🔹 स्वस्थ जीवन का आधार है- अध्यात्म सिद्धान्तों का जीवन के हर क्षण, हर गतिविधि में व्यापक समावेश। दवाओं से स्वास्थ्य नहीं खरीदा जा सकता। मनो,विकार व्यक्तिगत व समष्टिगत रोगों का मूल कारण है। राष्ट्र के समग्र स्वास्थ्य हेतु, इसके निवारण के लिए अध्यात्म सिद्धान्तों को उत्कृष्ठता की पक्षधर मान्यताओं का जन- स्तरीय व्यापक प्रचार- प्रसार अति आवश्यक है।
🔸 जिस तरह अग्नि, यज्ञ कुण्ड में प्रज्वलित होती है, वैसे ही ज्ञानाग्नि अन्तःकरण में, तपाग्नि इन्द्रियों में तथा कर्माग्नि देह में प्रज्वलित रहनी चाहिए। यही यज्ञ की। आध्यात्मि स्वरूप है। अपनी संकीर्णता, अहंता, स्वार्थपरता को जो इस दिव्य अग्नि में होम देता है, वह बदले में इतना प्राप्त करता है, जिससे नर को नारायण की पदवी मिल सके।
🔹 मनुष्य में देवत्व का उदय गुण- कर्म- स्वभाव में चिन्तन और चरित्र में शालीनता अपनाने से ही सम्भव है। नव युग की महती आवश्यकता दुष्प्रवृत्ति उन्मूल और संवर्धन का पक्षधर लोक मानस बनाना पड़ेगा। नये सिरे से यथार्थवादी दिशाधारा अपनाने के लिए अभीष्ट उत्साह एवं साहस जाग्रत् कर सके।
🔸 प्रसन्न रहना सब रोगों की दवा है और प्रसन्न रहने के लिए आवश्यक है अपना जीवन निष्कलुष बनाया जाय। निष्कलुष, निष्पाप, निर्दोष और पवित्र जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति ही सभी परिस्थितियों में प्रसन्न रह सकता है और यह तो सिद्व हो ही चुका है कि मनोविकारों से बचे रहकर प्रसन्नचित्त मनःस्थिति ही सुदृढ़स्वास्थ्य का सुदृढ़ आहार है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔸 जिस तरह अग्नि, यज्ञ कुण्ड में प्रज्वलित होती है, वैसे ही ज्ञानाग्नि अन्तःकरण में, तपाग्नि इन्द्रियों में तथा कर्माग्नि देह में प्रज्वलित रहनी चाहिए। यही यज्ञ की। आध्यात्मि स्वरूप है। अपनी संकीर्णता, अहंता, स्वार्थपरता को जो इस दिव्य अग्नि में होम देता है, वह बदले में इतना प्राप्त करता है, जिससे नर को नारायण की पदवी मिल सके।
🔹 मनुष्य में देवत्व का उदय गुण- कर्म- स्वभाव में चिन्तन और चरित्र में शालीनता अपनाने से ही सम्भव है। नव युग की महती आवश्यकता दुष्प्रवृत्ति उन्मूल और संवर्धन का पक्षधर लोक मानस बनाना पड़ेगा। नये सिरे से यथार्थवादी दिशाधारा अपनाने के लिए अभीष्ट उत्साह एवं साहस जाग्रत् कर सके।
🔸 प्रसन्न रहना सब रोगों की दवा है और प्रसन्न रहने के लिए आवश्यक है अपना जीवन निष्कलुष बनाया जाय। निष्कलुष, निष्पाप, निर्दोष और पवित्र जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति ही सभी परिस्थितियों में प्रसन्न रह सकता है और यह तो सिद्व हो ही चुका है कि मनोविकारों से बचे रहकर प्रसन्नचित्त मनःस्थिति ही सुदृढ़स्वास्थ्य का सुदृढ़ आहार है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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