बुधवार, 14 जून 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 14 June 2023

यदि मान-सम्मान और पूजा-प्रतिष्ठा, वेशभूषा, शान-शौकत तथा प्रदर्शन के ही अधीन होती तो महात्मा गाँधी, महर्षि अष्टावक्र, मनीषी सुकरात जैसे कुरूपों को संसार का सबसे अधिक अप्रतिष्ठित व्यक्ति और रंग-बिरंगे, छैल-छबीले और फैशनेबुल छोकरों को, रूपवती वेश्याओं को मान-सम्मान का सबसे अधिक अधिकारी पात्र होना चाहिए था। वस्तुतः सच्ची मान-प्रतिष्ठा, शान-शौकत में नहीं, परमार्थ एवं सेवा-परोपकार के अधीन रहा करती है। इसके लिए मनुष्य को बाहर से नहीं, भीतर से सजना-सँवरना पड़ता है।

किसी से बहुत अधिक अपेक्षा रखना, अपने लिए दुःखों के बीज बोना है। सफलता के लक्ष्य से काम करते हुए असफलता के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए। अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं। कम से कम इच्छाएँ रखना और अधिक से अधिक संतुष्ट रहना, प्रसन्नता में अभिवृद्धि करना है।

दोषदर्शी का वास्तव में यह बड़ा भारी दुर्भाग्य है कि वह किसी व्यक्ति अथवा वस्तु में गुण देख ही नहीं पाता। यह उसके स्वभाव की एक बड़ी कमी होती है। उसका हृदय इतना कलुषित एवं ईर्ष्यापूर्ण होता है कि वह किसी के वास्तविक गुणों को भी स्वीकार नहीं कर पाता। यदि वह ऐसा करता है तो उसका क्षुद्र हृदय डाह की आग से जलने लगता है। उसे संतोष तो दूसरों की आलोचना, निन्दा तथा टीका-टिप्पणी करने में ही आता है। यही उसका सुख और  शान्ति होती है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 अच्छी आदतें कैसे डाली जायं? (भाग 2)

आदत डालने के लिए निष्ठा एवं दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। निष्ठा और दृढ़ संकल्प के लिए बुद्धि की तैयारी चाहिए। बुद्धि की मन पर अंकुश रखने की तैयारी हो तो संकल्प में भी दृढ़ता आती है और निष्ठा में भी। इसलिए ऐसे कार्यों को छोड़ने के लिए सतर्क रहना चाहिए जो बुद्धि को मन का दास बनाने वाले हों। बुद्धि का दासत्व स्थिरता का दुश्मन है, क्योंकि जब वह चंचल मन की आज्ञाकारिणी या वशवर्तिनि होगी तो निश्चित रूप से वह चंचल हो जायगी।

मन और बुद्धि पर अंकुश रखकर योग्य बनाने के लिए जीवन को प्रयोगावस्था में डालने की आवश्यकता है। इसके लिए मनुष्य को किसी भी निर्णित कार्यक्रम अनुसार चलने का निश्चय करना पड़ता है। कल जो करना है उसके लिए आज ही कार्यक्रम बना लेना चाहिए। साथ ही सोने के पूर्व उस कार्यक्रम पर दृढ़ रहने का निश्चय कर लेना चाहिए।

जो लोग रात को अधिक देर तक जागते रहते है उनके शरीर में आलस्य भरा रहता है इसलिए शरीर का यह आलसीपन कार्यक्रम को पूरा करने में सहायक नहीं होता बल्कि बाधक होता है। इसलिए शरीर का निरालस रहना भी कार्य साधन का एक अंग है। रात में जल्दी सोना और सवेरे जल्दी उठना आलस्य को जमने नहीं देता। साथ ही बुद्धि को सूक्ष्म आहिणी बनाता है जिस बुद्धि पर कि जीवन का सारा दारोमदार है।

.....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- सितम्बर 1948 पृष्ठ 17
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1948/September/v1.17

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