🔷 कैक्टस जानते हैं कि अपनी सुरक्षा का प्रबन्ध ताप किये बिना गुजारा नहीं। इस दुनिया में उनकी कमी नहीं जो दूसरों का उन्मूलन करके ही अपना काम चलाते हैं। इनके सामने नम्र सरल बनकर रहा जाय तो वे उस सज्जनता को मूर्खता ही कहेंगे और अनुचित लाभ उठायेंगे। भोले कहे जाने वालों का शोषण इसी प्रकार होता रहा है। वे इस तथ्य से अवगत प्रतीत होते हैं। तभी तो अपनी सुरक्षा के लिए-आक्रमणकारियों के दाँत खट्टे करने के लिए उनने उचित व्यवस्था की हुई है। दूसरों पर आक्रमण भले ही न किया जाय पर अपनी सुरक्षा का इन्तजाम रखने और आक्रमणकारियों को बैरंग वापिस लौटाने की व्यवस्था तो करनी ही चाहिए। कैक्टस यह प्रबन्ध कर सकने के कारण ही इस दुरंगी दुनिया के बीच जीवित है।
🔶 कैक्टस के तनों पर नुकीले काँटे होते हैं। वनस्पति चर जाने के लालची पशु उनकी हरियाली देखकर दौड़े आते हैं पर जब काँटों की किलेबन्दी देखते हैं तो चुपचाप वापिस लौट जाते हैं।
🔷 इन पौधों की रंग-बिरंगी विभिन्न आकृति-प्रकृति की अनेक जातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से फिना मैरी गोल्ड, मिल्क वीड, ओपाईन, पर्सलेन, र्स्पज, जिकेनियम, डंजी मुख्य हैं। इनमें से कितने ही ऐसे होते हैं जिनकी आकृति सुन्दर प्रस्तर खण्डों जैसी लगती है।
🔶 यह पौधे अब सब जगह शोभा सज्जा के काम आते हैं। राजकीय उद्यानों में, श्रीमन्तों के राजमहलों में, कला प्रेमियों में इनका बहुत मान है। इन्हें लगाये बिना कोई साधारण वनस्पति उद्यान अधूरा ही माना जाता है। सर्वसाधारण में भी इनकी लोकप्रियता बढ़ी है और हर जगह उन्हें मँगाया सजाया जा रहा है।
🔷 सम्भवतः यह इनका दृढ़ता, कठोरता, स्वावलम्बिता और तितीक्षा जैसी विशेषताओं का ही सम्मान है।
🔶 मनुष्य जितना नाजुक बनता जायगा उतना ही दुर्बल बनेगा और परिस्थितियाँ उस पर हावी होंगी। किन्तु यदि दृढ़ता, तितीक्षा, कष्ट सहिष्णुता और साहसिकता अपनाये रहे तो न केवल शरीर वरन् मन भी इतना सुदृढ़ होगा जिसके सहारे हर विपन्नता का सामना किया जा सके।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति मार्च 1972 पृष्ठ 56
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1972/March/v1.56
🔶 कैक्टस के तनों पर नुकीले काँटे होते हैं। वनस्पति चर जाने के लालची पशु उनकी हरियाली देखकर दौड़े आते हैं पर जब काँटों की किलेबन्दी देखते हैं तो चुपचाप वापिस लौट जाते हैं।
🔷 इन पौधों की रंग-बिरंगी विभिन्न आकृति-प्रकृति की अनेक जातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से फिना मैरी गोल्ड, मिल्क वीड, ओपाईन, पर्सलेन, र्स्पज, जिकेनियम, डंजी मुख्य हैं। इनमें से कितने ही ऐसे होते हैं जिनकी आकृति सुन्दर प्रस्तर खण्डों जैसी लगती है।
🔶 यह पौधे अब सब जगह शोभा सज्जा के काम आते हैं। राजकीय उद्यानों में, श्रीमन्तों के राजमहलों में, कला प्रेमियों में इनका बहुत मान है। इन्हें लगाये बिना कोई साधारण वनस्पति उद्यान अधूरा ही माना जाता है। सर्वसाधारण में भी इनकी लोकप्रियता बढ़ी है और हर जगह उन्हें मँगाया सजाया जा रहा है।
🔷 सम्भवतः यह इनका दृढ़ता, कठोरता, स्वावलम्बिता और तितीक्षा जैसी विशेषताओं का ही सम्मान है।
🔶 मनुष्य जितना नाजुक बनता जायगा उतना ही दुर्बल बनेगा और परिस्थितियाँ उस पर हावी होंगी। किन्तु यदि दृढ़ता, तितीक्षा, कष्ट सहिष्णुता और साहसिकता अपनाये रहे तो न केवल शरीर वरन् मन भी इतना सुदृढ़ होगा जिसके सहारे हर विपन्नता का सामना किया जा सके।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति मार्च 1972 पृष्ठ 56
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1972/March/v1.56
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