बुधवार, 25 दिसंबर 2019

👉 शांति की तलाश Looking For Peace

एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कही जा रहे थे। उनके प्रिय शिष्य आनंद ने मार्ग में उनसे एक प्रश्न पूछा -‘भगवान! जीवन में पूर्ण रूप से कभी शांति नहीं मिलती, कोई ऐसा मार्ग बताइए कि जीवन में सदा शांति का अहसास हो।

बुद्ध आनंद का प्रश्न सुनकर मुस्कुराते हुए बोले, तुम्हे इसका जबाब अवश्य देगे किन्तु अभी हमे प्यास लगी है, पहले थोडा जल पी ले। क्या हमारे लिए थोडा जल लेकर आओगे?

बुद्ध का आदेश पाकर आनंद जल की खोज में निकला तो थोड़ी ही दूरी पर एक झरना नजर आया। वह जैसे ही करीब पंहुचा तब तक कुछ बैलगाड़िया वहां आ पहुची और झरने को पार करने लगी। उनके गुजरने के बाद आनंद ने पाया कि झील का पानी बहुत ही गन्दा हो गया था इसलिए उसने कही और से जल लेने का निश्चय किया। बहुत देर तक जब अन्य स्थानों पर जल तलाशने पर जल नहीं मिला तो निराश होकर उसने लौटने का निश्चय किया।

उसके खाली हाथ लौटने पर जब बुद्ध ने पूछा तो उसने सारी बाते बताई और यह भी बोला कि एक बार फिर से मैं किसी दूसरी झील की तलाश करता हूँ जिसका पानी साफ़ हो। यह कहकर आनंद जाने लगा तभी भगवान बुद्ध की आवाज सुनकर वह रुक गया। बुद्ध बोले-‘दूसरी झील तलाश करने की जरुरत नहीं, उसी झील पर जाओ।

आनन्द दोबारा उस झील पर गया किन्तु अभी भी झील का पानी साफ़ नहीं हुआ था । कुछ पत्ते आदि उस पर तैर रहे थे। आनंद दोबारा वापिस आकर बोला इस झील का पानी अभी भी गन्दा है। बुद्ध ने कुछ देर बाद उसे वहाँ जाने को कहा। थोड़ी देर ठहर कर आनंद जब झील पर पहुंचा तो अब झील का पानी बिलकुल पहले जैसा ही साफ़ हो चुका था। काई सिमटकर दूर जा चुकी थी, सड़े- गले पदार्थ नीचे बैठ गए थे और पानी आईने की तरह चमक रहा था।

इस बार आनंद प्रसन्न होकर जल ले आया जिसे बुद्ध पीकर बोले कि आनंद जो क्रियाकलाप अभी तुमने किया, तुम्हारा जबाब इसी में छुपा हुआ है। बुद्ध बोले -हमारे जीवन के जल को भी विचारों की बैलगाड़ियां रोज गन्दा करती रहती है और हमारी शांति को भंग करती हैं। कई बार तो हम इनसे डर कर जीवन से ही भाग खड़े होते है, किन्तु हम भागे नहीं और मन की झील के शांत होने कि थोड़ी प्रतीक्षा कर लें तो सब कुछ स्वच्छ और शांत हो जाता है। ठीक उसी झरने की तरह जहाँ से तुम ये जल लाये हो। यदि हम ऐसा करने में सफल हो गए तो जीवन में सदा शान्ति के अहसास को पा लेगे।

👉 वृत्ति, बुद्धि, विवेक

विवेक, बुद्धि और वृत्ति-इन्हीं तीनों के इर्द-गिर्द मनुष्य की समग्र चेतना घूमती है। इन्हीं तीन से उसकी दशा और दिशा बदलती है, परिवर्तित होती है। विवेक मानव चेतना की श्रेष्ठतम भावदशा में अंकुरित एवं विकसित होता है। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि विवेक के अंकुरण से मानव चेतना अपनी श्रेष्ठतम अवस्था में पहुँच जाती है। जबकि बुद्धि मानव चेतना की मध्यवर्ती दशा है। इन दोनों से अलग वृत्ति मानव चेतना की निम्नतम अवस्था का प्रमाण है।
  
निश्चित रूप से वृत्ति पाश्विक है, बुद्धि मानवीय है और विवेक दिव्य है। वृत्ति सहज और अंधी है, इसे चेतना की सुप्तावस्था भी कह सकते हैं। यह अचेतन का जगत् है, यहाँ न शुभ है न अशुभ, न तो यहाँ भेद है और न विकास के लिए कोई संघर्ष। यहाँ तो बस वासनाओं की अंधी अँधेरी आँधियाँ हैं।
  
जबकि बुद्धि में न निद्रा है और न जागरण है। यहाँ अर्धमूर्च्छा है। यहाँ वृत्ति और विवेक के बीच संक्रमण है। यह देहरी है। इसमें चैतन्यता का एक अंश है, लेकिन बाकी हिस्से में गहरी अचेतनता है। यहाँ शुभ और अशुभ का भेद है। वासना के साथ विचार भी विद्यमान है।
  
विवेक मानव चेतना की पूर्ण जाग्रत् अवस्था है। यहाँ शुद्ध चैतन्यता है, यहाँ केवल प्रकाश हैं, यहाँ भी कोई संघर्ष नहीं हैं। बस शुभ का, सत् का, सौन्दर्य का सहज प्रवाह है। यहाँ बड़ी ही सजग सहजता है।
  
सहज वृत्ति भी है और विवेक भी, परन्तु वृत्ति में अंधी सहजता है और विवेक में सजग सहजता। केवल बुद्धि भर असहज है। इसमें पीछे की ओर वृत्ति है और आगे की ओर विवेक है। उसके शिखर की लौ विवेक की ओर है। लेकिन आधार की जड़ें  वृत्ति में हैं। शिखर कुछ-तलहटी कुछ, यही खिंचाव है। पशु में डूबने का आकर्षण-परमात्मा में उठने की चुैनाती, उसमें दोनों एक साथ हैं।
  
उपाय एक ही है, बुद्धि का विवेक में परिवर्तन। वृत्ति का बुद्धि के संक्रमण पथ से गुजरते हुए विवेक में रूपान्तरण। इसके लिए अंधेरे में दिया जलाना होगा। मूर्च्छा छोड़नी होगी। तभी वृत्ति की पाश्विकता एवं बुद्धि की मानवीयता विवेक की दिव्यता में रूपान्तरित हो सकेगी।

✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १४५

👉 प्रवाह में न बहें, उत्कृष्टता से जुड़े (अन्तिम भाग)

दिन व्यतीत हो जाने पर रात्रि को जब बिस्तर पर जाया जाय तो दिन भर की मानसिक चिन्तन प्रणाली और शारीरिक गतिविधियों की निष्पक्ष समीक्षा करनी चाहिए। जहाँ-जहाँ सदाशयता भरे कदम उठाये गये हैं वहाँ उनकी आत्मिक दृढ़ता को सराहना चाहिए। जहाँ साधारण मनुष्यों की अपेक्षा असाधारण उत्कृष्ट कर्तृत्व का परिचय दिया गया हो, वहाँ अपने आत्मबल पर गर्व और सन्तोष अनुभव करना चाहिए और जहाँ चूक हुई तो उसके लिए पश्चाताप प्रायश्चित करते हुए अगले दिन वैसा न करने की अपने आपको कड़ी चेतावनी देनी चाहिए। जिस प्रकार व्यापारी अपने बही खाते से यह अनुमान लगाते रहते हैं कि कारोबार नफे में चल रहा है या नुकसान में, ठीक इसी तरह अपनी भावना और क्रिया के जीवन व्यापार की गतिविधियों की समीक्षा करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए कि हम ऊपर उठ रहे हैं या नीचे गिर रहे हैं। यदि उठ रहे हो, तो उस उत्कर्ष की गति और भी तीव्र करने का उत्साह पैदा करना चाहिए और यदि पतन बढ़ रहा हो तो उसे रोकने के लिए रुद्र रूप धारण करना चाहिए। गीता में भगवान ने अलंकारिक रूप से जिन कौरवों से लड़ने के लिए कहा था वस्तुतः वे मनोविकार ही हैं। यह महाभारत हर व्यक्ति के जीवन में लड़ा जाना चाहिए। अपने दोष दुर्गुणों को निरस्त करने के लिए हर व्यक्ति को तरकस तूरीण सम्भालकर रखना चाहिए।

भूलों के लिए पश्चाताप प्रार्थना भर पर्याप्त नहीं, वरन् उसके लिए प्रायश्चित भी किया जाना चाहिए। छोटी भूलों के लिए छोटे शारीरिक दण्ड दिये जा सकते हैं, भोजन में कटौती, कान पकड़कर बैठक लगाना, कुछ समय खड़े रहना, देर तक जागना, चपत लगाना आदि दण्ड हो सकते हैं। यदि दूसरों को क्षति पहुँचाई गई है तो उसकी पूर्ति समाज को किसी सत्प्रवृत्ति के अभिवर्धन के लिए अनुदान देकर पूरी कर देनी चाहिए। दुष्कर्मों का प्रायश्चित यही है कि व्यक्ति को पहुँचाई गई क्षति की पूर्ति समाज की सुविधा बढ़ाने के लिए लगा दी जाय। दुष्कर्मों का फल इसी तरह शमन होता है। मात्र छुट-पुट पूजा पाठ कर लेने से उनकी निवृत्ति नहीं हो सकती।

आत्मबोध की अग्रिम प्रगति सत्कर्मों में अनुरक्ति है। संसार में जो अन्धेर, अविवेक और अनाचार चल रहा है, उसके प्रति आकर्षण नहीं घृणा ही होनी चाहिए। उसे अपनाने के लिए नहीं प्रतिरोध के लिए ही अपनी चेष्टा होनी चाहिए। व्यक्तित्व का निर्माण इसी प्रकार होगा। हमें अपने व्यक्तित्व का आदर्शवादी निर्माण करके समाज निर्माण की महत्त्वपूर्ण भूमिका सम्पादित करनी चाहिए।

.... समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 QUERIES ABOUT THE MANTRA (Part 3)

Q.3. Why is Gayatri represented as a female deity?  

Ans. Several people say that when masculine words have been used in Gayatri how can it be said Gayatri Mata? It should be understood that the Absolute Divinity it represents, is all pervasive and formless. It is beyond gender. In scriptures both masculine and feminine words are used for fire, air etc. The famous Sanskrit couplet which is a prayer to God says, ‘Oh God, you are mother, you are father (Twameva Mata-cha Pita Twameva).’ Literally,  Savita may be called masculine, but its power, Savitri is feminine. These allegorical descriptions in the scriptures should be taken as such, and not used to score declamatory points. 

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Gayatri Sadhna truth and distortions Page 38


👉 विचार करें

हमारे व्यक्तित्व के श्रेष्ठतर विकास की जरूरत समझने के लिए नीचे लिखे बिन्दुओं पर विचार करना होगा

1.    हम पत्रिकाओं के ग्राहक बना लेते हैं, किन्तु उन्हें क्रमशः पाठक, साधक और सैनिक के रूप में विकसित करने की जिम्मेदारी चाहकर भी उठा नहीं पा रहे हैं।

2.    हम बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को दीक्षा दिलवा देते हैं, किन्तु उन्हें क्रमशः उपासना, साधना और आराधना में कुशल बनाने, समयदान और अंशदान में निष्ठापूर्वक आगे बढ़ाने के प्रयास ठीक से नहीं कर पा रहे हैं।

3.    हम युग साहित्य के मेले लगाते हैं, उसका विक्रय बढ़ाते हैं, लेकिन युगविचार से युगरोगों के उपचार की प्रेरणा जन- जन तक नहीं पहुँचा पा रहे हैं।

4.    हम साधना से सिद्धि की बातें दुहराते हैं, किन्तु स्वयं को उस साधना में आगे नहीं बढ़ाते जिससे हम सच्चे अग्रदूत सिद्ध हो सकें।

5.    हम अपने आयोजनों और प्रबुद्ध वर्ग की गोष्ठियों में विभिन्न वर्गों और संगठनों के प्रतिभावानों को शामिल तो कर लेते हैं, किन्तु उन्हें युग निर्माण के सूत्रों को अपने प्रभाव क्षेत्र में लागू करने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रहे हैं।

6.    हम सभी सम्प्रदायों और संगठनों को युग सृजन में भागीदार बनाना चाहते हैं, लेकिन उन्हीं के विश्वास के अनुसार उनमें प्रेरणा भरने योग्य स्वयं को ढाल नहीं पा रहे हैं।
उक्त सब तथ्यों पर विचार करने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अगले कार्यों को सम्पन्न करने के लिए अपने व्यक्तित्वों को ऊँचा बनाने में हम कहीं पिछड़ रहे हैं।

सम्पादकीय प्रज्ञा आभियान 16 जनवरी 2014 Page 2

Aaj Ki Sabse Badi Samasya | आज की सबसे बड़ी समस्या | Dr Chinmay Pandya



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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...