बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

👉 सफल मनुष्य जीवन

विचारों में हम उठते हैं और विचारों से ही गिरते हैं। उनसे ही खड़े होते हैं और उनसे ही चलते हैं। उनकी जबरदस्त शक्ति से सबका भाग्य बनता है। जो आदमी अपने विचार का स्वामी बनकर रहता है, जो आदमी इच्छाओं को अपने वश में रखता है और जो प्रेमपूर्ण सचाई के तथा साहस भरे विचार करता है वह अपने आदर्श को सत्य के प्रकाश में ढूंढ़ लेता है।

तुम्हारे जीवन के जो क्षण व्यतीत हो रहे हैं उनको सादे, मधुर, पवित्र, सुन्दर, श्रेष्ठ आशापूर्ण, उच्च तथा नम्र विचारों से भरो। वे विचार तुम्हारे जीवन क्षेत्र में अपने अनुरूप फल पैदा करेंगे फल। स्वरूप तुम्हारा दैनिक जीवन आन्तरिक शुभ विचारों का जीता जागता चित्र बन जायेगा। ऐसा जीवन ही ‘सफल मनुष्य जीवन’ होता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1940 पृष्ठ 13

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👉 इन तीन का ध्यान रखिए। (भाग 1)

उत्पादन की जड़-इन तीनों को सदैव अपने अधिकार में रखिये-
अपना क्रोध, अपनी जिह्वा और अपनी वासना।

(1) ये तीनों ही भयंकर उत्पादक की जड़ हैं। क्रोध के आवेश में मनुष्य कत्ल करने तक नहीं रुकता। ऊटपटाँग बक जाता है और बाद में हाथ मल मल कर पछताता है।

(2) जीभ के स्वाद के लालच में भक्ष्य अभक्ष्य का विवेक नष्ट हो जाता है। अनेक व्यक्ति चटपटे मसालों, चाट पकौड़ी और मिठाइयाँ खा खाकर अपनी पाचन शक्ति सदा के लिये नष्ट कर डालते हैं।

(3) सबसे बड़े मूर्ख वे हैं जो अनियंत्रित वासना के शिकार हैं। विषय-वासना के वश में मनुष्य का नैतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक पतन तो होता ही है, साथ ही गृहस्थ सुख, स्वास्थ्य और वीर्य नष्ट होता है। समाज ऐसे भोग विलासी पुरुष को घृणा की दृष्टि से अवलोकता है। गुरुजन उसका तिरस्कार करते हैं। ऐसे पापी मदहोश को स्वास्थ्य लक्ष्मी और आरोग्य सदा के लिये त्याग देते हैं। इन तीनों ही शत्रुओं पर पूरा पूरा नियंत्रण रखिये।

🔴 इन तीनों को झिड़को :-

निर्दयता, घमण्ड और कृतघ्नता

(1) ये मन के मैल हैं। इनसे बुद्धि प्राप्त करने में फंस जाती है। निर्दयी व्यक्ति अविवेकी और अदूरदर्शी होता है। वह दया और सहानुभूति का मर्म नहीं समझता।

(2) घमण्डी हमेशा एक विशेष प्रकार के नशे में मस्त रहता है, धन, बल, बुद्धि में अपने समान किसी को नहीं समझता।

(3) कृतघ्न पुरुष दूसरों के उपकार को शीघ्र ही भूल कर अपने स्वार्थ के वशीभूत रहता है। वह केवल अपना ही लाभ देखता है। वस्तुतः उस अविवेकी का हृदय सदैव मलीन और स्वार्थ-पंक में कलुषित रहता है। दूसरे के किए हुए उपकार को मानने तथा उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकाशित करने में हमारे आत्मिक गुण-विनम्रता, सहिष्णुता और उदारता प्रकट होते हैं।

क्रमशः जारी
अखण्ड ज्योति फरवरी 1950 पृष्ठ 13

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