एक ही सत्ता ओत-प्रोत है
जीवन की सार्थकता पूर्णता प्राप्ति में है, इसका तात्पर्य यह हुआ कि अभी हम अपूर्ण हैं, असत्य हैं, अन्धकार में हैं। हमारे सामने मृत्यु मुंह बांये खड़ी है। अन्धकार, असत्य और मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिये हम प्रकाश, सत्य और अमरता की ओर अग्रसर होना चाहते हैं। पर हो कोई नहीं पाता। हर कोई अपने आपको अशक्त और असहाय पाता है, अज्ञान के अन्धकार में हाथ-पैर पटकता रहता है।
इस अपूर्णता पर जब कभी विचार जाता है तब एक ही तथ्य सामने आता है और वह है ‘‘परमात्मा’’ अर्थात् एक ऐसी सर्वोपरि सर्वशक्तिमान सत्ता जिसके लिए कुछ भी अपूर्ण नहीं है। वह सर्वज्ञ है, सर्वव्यापी, सर्वदृष्टा, नियामक और एकमात्र अपनी इच्छा से सम्पूर्ण सृष्टि में संचरण कर सकने की क्षमता से ओत-प्रोत है।
विकासवाद के जनक डार्विन ने यह सिद्धान्त तो प्रतिपादित कर दिया कि प्रारम्भ में एक कोशीय जीव-अमीबा की उत्पत्ति हुई यही अमीबा फिर ‘‘हाइड्रो’’ में विकसित हुआ, हाइड्रा मछली, मण्डूक, समर्पणशील पक्षी, स्तनधारी जीवों आदि की श्रेणियों में विकसित होता हुआ वह बन्दर की शक्ल तक पहुंचा, आज का विकसित मनुष्य शरीर इसी बन्दर की सन्तान है। इसके लिए शरीर रचना के कुछ खांचे भी मिलाये गये। जहां नहीं मिले वहां यह मान लिया गया कि वह कड़ियां लुप्त हैं और कभी समय पर उसकी भी जानकारी हो सकती है।
इस प्रतिपादन में डार्विन और इस सिद्धान्त के अध्येता यह भूल गये कि अमीबा से ही नर-मादा दो श्रेणियां कैसे विकसित हुईं। अमीबा एक कोशीय था उससे दो कोशीय हाइड्रा पैदा हुआ क्या अन्य सभी जीव इसी गुणोत्तर श्रेणी में आ सकते हैं यदि सर्पणशील जीवों से परधारी जीव विकसित हुये तो वह कृमि जैसे चींटे, पतिंगे, मच्छर आदि कृमि जो उड़ लेते हैं वे किस विकास प्रक्रिया में रखे जायेंगे? पक्षी, जल-जन्तु और कीड़े सभी मांस खाते हैं। स्तनधारी उन्हीं से विकसित हुए तो गाय, भैंस, बकरी, हाथी आदि मांस क्यों नहीं खाते। हाथी के दांत होते हैं हथनियों के नहीं, मुर्गे में कलंगी होती है मुर्गी में नहीं। मोर के रंग-बिरंगे पंख और मोरनियां बिना पंख वाली, विकास प्रक्रिया में एक ही जीव श्रेणी में यह अन्तर क्यों? प्राणियों में दांतों की संख्या, आकृति, प्रकृति में अन्तर पाया जाता है। घोड़े के स्तन नहीं होते बैल के अण्डकोश के पास स्तन होते हैं। पक्षियों की अपेक्षा सर्प और कछुये हजारों वर्ष की आयु वाले होते हैं, यह सभी असमानतायें इस बात का प्रमाण हैं कि सृष्टि रचना किसी विकास का परिणाम नहीं अपितु किसी स्वयम्भू सत्ता द्वारा विधिवत् रची गई कलाकृति है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति पृष्ठ १०५
परम पूज्य गुरुदेव ने यह पुस्तक 1979 में लिखी थी