सृष्टि जगत का अधिष्ठाता
नियामक विधान किसी मस्तिष्कीय सत्ता का अस्तित्व में होना प्रमाणित करता है। हमारे जीवन का आधार सूर्य है। वह 10 करोड़ 30 लाख मील की दूरी से अपनी प्रकाश किरणें भेजता है जो 8 मिनट में पृथ्वी तक पहुंचती हैं। दिन भर में यहां के वातावरण में इतनी सुविधाएं एकत्र हो जाती हैं कि रात आसानी से कट जाती है। दिन रात के इस क्रम में एक दिन भी अन्तर पड़ जायें तो जीवन संकट में पड़ जायें। सूर्य के लिए पृथ्वी समुद्र में बूंद का-सा नगण्य अस्तित्व रखती है फिर, उसकी तुलना में रूप के साईबेरिया प्राप्त में एक गड़रिये के घर में जी रही एक चींटी का क्या अस्तित्व हो सकता है, पर वह भी मजे में अपने दिन काट लेती है।
सूर्य अनन्त अन्तरिक्ष का एक नन्हा तारा है ‘रीडर्स डाइजेस्ट’ ने एक एटलस छापा है उसमें सौर-मण्डल के लिए एक बिन्दु मात्र रखा है और तीर का निशान लगा कर दूर जाकर लिखा है—‘‘हमारा सौर-मण्डल यहां नहीं है’’ यह ऐसा ही हुआ कि कोई मेरी आंख का आंसू समुद्र में गिर गया। सूर्य से तो बड़ा ‘‘रीजल’’ तारा ही है जो उससे 15 हजार गुना बड़ा है। ‘‘अन्टेयर्स’’ सूर्य जैसे 3 करोड़ 60 लाख गोलों को अपने भीतर आसानी से सुला सकता है। जून 1967 के ‘‘साइन्स टुडे’’ में ‘‘ग्राहम बेरी’’ ने लिखा है। पृथ्वी से छोटे ग्रह भी ब्रह्माण्ड में हैं और 5 खरब मील की परिधि वाले भीमकाय नक्षत्र भी। किन्तु यह सभी विराट् ब्रह्माण्ड में निर्द्वन्द विचरण कर रहे हैं यदि कहीं कोई व्यवस्था न होती तो यह तारे आपस में ही टकरा कर नष्ट-भ्रष्ट हो गये होते।
सूर्य अपने केन्द्र में 1 करोड़ साठ लाख डिग्री से.ग्रे. गर्म है, यदि पृथ्वी के ऊपर अयन मण्डल (आइनोस्फियर) की पट्टियां न चढ़ाई गई होती तो पृथ्वी न जाने कब जलकर राख हो गई होती। सूरज अपने स्थान से थोड़ा सा खिसक जाये तो ध्रुव प्रदेशों की बर्फ पिघल कर सारी पृथ्वी को डुबो दे यही नहीं उस गर्मी से कड़ाह, में पकने वाली पूड़ियों की तरह सारा प्राणि जगत ही पक कर नष्ट हो जाये। थोड़ा ऊपर हट जाने पर समुद्र तो क्या धरती की मिट्टी तक बर्फ बनकर जम सकती है। यह तथ्य बताते हैं ग्रहों की स्थिति और व्यवस्था अत्यन्त बुद्धिमत्ता पूर्वक की गई है। यह परमात्मा के अतिरिक्त और कौन चित्रकार हो सकता है।
इतने पर भी कुछ लोग हैं जो यह कहते नहीं थकते कि ईश्वरीय सत्ता का कोई प्रमाण कोई अस्तित्व नहीं है। मार्क्स ने किसी पुस्तक में यह लिखा है कि—‘यदि तुम्हारा ईश्वर प्रयोगशाला की किसी परखनली में सिद्ध किया जा सके तो मैं मान लूंगा कि वस्तुतः ईश्वर का अस्तित्व है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति पृष्ठ ६४
परम पूज्य गुरुदेव ने यह पुस्तक 1979 में लिखी थी