असीम को खोजें
तारे और नक्षत्र में यह अन्तर है कि तारा अपनी रोशनी से चमकता है जब कि नक्षत्रों में अपनी रोशनी नहीं होती। वे तारकों की धूप के प्रकाश में आते हैं तभी चमकते हैं। अपने सौर मण्डल में केवल एक ही सूर्य है शेष 9 नक्षत्र हैं। ब्रह्माण्ड की तुलना में अपने सूर्य का सीमा क्षेत्र बहुत छोटा है पर पृथ्वी की तुलना में वह बहुत बड़ा है। नक्षत्रों के अपने उपग्रह होते हैं जैसे पृथ्वी का उपग्रह चन्द्रमा। ग्रह स्थिति के 12 चन्द्रमा हैं।
जिस प्रकार अपने सौर-मण्डल के नव-ग्रह सूर्य-तारक के साथ जुड़े हैं उसी प्रकार ब्रह्माण्ड के अगणित तारक अपनी-अपनी नीहारिकाएं जो अरबों की संख्या में हैं, जुड़े हैं। उनमें भीतर ऐसी हलचल चलती रहती है जिसके कारण कुछ समय बाद भयंकर विस्फोट होते हैं और अन्तर्भूत पदार्थों में से कुछ टुकड़े बाहर छिटक कर स्वतन्त्र तारक के रूप में विकसित होते हैं। इन्हीं नवोदित तारकों का नाम ‘नोवा और सुपर नोवा’ दिया गया है। जिस प्रकार बिल्ली हर साल कई-कई बच्चे देती है इसी प्रकार से नीहारिकाएं भी थोड़े-थोड़े दिनों बाद प्रसूता होती हैं और विस्फोट जैसी भयानक प्रसव पीड़ा के साथ नव-तारकों को जन्म देती हैं। बच्चों की सारी हरकतें वे सिलसिले होती हैं ऐसा ही कुछ ऊंट-पटांग यह नवोदित तारे भी करते रहते हैं। जब वे घिस-पीट कर ठीक हो जाते हैं। शैशव से आगे बढ़कर किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं तब उनकी व्यवस्था क्रमबद्ध हो जाती है। तब तक उनका फुलाव, सिकुड़न, रुदन, उपद्रव शयन सब कुछ अचंभे जैसा ही है। छोटे बच्चे जैसे बार-बार टट्टी कर देते हैं उसी प्रकार इन नवोदित तारकों की गरमा-गरम गैस भी फटती चिटखती रहती है और उससे भी ग्रह, उपग्रह, उल्का धूमकेतु आदि न जाने क्या-क्या अन्तरिक्षीय फुलझड़ियों का सृजन विसर्जन होता रहता है। इसके अतिरिक्त इन बच्चों में लड़-झगड़ और मारपीट भी कम नहीं होती। निश्चित व्यवस्था का कार्यक्षेत्र न बन पाने के कारण उनके टकराव भी होते रहते हैं और कभी-कभी तो यह टकराव ऐसे विचित्र होते हैं कि दोनों पक्ष अपना अस्तित्व गंवा बैठें और फिर उनके ध्वंसावशेष से कुछ-कुछ और नवीन संरचना सामने आये।
आकाश की नापतोल मीलों की संख्या में करना कौड़ियां बिछाकर मुहरों का हिसाब करने बैठने की तरह उपहासास्पद होगा। इस प्रकार तो इतनी विन्दियां प्रयोग करनी पड़ेंगी कि ज्योतिर्विदों को बाध्य विन्दियों से ही भरने पड़ें।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति पृष्ठ ९२
परम पूज्य गुरुदेव ने यह पुस्तक 1979 में लिखी थी