अपने सदगुणों को प्रकाश में लाइए
बाहरी रहन-सहन के कारण उन्हें गरीब ही समझा जाता है ' मरने के बाद जब घड़ों भरी हुई धन-दौलत जमीन में से निकलती है तब आश्चर्य करना पड़ता है कि लोगों को जिंदगी भर इसके इतने धनी होने का भेद प्रकट न हो पाया। बहुत लोग ऐसे रहस्यमय भेद अपने अंदर छिपाए पड़े रहते हैं जिनका पता उनके सगे- संबंधियों तक को नहीं लग पाता। गुप्त पुलिस के आदमी इस विद्या में बडे होते हैं वे अपनी असलियत का पता नहीं लगने देते और दूसरों सगे-संबंधी बनकर ऐसे घुल-मिल जाते हैं कि बड़े- बड़े भेदों को निकाल लाते हैं।
इससे प्रकट होता है कि दूसरों को उतनी बात का पता चल पाता है जितनी आसानी से उनके सामने आ जाती है। सामने रखी गेंद का अगला भाग देखा जा सकता है पर उसका पृष्ठ भाग है यह तब तक नहीं मालूम हो सकता जब तक कि उसे उलट-पलट कर न देखा जाए। सच तो यह है कि किसी वस्तु के बारे में हम बहुत ही थोडे अंशों में जानकारी रखते हैं। अपने शरीर के भीतरी अंग किस गतिविधि से कार्य कर रहे हैं, अपने रक्त में किन रोगों के कीटाणु प्रवेश कर रहे हैं? निजी बातों का इतना पता नहीं तो दूसरे लोगों के मनोभाव, आचरण, कैसे हैं इसको ठीक-ठीक मालूम करना और भी कठिन है मोटी-मोटी प्रकट बातों को देखकर किसी के गुण- अवगुणों के बारे में लोग अपनी सम्मति निर्धारित करते हैं और एक से एक सुनकर दूसरा भी अपनी सहमति वैसी ही बना लेता है। दो-चार पूर्ण- अपूर्ण बातों के आधार पर ही अक्सर सारा समाज अपनी भली- बुरी धारणा बना लेता है। व्यक्ति चाहे बदल गया हो पर वह धारणा मुद्दतों तक चलती जाती है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए आप अपने सुद्गुणों को प्रकाश में लाने का प्रयत्न कीजिए। जो अच्छाइया, भलाइयाँ योग्यताएँ उत्तमताएँ विशेषताएँ हैं उन्हें छिपाया मत कीजिए वरन इस प्रकार रखा करिए जिससे वे अनायास ही लोगों की दृष्टि में आ जावें। अपने बारे में बढ-चढ कर बातें करना ठीक नहीं, शेखीखोरी ठीक नहीं, अहंकार से प्रेरित होकर अपनी बड़ाई के पुल बाँधना यह भी ठीक नहीं, अच्छी बात को बुरी तरह रखने में उसका सौंदर्य नष्ट हो जाता है।
दूसरे प्रसंगों के सिलसिले में कलापूर्ण ढंग से, मधुर वाणी से इस कार्य को बड़ी सुंदरता पूर्वक किया जा सकता है । अप्रिय सत्य को प्रिय सत्य बना कर कहने मैं बुद्धि-कौशल की परीक्षा है, बुराई की इसमें कुछ बात नहीं। जो गाय पाँच सेर दूध देती है क्या हर्ज है यदि इस बात से दुसरे लोग भी परिचित हो जाएँ?
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आंतरिक उल्लास का विकास पृष्ठ ३२
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