शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

👉 मन की शांति 😇

एक राजा था जिसे पेटिंग्स से बहुत प्यार था। एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी उसे एक ऐसी पेंटिंग बना कर देगा जो शांति को दर्शाती हो तो वह उसे मुंह माँगा इनाम देगा।

फैसले के दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार इनाम जीतने की लालच में अपनी-अपनी पेंटिंग्स लेकर राजा के महल पहुंचे।

राजा ने एक-एक करके सभी पेंटिंग्स देखीं और उनमें से दो को अलग रखवा दिया। अब इन्ही दोनों में से एक को इनाम के लिए चुना जाना था।

पहली पेंटिंग एक अति सुन्दर शांत झील की थी। उस झील का पानी इतना साफ़ था कि उसके अन्दर की सतह तक नज़र आ रही थी और उसके आस-पास मौजूद हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रुई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे।

जो कोई भी इस पेटिंग को देखता उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छी पेंटिंग हो ही नहीं सकती।

दूसरी पेंटिंग में भी पहाड़ थे, पर वे बिलकुल रूखे, बेजान , वीरान थे और इन पहाड़ों के ऊपर घने गरजते बादल थे जिनमे बिजलियाँ चमक रही थीं…घनघोर वर्षा होने से नदी उफान पर थी… तेज हवाओं से पेड़ हिल रहे थे… और पहाड़ी के एक ओर स्थित झरने ने रौद्र रूप धारण कर रखा था।

जो कोई भी इस पेटिंग को देखता यही सोचता कि भला इसका “शांति” से क्या लेना देना… इसमें तो बस अशांति ही अशांति है।

सभी आश्वस्त थे कि पहली पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार को ही इनाम मिलेगा। तभी राजा अपने सिंहासन से उठे और ऐलान किया कि दूसरी पेंटिंग बनाने वाले चित्रकार को वह मुंह माँगा इनाम देंगे।
हर कोई आश्चर्य में था।
पहले चित्रकार से रहा नहीं गया, वह बोला, “लेकिन महाराज उस पेटिंग में ऐसा क्या है जो आपने उसे इनाम देने का फैसला लिया… जबकि हर कोई यही कह रहा है कि मेरी पेंटिंग ही शांति को दर्शाने के लिए सर्वश्रेष्ठ है?

“आओ मेरे साथ!”, राजा ने पहले चित्रकार को अपने साथ चलने के लिए कहा।
दूसरी पेंटिंग के समक्ष पहुँच कर राजा बोले, “झरने के बायीं ओर हवा से एक तरह झुके इस वृक्ष को देखो…देखो इसकी डाली पर बने इस घोसले को देखो… देखो कैसे एक चिड़िया इतनी कोमलता से, इतने शांत भाव व प्रेम से पूर्ण होकर अपने बच्चों को भोजन करा रही है…”

फिर राजा ने वहां उपस्थित सभी लोगों को समझाया- शांत होने का मतलब ये नही है कि आप ऐसे स्थिति में हों जहाँ कोई शोर नहीं हो…कोई समस्या नहीं हो… जहाँ कड़ी मेहनत नहीं हो… जहाँ आपकी परीक्षा नहीं हो… शांत होने का सही अर्थ है कि आप हर तरह की अव्यवस्था, अशांति, अराजकता के बीच हों और फिर भी आप शांत रहें, अपने काम पर केन्द्रित रहें… अपने लक्ष्य की ओर अग्रसरित रहें।
अब सभी समझ चुके थे कि दूसरी पेंटिंग को राजा ने क्यों चुना है।

👉 हर कोई अपनी जिंदगी में शांति चाहता है। पर अक्सर हम “शांति” को कोई बाहरी वस्तु समझ लेते हैं, और उसे बाहरी दुनिया में, पहाड़ों, झीलों में ढूंढते हैं। जबकि शांति पूरी तरह से हमारे अन्दर की चीज है, और हकीकत यही है कि तमाम दुःख-दर्दों, तकलीफों और दिक्कतों के बीच भी शांत रहना ही असल में शांत होना है।

👉 जिसे जीना आता है, वह सच्चा कलाकार है।

मानव-जीवन एक अमूल्य निधि है। यह बड़े सौभाग्य का सुअवसर है कि हम सृष्टि के किसी भी प्राणी को न मिल सकने योग्य सुअवसर को प्राप्त करें और मानव प्राणी कहलायें।

यह अनुपम अवसर कुत्साओं की कीचड़ और कुण्ठाओं के दलदल में पड़े रहकर नारकीय यातनायें सहते हुए मौत के दिन पूरे कर लेने के लिये नहीं है। वरन् इसलिये है कि हम परमेश्वर की इस पुष्प प्रतिकृति दुनिया के सौंदर्य का रसास्वादन करते हुए अपने को धन्य बनावें और इस तरह जियें, जिसमें पुष्प जैसे मृदुलता, चन्दन जैसी सुगन्ध और दीपक जैसी रोशनी भरी पड़ी हो।

जीवन जीना एक कला है। जिसे ठीक तरह जीना आ गया वह इस धरती का सम्मानित कलाकार है। उपलब्ध साधना-सामग्री का उत्कृष्ट उपयोग करके दिखा सकना-यही तो कौशल कसौटी है। अधिक साधना के अभाव और प्रस्तुत अवरोधी की चर्चा में जो प्रस्तुत उपलब्धियों की महत्ता कम करना चाहता है और यह कहता है कि यदि अमुक साधन मिल सके होते, तो अमुक कर्तृत्व प्रस्तुत करता-उसे आत्म-वञ्चना में निरत ही कहना चाहिए। जीवन-कला से अवगत कलाकार अपने स्वल्प साधनों से ही महान् अभिव्यंजना प्रस्तुत करते रहे हैं। जिसे जीना आ गया उसे सब कुछ आ गया और वह सच्चा शिल्पी है- यह मानना चाहिए।

✍🏻 अरस्तू
📖 अखण्ड ज्योति, अक्टूबर १९७० पृष्ठ ३


http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1970/July/v1.3

👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ६८)

👉 वातावरण की दिव्य आध्यात्किम प्रेरणाएँ

आध्यात्मिक वातावरण में रहने से व्यक्ति के तन, मन व जीवन की आध्यात्मिक चिकित्सा स्वतः होती रहती है। बस यहाँ रहने वाले व्यक्ति ग्रहणशील भर हों। अन्यथा उनकी स्थिति गंगा जल में रहने वाले मछली, कछुओं जैसी बनी रहती है। वे गंगाजल का भौतिक लाभ तो उठाते हैं, पर उनकी चेतना इसके आध्यात्मिक संवेदनों से संवेदित नहीं होती। इसके विपरीत गंगा किनारे रहने वाले, गंगा- जल से पूजा अर्चना करने वाले तपस्वी, योगी पल- पल शरीर के साथ अपने अन्तर्मन को भी इससे धुलते रहते हैं। उनमें आध्यात्मिक जीवन की ज्योति निखरती रहती है। श्रद्धा और संस्कार हों, विचार व भावनाएँ संवेदनशील हों तो आध्यात्मिक वातावरण का सान्निध्य जीवन में चमत्कार पैदा किए बिना नहीं रहता।

बरसात हो तो मैदान हरियाली से भर जाते हैं। हवा का रूख सही हो तो नाविक की यात्रा सुगम हो जाती है। यही स्थिति वातावरण की वैचारिक एवं भावनात्मक ऊर्जा के बारे में है। यदि यह ऊर्जा प्रेरक व सकारात्मक है तो वहाँ रहने वालों के मन स्वयं ही खुशियों से भरे रहते हैं। अन्तर्मन में नयी- नयी प्रेरणाओं का प्रवाह उमगता रहता है। जीवन सही दिशा में गतिशील रहता है और उसकी दशा संवरती- निखरती रहती है। इसके विपरीत स्थिति होने पर मन में विषाद व अवसाद के चक्रव्यूह पनपते हैं। प्राणशक्ति स्वयं ही क्षीण होती रहती है। जीवन को अनेकों आधियाँ- व्याधियाँ घेरे रहती हैं। इस सत्य को वे सभी अनुभव करते हैं, जिन्हें वातावरण की सूक्ष्मता का ज्ञान है।

प्रत्येक स्थान स्थूल, सूक्ष्म व कारण तत्त्वों के क्रमिक आवरण से घिरा होता है। इनमें स्थूल तत्त्व जो सभी को खुली आँखों से दिखाई देते हैं, परिवेश की सृष्टि करते हैं। आस- पास की स्थिति, बिल्डिंग- इमारतें, स्कूल- संस्थाएँ, वहाँ रहने वाले लोग इसी से परिवेश का परिचय मिलता है। इस स्थूल आवरण के अलावा प्रत्येक स्थान में पर्यावरण का सूक्ष्म आवरण भी होता है। यह स्थिति पंचमहाभूतों- पृथ्वी, जल, अग्रि, वायु व आकाश के समन्वय व सन्तुलन पर निर्भर करती है। इस समन्वय व सन्तुलन की स्थिति कितनी संवरी या बिगड़ी है। इसी के सत्प्रभाव या दुष्प्रभाव उस स्थान पर दिखाई देते हैं। पर्यावरण यदि असन्तुलित है, तो वहाँ अनायास ही शारीरिक बीमारियाँ, मनोरोग पनपते रहते हैं। सभी जानते हैं कि इन दिनों विशिष्टों, वरिष्ठों व विशेषज्ञों के साथ सामान्य जनों की पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ी है और वे इसके प्रभावों को अनुभव करने लगे हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ ९५

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