रविवार, 2 दिसंबर 2018

👉 मां की शिक्षा

बात उन दिनों की है जब अमेरिका में दास प्रथा चरम पर थी। एक धनाढ्य ने बेंगर नामक दास को खरीदा। बेंगर न केवल परिश्रमी था बल्कि गुणवान भी था। वह धनी व्यक्ति बेंगर से पूर्ण रूपेण संतुष्ट था और उस पर विश्वास भी किया करता था।

एक दिन वह बेंगर को लेकर दासमंडी गया, जहां लोगों का जानवरों की भांति कारोबार होता था। उस धनी ने एक और दास खरीदने की इच्छा जाहिर की तो बेंगर ने एक बूढ़े की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘मालिक! उस बूढ़े को खरीद लीजिए।’

बेंगर के साथ उस बूढ़े को खरीदकर धनी घर चला गया। बूढ़े के साथ बेंगर बहुत खुश था। वह उसकी भलीभांति सेवा किया करता था।

एक दिन उस धनी ने बेंगर को उस बूढ़े की सेवा करते देखा तो इसका कारण पूछा। बेंगर ने बताया, ‘मालिक! बूढ़ा मेरा कुछ भी नहीं लगता बल्कि यह मेरा सबसे बड़ा शत्रु है। इसी ने मुझे बचपन में गुलाम के रूप में बेच डाला था। बाद में यह खुद भी पकड़ा गया और दास बन गया। उस दिन मैंने इस बूढ़े को दासमंडी में पहचान लिया था। मैं इसकी सेवा इसलिए करता हूं कि मेरी मां ने मुझे शिक्षा दी थी कि शत्रु यदि निर्वस्त्र हो तो उसे वस्त्र दो, भूखा हो तो रोटी हो, प्यासा हो तो पानी पिलाओ। इसलिए मैं इसकी सेवा करता हूं।’

इतना सुनकर वह धनाढ्य व्यक्ति बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने उसी दिन से बेंगर को स्वतंत्र कर दिया।

👉 परिस्थिति से परिवर्तन

बेतार के तार यन्त्र के निर्माता बंगाल के संसार प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर जगदीशचन्द्र बोस इस बात पर विश्वास करते हैं कि बुरे से बुरे व्यक्ति को सद्व्यवहार द्वारा सुधारा जा सकता है।

सर बोस के पिताजी भगवानचन्द्रजी डिप्टी कलक्टर थे और चोर डाकुओं को पकड़वाने का कार्य भी उन्हें करना पड़ता था। एक बार एक खतरनाक डाकू को उन्होंने पकड़वाया, अदालत ने उसे जेलखाने की कड़ी सजा दी।

जब यह डाकू जेल से छूट कर आया, तो वह जगदीशचन्द्र के पास गया और कहने लगा-”सुविधापूर्वक खर्चे न चलने के कारण मुझे अपराध करने पड़ते हैं। यदि आप मेरा कोई काम लगवा दें, तो मैं उत्तम जीवन व्यतीत कर सकूँगा।”

जगदीश अपनी दयालुता के लिए प्रसिद्ध है। उनने उस डाकू को बिना अधिक पूछताछ किये अपने पास एक अच्छी नौकरी पर रख लिया। उस दिन से कभी भी उस डाकू ने कोई अपराध न किया और मालिक के कुटुम्ब पर आई हुई आपत्तियों के समय उसने अपने प्राणों को खतरे में डाल कर भी उनकी रक्षा की।

स्वभावतः कोई व्यक्ति बुरा नहीं है। बुरी परिस्थितियां मनुष्य को बुरा बनाती है। यदि उसकी परिस्थितियां बदल दी जाय, तो बुरे से बुरे व्यक्ति को भी अच्छे मार्ग पर चलने वाला बनाया जा सकता है।

📖 अखण्ड ज्योति मार्च 1943 पृष्ठ 9

👉 आज का सद्चिंतन 2 December 2018


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 2 December 2018

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...