दी प्राप्त कर लेता है।

✍🏻 श्री स्वामी शिवानन्द जी महाराज
📖 अखण्ड ज्योति, मार्च 1955 पृष्ठ 7  

👉 गुरुगीता (भाग 105)

👉 गुरूगीता का प्रत्येक अक्षर मंत्रराज है

🔶 गुरूगीता के उपदेष्टा के रूप में स्वयं परात्पर महेश्वर, जिनसे सारे शास्त्र एवं योग मार्गों का उद्गम हुआ है और श्रोता के रूप में स्वयं भगवती जगज्जननी, जिनकी गोद में समूची सृष्टि आश्रय पाती है, इनके संवाद के रूप में उदय हुई गुरूगीता के मांत्रिक महत्त्व का यथार्थ विवरण दे पाना किसी भी साधक -सिद्ध के वश की बात नहीं है। हाँ, ऐसे महान् साधकों की अनुभूतियों के विवरण एवं वर्णन पढ़कर रोमाञ्चित, गद्गद्, पुलकित एवं प्रेरित हुआ जा सकता है। ऐसी ही प्रेरक एवं अनुभूतिपूर्ण कथा खाकी बाबा की है।

🔷 खाकी बाबा उत्तरप्रदेश के पूर्वांचल के विख्यात सन्त हुए हैं इनकी योग विभूतियों की अनेक कथाएँ अभी भी पूर्वांचल के गाँवों में बड़ी श्रद्धा से कही- सुनी जाती है। खाकी बाबा का अधिकाशं समय कुसुमी के जंगल में बीता। हाँ अपने अन्तिम समय में वह अवश्य चित्रकूट चले गए। खाकी बाबा के अनेक कृपा पात्रों में मुस्लिम सन्त सैयद रोशन अलीशाह एवं उनके शिष्य सिराजउद्दीन का विशेष नाम आता है। भट्टमयूरवंशीय मझौली नरेश भी खाकी बाबा के कृपा पात्रों में थे। कहते हैं कि बाबा को आध्यात्मिक पथ पर स्वयं भगवान् सदाशिव चलाया था। उन्होंने स्वयं ही इन योगीराज को तारक मंत्र की दीक्षा दी थी।

🔶 कहते हैं कि बाबा की गहन आध्यात्मिक अभिरूचि थी। बचपन से ही उनका मन संसार में नहीं लगता था। पर कहाँ जाएँ? क्या करें? कोई मार्ग भी तो नहीं था। हारकर उन्होंने श्री दुर्गासप्तशती का आश्रय लिया। स्वयं भगवती रूपी सप्तशती का आश्रय लेकर माँ, जो कण- कण में अग- जग में है। एक दिन जब वे पाठोपरान्त माँ के ध्यान में बैठे, तो अद्भुत झलक मिली। उन्होंने देखा कि आकाश मार्ग से भगवान् भोलेनाथ माता जगदम्बा के साथ जा रहे हैं। माँ ने प्रभु से कहा- हे दयानिधान इस बालक का भी कल्याण करें। भगवान् शिव ने माँ की इन बातों को अनसुना कर दिया। कई बार के आग्रह के बाद उन्होंने केवल एक बात कही- देवि! यह अभी सत्पात्र नहीं है। अपने को सत्पात्र बनाने के लिए इसे अभी और भी बहुत कुछ करना है। ऐसा करके उन्होंने माँ से कुछ कहा।

🔷 जो कहा गया- वह तो खाकी बाबा नहीं सुन- समझ पाए ; परन्तु उन्हें इतना अवश्य समझ में आया कि माँ उनसे कह रही हैं कि पुत्र तुम सद्गुरू प्राप्ति के लिए गुरूगीता का आश्रय लो। तुम्हारा सर्वविधि कल्याण होगा। बस, खाकी बाबा ने उस दिन से गुरूगीता का प्रातः, मध्याहृ सायं एवं तुरीय संध्या में पाठ प्रारम्भ कर दिया। ऐसा करते हुए उन्हें बरसों बीत गए। तब एक दिन तुरीय संध्या के समय यानि कि मध्यरात्रि की साधना के समय ध्यानावस्था में भगवान् शिव की झलक फिर मिली। इस बार प्रभु ने उन्हें स्वयं तारक मंत्र का उपदेश दिया। दयानिधान ने स्वयं दक्षिणामूर्ति रूप में उन्हें शिष्य के रूप में अंगीकार किया। अन्तश्चेतना में तारक मंत्र के प्रविष्ट होने के साथ उनकी कुण्डलिनी का उत्थापन हो गया और अनेक योग विभूतियाँ स्वयं ही प्रकट हो गयी।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ प्रणव पंड्या
📖 गुरुगीता पृष्ठ 159

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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