शनिवार, 17 नवंबर 2018

👉 लोंगेवाला का युद्ध पाकिस्तान की शर्मनाक हार

🔶 नहीं रहे 'बॉर्डर' के मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी, धूल में मिला दिया था पाकिस्तान का मंसूबा
लोंगेवाला के युद्ध में पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को खाक में मिलाने वाले ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी का निधन हो गया है। इस युद्ध पर बनी फिल्म 'बार्डर' में उनका किरदार सनी देओल ने निभाया था।

🔶 सिर्फ 120 के करीब भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान की बड़ी फौज का मुकाबला किया
🔶 किसी अतिरिक्त मदद के बगैर रात भर में पाकिस्तान के 12 टैंक तबाह कर दिए थे
🔶 पाकिस्तान की बड़ी शर्मनाक हार हुई। पाक के कुल 34 टैंक तबाह हुए थे

🔷 बॉर्डर फिल्म में जिस मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी का किरदार सनी देओल ने निभाया था, आज उनका निधन हो गया है। 1971 के लोंगेवाला के युद्ध में उनकी सैन्य टुकड़ी ने बेमिसाल बहादुरी का प्रदर्शन किया था। इसी युद्ध पर बॉर्डर फिल्म बनी थी। मेजर कुलदीप सिंह ने असाधारण नेतृत्व का परिचय दिया था जिसके लिए उनको भारत सरकार द्वारा महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। आइए आज मेजर चांदपुरी और लोंगेवाला युद्ध के बारे में विस्तार से जानते हैं...

🔶 ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह का जन्म 22 नवंबर, 1940 को एक गुर्जर सिख परिवार में हुआ था। उनके परिवार का संबंध अविभाजित भारत के पंजाब में मोंटागोमरी से था। उनके जन्म के बाद उनका परिवार बालाचौर के चांदपुर रूड़की शिफ्ट हो गया था। 1962 में उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज, होशियारपुर से ग्रैजुएशन किया। साल 1962 में चांदपुरी भारतीय थल सेना में शामिल हुए थे। 1963 में उनको ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकैडमी से पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन में कमिशन किया गया था। उन्होंने 1965 के युद्ध में हिस्सा लिया था। युद्ध के बाद वह एक साल तक गाजा (मिस्र) में संयुक्त राष्ट्र के मिशन पर रहे। जिस समय लोंगेवाला में पाकिस्तानी फौज का हमला हुआ, उस समय वह मेजर के पद पर थे और सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर के पद पर हुए थे। 


👉 लोंगेवाला का युद्ध

🔷 भारत और पाकिस्तान के बीच छिड़ा 1971 का युद्ध समाप्त होने को था। इसी बीच 4 दिसंबर को मेजर कुलदीप सिंह को सूचना मिली की बड़ी संख्या में पाकिस्तान की फौज लोंगेवाला चौकी की ओर बढ़ रही है। लोंगेवाला चौकी की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिस सैन्य टुकड़ी के पास थी, उसका नेतृत्व मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी कर रहे थे। चांदपुरी के अधीन उस समय सिर्फ 90 के करीब जवान थे और 30 के करीब जवान गश्त पर थे। करीब 120 सैनिकों की बदौलत बड़ी फौज का सामना करना मुश्किल था। चांदपुरी चाहते तो अपने सैनिकों के साथ आगे रामगढ़ निकल सकते थे लेकिन उन्होंने चौकी की सुरक्षा के लिए रुकने और पाकिस्तान की फौज से दो-दो हाथ करने का फैसला किया। तब तक शाम हो चुकी थी और अंधेरे में किसी तरह की फौजी सहायता मिलना संभव नहीं था।

🔶 कुछ ही समय के अंदर लोंगेवाला चौकी पर पाकिस्तानी टैंक गोले बरसा रहे थे। भारतीय सैनिकों ने भी जवाबी हमले की तैयारी कर ली और जीप पर लगे रिकॉइललेस राइफल और मोर्टार से फायरिंग शुरू कर दी। यह इतनी दमदार कार्रवाई थी कि पाकिस्तानी सेना के कदम रुक गए। पाकिस्तानी सेना में करीब 2000 जवान थे और भारतीय सैन्य टुकड़ी में मुश्किल से 100 जवान, फिर भी उनका हौसला मजबूत था। रात होते-होते पाकिस्तान के 12 टैंक तबाह कर दिए और 8 किलोमीटर दूर तक पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ दिया। पाकिस्तान के मंसूबे पर पानी फिर चुका था। पाकिस्तानी सैनिकों का इरादा रामगढ़ होते हुए जैसलमेर तक पहुंचना था, लेकिन आगे बढ़ना तो दूर उनको पीछे हटना पड़ रहा था।

🔷 रात भर मुट्ठी भर भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान का डटकर मुकाबला किया। अगले दिन यानी 5 दिसंबर, 1971 को सुबह सूरज निकलने के साथ ही भारतीय सैनिकों की मदद में वायु सेना का विमान पहुंच गया। भारतीय वायु सेना के विमान पाकिस्तानी टैंकों और फौजियों पर कहर बनकर टूट पड़े। पाकिस्तानी फौज उल्टे पांव भागने को मजबूर हो गई। अगले दिन 6 दिसंबर को फिर वायु सेना के हंटर विमानों ने कहर बरपाया। इसका नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान की एक पूरी ब्रिगेड और दो रेजिमेंट का सफाया हो गया।

👉 पाकिस्तान की शर्मनाक हार

🔶 लोंगेवाला के युद्ध में पाकिस्तान को बहुत शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान के 34 टैंक तबाह हो गए, 500 के करीब जवान घायल हो गए और 200 जवानों को जिंदगी से हाथ धोना पड़ा। दूसरे विश्वयुद्ध के यह पहला मौका था जब युद्ध में किसी सेना का इतनी बड़ी संख्या में टैंक तबाह हुआ हो। इस युद्ध में पाकिस्तान की काफी फजीहत हुई थी। भारतीय जमीन पर पाकिस्तान के कब्जे का मंसूबा नाकाम ही नहीं हुआ बल्कि उल्टे भारतीय सैनिक पाकिस्तान के 8 किलोमीटर अंदर तक जा घुसे। भारतीय सैनिक 16 दिसंबर तक पाकिस्तान की जमीन पर डेरा डाले रहे और 16 दिसंबर को भारत के जंग जीतने के साथ ही भारतीय सैनिक अपनी सीमा में वापस आए। 


👉 मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी का बेमिसाल नेतृत्व

🔷 यह कहा जा सकता है कि अगर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी नहीं होते तो भारत का नक्शा बदल गया होता। पाकिस्तानी फौज आसानी से रामगढ़ होते हुए जैसलमेर तक पहुंच जाती। मेजर चांदपुरी चाहते तो पाकिस्तानी फौज का सामना किए बगैर रामगढ़ जा सकते थे लेकिन उन्होंने देश के दुश्मन को करारा जवाब देने में देरी नहीं की। उन्होंने असाधारण नेतृत्व का परिचय दिया। रात के समय में वह बंकरों का चक्कर लगा रहे थे। हर बंकर में जाकर अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाते। उन्होंने अगली सुबह को सैन्य मदद पहुंचने तक दुश्मन को करारा जवाब देने के लिए सैनिकों को प्रेरित किया। उनके इस नेतृत्व से प्रोत्साहित होकर सैनिकों ने भी डटकर पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला किया और बगैर किसी अतिरिक्त मदद के पाकिस्तान के 12 टैंकों को रात तक तबाह कर दिया था।

👉 परमात्मा प्राप्ति किसे होती है?

🔶 एक राजा था। वह बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल एवं धार्मिक स्वभाव का था। वह नित्य अपने इष्ट देव को बडी श्रद्धा से पूजा-पाठ ओर याद करता था। एक दिन इष्ट देव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये तथा कहा---"राजन् मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं | बोलो तुम्हारी  कोई इचछा है ?"

🔷 प्रजा को चाहने वाला राजा बोला---"भगवन् मेरे पास आपका दिया सब कुछ है | आपकी कृपा से राज्य में सब प्रकार सुख-शान्ति है | फिर भी मेरी एक ईच्छा है कि जैसे आपने मुझे दर्शन देकर धन्य किया, वैसे ही मेरी सारी प्रजा को भी दर्शन दीजिये।"

🔶 "यह तो सम्भव नहीं  है ।" ---भगवान ने राजा को समझाया । परन्तु प्रजा को चाहने वाला राजा भगवान् से जिद्द् करने लगा। आखिर भगवान को अपने साधक के सामने झुकना पडा ओर वे बोले, --"ठीक है, कल अपनी सारी प्रजा को उस पहाडी के पास लाना। मैं पहाडी के ऊपर से दर्शन दूँगा।"

🔷 राजा अत्यन्त प्रसन्न हुअा अौर  भगवान को धन्यवाद दिया। अगले दिन सारे नगर मे ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल सभी पहाड के नीचे मेरे साथ पहुँचें, वहाँ भगवान् आप सबको दर्शन देंगें ।

🔶 दूसरे दिन राजा अपने समस्त प्रजा ओर स्वजनों को साथ लेकर पहाडी की ओर चलने लगा। चलते-चलते रास्ते में एक स्थान पर तांबे के सिक्कों का पहाड देखा। प्रजा में से कुछ एक उस ओर भागने लगे। तभी ज्ञानी राजा ने सबको सर्तक किया कि कोई उस ओर ध्यान न दे, क्योंकि तुम सब भगवान से मिलने जा रहे हो, इन तांबे के सिक्कों  के पीछे अपने भाग्य को लात मत मारो।

🔷 परन्तु लोभ-लालच में वशीभूत कुछ प्रजा तांबे के सिक्कों वाली पहाडी की ओर भाग गयी अौर सिक्कों की गठरी बना कर अपने घर की ओर चलने लगे। वे मन ही मन सोच रहे थे, पहले ये सिक्कों को समेट लें; भगवान से तो फिर कभी मिल लेंगे।

🔶 राजा खिन्न मन से आगे बढे। कुछ दूर चलने पर चांदी के सिक्कों का चमचमाता पहाड दिखाई दिया। इस वार भी बची हुई प्रजा में से कुछ लोग, उस ओर भागने लगे ओर चांदी के सिक्कों को गठरी बना कर अपने घर की ओर चलने लगे। उनके मन में विचार चल रहा था कि एेसा मौका बार-बार नहीं मिलता है। चांदी के इतने सारे सिक्के फिर मिलें न मिलें, भगवान तो फिर कभी मिल जायेंगे।

🔷 इसी प्रकार कुछ दूर ओर चलने पर सोने के सिक्कों का पहाड नजर आया। अब तो प्रजाजनों में बचे हुये सारे लोग तथा राजा के स्वजन भी उस ओर भागने लगे। वे भी दूसरों की तरह सिक्कों की गठरी लाद कर अपने-अपने घरों की ओर चल दिये।

🔶 अब केवल राजा ओर रानी ही शेष रह गये थे। राजा रानी से कहने लगे---"देखो कितने लोभी हैं ये लोग ? भगवान से मिलने का महत्व ही नहीं  जानते हैं । भगवान के सामने सारी  दुनियां की दौलत क्या चीज है?"

🔷 सही  बात है। रानी ने राजा की बात का समर्थन किया अौर वह आगे बढने लगे। कुछ दूर चलने पर राजा अौर रानी ने देखा कि सप्तरंगी आभा बिखरता हीरों का पहाड है। अब तो रानी से रहा नहीं गया, हीरों के आर्कषण से वह भी दौड पडी अौर हीरों की गठरी बनाने लगी। फिर भी उसका मन नहीं भरा तो साडी के पल्लु में भी बांधने लगी। रानी के वस्त्र देह से अलग हो गये, परंतु हीरों की तृष्णा अभी भी नहीं मिटी। यह देख राजा को अत्यन्त ग्लानि ओर विरक्ति हुई। बडे दुःखद मन से राजा अकेले ही आगे बढते गये।

🔶 वहाँ सचमुच भगवान खडे उसका इन्तजार कर रहे थे। राजा को देखते ही भगवान मुसकुराये अौर पूछा --"कहाँ है तुम्हारी प्रजा अौर तुम्हारे प्रियजन। मैं तो कब से बेकरारी से उनका इन्तजार कर रहा हुं।"

🔷 राजा ने शर्म और आत्म-ग्लानि से अपना सिर झुका दिया। तब भगवान ने राजा को समझाया-- "राजन जो लोग भैतिक सांसारिक प्राप्ति को मुझसे अधिक मानते हैं, उन्हें कदाचित मेरी प्राप्ति नहीं होती ओर वह मेरे स्नेह तथा आर्शिवाद से भी वंचित रह जाते हैं।"

👉 क्रोध को करें नियंत्रित

🔶 एक ऐसा भाव है जो हम सभी के मन में बहुत बार आता है। यदि आपको अपने क्रोध को नियंत्रित करना आता है तो आप हमेशा और हर स्थिति में प्रसन्न रह सकती हैं...

🔷 कई बार हमारे आपके मन में क्रोध-आक्रोश पनपने लगता है। जब इस क्रोध-आक्रोश की सही अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है, तब कुछ लोग अपने शरीर पर खीज निकालते हैं तो कुछ दूसरों पर। मनोचिकित्सकों का कहना है कि मन की अंदरूनी पीड़ा और कुंठा से उपजे क्रोध को काबू करना जरूरी है। क्रोध को नियंत्रित करने के लिए यह जरूरी है कि आप इसके बुनियादी कारणों को समझें।

🔶 उन कारणों को रेखांकित करने का प्रयास करें, जिनके चलते आप भावनात्मक व मानसिक रूप से पीडि़त हैं।

🔷 उन बातों की ओर भी ध्यान दें, जिनके चलते आपका दुख बढ़ जाता है।

🔶 मनोभावों और उनके पैदा होने के मूल कारणों को समझने का प्रयास करें।

🔷 क्रोध को बाहर निकालने का आपका जो भी तरीका हो, पर इस संदर्भ में यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि आपको न तो खुद को पीडि़त करना है और न ही दूसरे को कष्ट पहुंचाना है। क्रोध आने पर मुटिठयां भींचें, पर इनका प्रयोग न करें। यदि आप आस्तिक हैं तो अपने आराध्य को याद करें। इससे आपके क्रोध के ठंडे बस्ते में जाने की संभावना बढ़ जाती है।

🔶 भावनात्मक दुखों को भुलाने के लिए किसी भी तरह के मादक पदार्थ का सहारा न लें। याद रखें ऐसे पदार्थ एक तरह का छलावा हैं। इनका सेवन दुख दूर करने के बजाय स्वास्थ्य बिगड़ता है।

👉 यह है समाधान

🔷 सकारात्मक सोच के जरिए आप अपने क्रोध और आक्रोश को नियंत्रित कर सकती हैं। सबसे पहले आप अपने नकारात्मक व्यवहार को अलविदा कह दें। ऐसा करने के लिए आपको दृढ़ संकल्प शक्ति का परिचय देना होगा।

🔶 अपने प्रति ईमानदार रहें। सच से जी न चुराएं।

🔷 यदि आप आस्तिक हैं तो अपने आराध्य को याद करें। इससे आपके क्रोध की अग्नि शांत होने की संभावना बढ़ जाती है।

🔶 अपनी भावनाओं को समझने का प्रयास करें। किसी समय विशेष में आपकी अनुभूतियां क्या हैं, किस तरह के भाव आ रहे हैं? इनका परीक्षण करें। आप किन बातों से भयभीत हैं? उन कारणों को व्यवाहारिक व सकारात्मक दृष्टि से समझने का प्रयास करें। मनोचिकित्सकों के अनुसार परेशान शख्स के अधिकांश भय काल्पनिक होते हैं। यदि आप उन भयों से रूबरू होने का प्रयास करती हैं तो काफी हद तक आपका भय जाता रहता है।

🔷 कारणों पर भी ध्यान देने का प्रयास करें, जिनसे आप प्रसन्न होती हैं। इसी तरह जिन बातों से आप दुखी होती हैं, उन कारणों को भी समझने का प्रयास करें।

🔶 जिन बातों से आपका आत्मविश्वास बढ़ता है, उन बातों को रेखांकित कर उन पर अमल करें।

🔷 किसी बात को लेकर यदि आप असमंजस में पड़ गयी हैं तो इस स्थिति में अपने अंतर्मन की पुकार सुनें।

🔶 सकारात्मक व रचनात्मक सोच रखने वाले लोगों के बीच रहें। ऐसे लोगों के संपर्क में रहने से आपके मन में भी सकारात्मक भाव पनपेंगे।

🔷 जरूरत पडऩे पर दूसरों को सहयोग दें। जब आप किसी शख्स की मदद करती हैं तो इससे आपको भी अहसास होता है कि आपका भी महत्व है।

🔶 अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। संतुलित पोषक आहार ग्रहण करें। समय पर सोएं और जागें। नियमित रूप से व्यायाम करें। सेहत अच्छी रहने से आप हरेक कार्य को आत्मविश्वास के साथ कर सकती हैं।

🔷 जिन कार्यों में आपकी दिलचस्पी है, उन्हें अंजाम दें। व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर अपने शौक के लिए भी वक्त निकालना सीखें।

🔶 फुर्सत के लम्हों में सुरुचिपूर्ण या व्यक्तित्व विकास संबंधी पुस्तकें पढ़ें।

🔷 किसी कार्य को सोचने-विचारने के बाद शुरू करें। अपने मन में संकल्प लें कि अमुक कार्य को पूरा करके ही पूर्ण संतुष्ट होंगी।

🔶 क्रोध में आने के बाद किसी को न तो फोन करें और न ही किसी को मैसेज भेजें। कारण, इस दौरान आपकी नकारात्मक भावनाएं दिमाग पर हावी होती हैं। ऐसे में आप अच्छे शब्दों के बारे में सोच ही नहीं सकतीं हैं।

🔷 क्रोध में आने के बाद किसी भी प्रकार की बहस करने से बचें, क्योंकि क्रोध के दौरान बहस करने से आपके सामने कुछ ऐसी बातें आ सकती हैं, जिनके कारण आप हिंसक व्यवहार भी कर सकती हैं।

👉 आज का सद्चिंतन 17 Nov 2018


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 16 November 2018




👉 Each thing is relevant where it belongs

🔶 Prayer, compassion, politeness, charity etc. are all undoubtedly very good things indeed and can readily earn appreciation and admiration of most people, especially those who happen to be right-minded. However good these virtues may be, they cannot yield success all the time because wicked people would hardly ever bother about them and what is more, they may regard such polite people being weak and thus, try to intimidate and exploit them. In such a sorry situation, one may have to resort to handling it tactfully by giving them a taste of their own medicine.

🔷 Each thing is pertinent where it belongs. A lotus flower may stand out in a muddy pond. Even a thorny plant like cactus are of the essence and useful too.

🔶 All the incarnations of God described in Hindu sacred texts have adopted a three-pronged approach of breaking, making and sustaining as and when they were deemed necessary. Even the high and mighty powers like them had to employ all these elements of contradictory nature to accomplish the noble task of salvaging the humanity.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Jivan Devta ki sadhana-aradhana Vangmay 53 Page 8.26

👉 हर चीज अपने स्थान पर उपयोगी है

🔶 प्रार्थना, दया, विनय, भलमनसाहत बहुत अच्छी वस्तु है, इनसे वे लोग सहज ही झुक जाते हैं जिनमें कुछ अधिक मात्रा में सत् गुण मौजूद हैं। परन्तु सब जगह उपर्युक्त तत्वों के आधार पर सफलता नहीं मिल सकती, दुष्ट स्वभाव के लोग इनकी जरा भी परवाह नहीं करते तथा विनय करने वाले को दबा हुआ समझकर और भी अधिक उद्दंडता करते हैं। ऐसी दशा में काँटे से काँटा निकालना पड़ता है, कूटनीति से काम लेना पड़ता है।

🔷 हर चीज अपने स्थान पर उपयोगी है, कमल पुष्प अपने स्थान पर बहुत अच्छा है पर नागफनी का कंटीला पौधा भी निरर्थक नहीं है, उसकी आवश्यकता और उपयोगिता भी साधारण नहीं है।

🔶 हिन्दू धर्म में जितने भी अवतार हुए हैं, उनमें से सभी का कार्यक्रम त्रिगुणात्मक है, लोक संग्रह के लिए उन्होंने तीनों गुणों से युक्त कार्य किए हैं।

✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 जीवन देवता की साधना-वांग्मय 2 पृष्ठ-8.26

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...