🔴 शिष्य संजीवनी के सूत्र शिष्यों को सुपात्र बनाते हैं। शिष्य शब्द को उसका सही अर्थ प्रदान करते हैं। इन सूत्रों के ढलकर जो सुपात्र बन गया है, उस पर अपने आप ही सद्गुरुदेव की अनुकम्पा बरस पड़ती है। उसका अन्तःकरण अपने गुरु की कृपा से लबालब भर जाता है। उसके अस्तित्त्व के कण- कण से शिष्यत्व परिभाषित होता है। ढाई अक्षर का शब्द शिष्य- प्रेम के ढाई अक्षर का पर्याय बन जाता है। गुरुप्रेम ही शिष्य का जीवन है। यही उसका पात्रता और पवित्रता की कसौटी है। शिष्य शब्द का सच्चा अर्थ भी इसी में है। जिन्होंने भी अपनी जिन्दगी में इसे ढूँढ लिया है- वे निहाल हो गए हैं। साधना पथ के शूल में भी उनके लिए फूल बन गए हैं।
🔵 जो अभी पथ की खोज में है, उनके मार्गदर्शन के लिए अगला सूत्र प्रस्तुत है। इस सूत्र में शिष्यत्व की साधना के महासाधक बताते हैं- आन्तरिक इन्द्रियों को उपयोग में लाने की शक्ति प्राप्त करके, बाह्य इन्द्रियों की वासनाओं को जीतकर, जीवात्मा की इच्छाओं पर विजय पाकर और ज्ञान प्राप्त करके, हे शिष्य, वास्तव में मार्ग में प्रविष्ट होने के लिए तैयार हो जा। मार्ग मिल गया है, उस पर चलने के लिए अपने को तैयार कर। इस मार्ग के रहस्यों का ज्ञान तू पूछ पृथ्वी से, वायु से, जल से। इन्हीं में इन रहस्यों को तेरे लिए छुपाकर रखा है। यदि तूने अपनी आन्तरिक इन्द्रियों को विकसित कर लिया है, तो तू इस काम को कर सकेगा। इन रहस्यों को तू पृथ्वी के पवित्र पुरुषों से पूछ, यदि तू शिष्यत्व की कसौटी पर खरा है, तो वे तूझे इन रहस्यों का ज्ञान देंगे। तू भरोसा कर- बाह्य इन्द्रियों की लालसाओं से मुँह मोड़ लेने भर से तूझे यह रहस्य ज्ञान पा लेने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा।
🔴 इस रहस्यमय सूत्र में आध्यात्मिक जीवन में कई महत्त्वपूर्ण आयाम समाए हैं। इन्हें समझकर आत्मसात कर लिया जाय तो साधना की डगर आसान हो सकती है। इतना ही नहीं इसके शिखर पर भी पहुँचा जा सकता है। लेकिन शुरूआत वासनाओं से मुँह मोड़ने से करनी होगी। जो लालसाओं से लिपटा और वासनाओं से बंधा है, उसके लिए साधना सम्भव नहीं है। साधना के सच केवल साधक को ही मिला करते हैं। और साधक बनने के लिए वासनाओं के बन्धन तोड़ने ही पड़ते हैं। कई बार लोग सवाल करते हैं- ऐसा प्रतिबन्ध क्यों है? इनका कहना है कि कामनाएँ एवं वासनाएँ तो स्वाभाविक हैं, नैसर्गिक हैं। इनकी ओर से मुँह मोड़ने से तो जीवन अप्राकृतिक बन जाएगा। और अप्राकृतिक जीवन को रोगी जिया करते हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 डॉ. प्रणव पण्डया
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/Devo/savad
🔵 जो अभी पथ की खोज में है, उनके मार्गदर्शन के लिए अगला सूत्र प्रस्तुत है। इस सूत्र में शिष्यत्व की साधना के महासाधक बताते हैं- आन्तरिक इन्द्रियों को उपयोग में लाने की शक्ति प्राप्त करके, बाह्य इन्द्रियों की वासनाओं को जीतकर, जीवात्मा की इच्छाओं पर विजय पाकर और ज्ञान प्राप्त करके, हे शिष्य, वास्तव में मार्ग में प्रविष्ट होने के लिए तैयार हो जा। मार्ग मिल गया है, उस पर चलने के लिए अपने को तैयार कर। इस मार्ग के रहस्यों का ज्ञान तू पूछ पृथ्वी से, वायु से, जल से। इन्हीं में इन रहस्यों को तेरे लिए छुपाकर रखा है। यदि तूने अपनी आन्तरिक इन्द्रियों को विकसित कर लिया है, तो तू इस काम को कर सकेगा। इन रहस्यों को तू पृथ्वी के पवित्र पुरुषों से पूछ, यदि तू शिष्यत्व की कसौटी पर खरा है, तो वे तूझे इन रहस्यों का ज्ञान देंगे। तू भरोसा कर- बाह्य इन्द्रियों की लालसाओं से मुँह मोड़ लेने भर से तूझे यह रहस्य ज्ञान पा लेने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा।
🔴 इस रहस्यमय सूत्र में आध्यात्मिक जीवन में कई महत्त्वपूर्ण आयाम समाए हैं। इन्हें समझकर आत्मसात कर लिया जाय तो साधना की डगर आसान हो सकती है। इतना ही नहीं इसके शिखर पर भी पहुँचा जा सकता है। लेकिन शुरूआत वासनाओं से मुँह मोड़ने से करनी होगी। जो लालसाओं से लिपटा और वासनाओं से बंधा है, उसके लिए साधना सम्भव नहीं है। साधना के सच केवल साधक को ही मिला करते हैं। और साधक बनने के लिए वासनाओं के बन्धन तोड़ने ही पड़ते हैं। कई बार लोग सवाल करते हैं- ऐसा प्रतिबन्ध क्यों है? इनका कहना है कि कामनाएँ एवं वासनाएँ तो स्वाभाविक हैं, नैसर्गिक हैं। इनकी ओर से मुँह मोड़ने से तो जीवन अप्राकृतिक बन जाएगा। और अप्राकृतिक जीवन को रोगी जिया करते हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 डॉ. प्रणव पण्डया
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/Devo/savad