रविवार, 23 अप्रैल 2023

👉 दोषों में भी गुण ढूँढ़ निकालिये (भाग 2)

सड़े गले कूड़े करकट का जब खाद रूप से सोना कमाया जा सकता है तो कोई कारण नहीं कि घटिया स्वभाव के आदमियों से भी यदि हम बुद्धिमत्ता पूर्ण व्यवहार करें तो उनसे सज्जनता की प्रतिक्रिया प्राप्त न हो। जब साँप, रीछ और बन्दर जैसे अनुपयोगी जानवरों को सिखा पढ़ा कर लोग उनसे तमाशा कराते और धन कमाते हैं तो कोई कारण नहीं कि हम बुरे, ओछे और मूर्ख समझे जाने वाले लोगों को अपने लिए हानिकारक सिद्ध होने देने की अपेक्षा उन्हें उपयोगी लाभ दायक न बना सकें। आवश्यकता केवल इस बात की है कि हमारा निज का दृष्टिकोण और स्वभाव सही हो।

यदि वही गलत है, यदि हम अपनी निज की दुर्बलताओं के प्रवाह में बहते हैं और छोटे-छोटे कारणों को बहुत बड़ा रूप देकर कुछ-कुछ समझने लगने की भूल करते हैं, सामने वाले में केवल दोष ही दोष ढूँढ़ते हैं, तो वही मिलेगा जो हमने ढूँढ़ा था। दोष विहीन कोई वस्तु नहीं, यदि हम दोष ढूंढ़ने की आदत से ग्रसित हो रहे हैं और किसी के प्रति दुर्भावपूर्ण भावना बनाये हुए हैं तो उसके जितने दोष हैं वे सब बहुत ही बड़े-बड़े रूप में दिखाई देंगे और वह व्यक्ति दोषों के पर्वत जैसा दीखेगा। यदि इसके विपरीत हमारा दृष्टिकोण उसी व्यक्ति के प्रति आत्मीयता पूर्ण रहा होता, उसकी सज्जनता पर विश्वास करते तो उसमें अनेकों गुण ऐसे दिखाई देते जिससे उसे सज्जन एवं सत्पुरुष कहने को ही जी चाहता।

भूल हर किसी से होती है। दुर्गुणों और दुर्बलताओं से रहित भी कोई नहीं है। पर जिसे हम प्यार करते हैं, उनकी भूलों पर ध्यान नहीं देते या उन्हें बहुत छोटी मानते हैं, यदि कोई बड़ी भूल भी होती है तो उसे हंसकर सहन कर लेते हैं और उदारतापूर्वक क्षमा कर देते हैं। यह अपनी भावनाओं का ही खेल है कि दूसरों की बुराई या भलाई बहुत छोटी हो जाती है या अनेकों गुनी बढ़ी-चढ़ी दीखती है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1960 पृष्ठ 3



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👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 23 April 2023

एकाग्रता सिद्ध करने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि अपने मन को संसार की ऐसी बातों से दूर रखा जाए जिनसे बेकार की उलझनें और समस्याएँ पैदा हों। उसे केवल ऐसी बातों और विचारों तक ही सीमित रखा जाए जिनसे अपने निश्चित लक्ष्य का सीधा संबंध हो। प्रायः लोगों का स्वभाव होता है कि वे घर, परिवार, मुहल्ले, समाज, देश, राष्ट्र आदि की उन बातों में अपने को व्यस्त बनाए रखते हैं जिनसे उनके मुख्य प्रयोजन का कोई सरोकार नहीं होता। इस स्वभाव का जन्म निरर्थक उत्सुकता द्वारा ही होता है।

प्रेम की उपलब्धि परमात्मा की उपलब्धि मानी गई है। प्रेम परमात्मा का भावनात्मक स्वरूप है  जिसे अपने अंतर में सहज ही अनुभव किया जा सकता है। प्रेम प्राप्ति परमात्मा प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग है। परमात्मा को पाने के अन्य सभी साधन कठिन, दुःसाध्य तथा दुरूह हैं। एक मात्र प्रेम ही ऐसा साधन है जिसमें  कठोरता अथवा दुःसाध्यता के स्थान पर सरसता, सरलता और सुख का समावेश होता है।

अपने आपको सुधारने का प्रयत्न करना, अपने दृष्टिकोण में गहराई तक समाई हुई भ्रान्तियों का निराकरण करना मानव जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। हमें यह  न केवल करना ही चाहिए, वरन् सबसे पहले अधिक इसी पर ध्यान देना चाहिए। अपना सुधार करके न केवल हम अपनी सुख-शान्ति को चिरस्थायी बनाते हैं, वरन् एक प्रकाश स्तम्भ बनकर दूसरों के लिए भी अनुकरणीय उदाहरण उपस्थित करते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...