👉 त्रिधा भक्ति एवं उसकी अद्भुत सिद्धि
🔶 अपनी अपेक्षा पिछड़ों, दु:खियारों, आवश्यकताओं की सहायता करना मानवी कर्तव्य है। गिरों को उठाने, उठों को उछालने में ही सच्चे सामर्थ्यवानों के हाथ खुलते और सहायता देते रहे हैं। इस लम्बे जीवन की अवधि में कितनों की कितनी भौतिक एवं आत्मिक सहायता बन पड़ी, यह प्रसंग तो असाधारण रूप से विस्तृत है, पर उसकी चर्चा पर इसलिए प्रतिबन्ध लगा दिया है कि देने वाले का अहंकार उभर सकता है और लेने वाला किसी अहसान की अनुभूति में अपनी हेठी समझकर संकोचग्रस्त हो सकता है।
🔷 सिद्धियों के और भी किसी प्रत्यक्ष प्रमाण का परिचय प्राप्त करना हो तो उसी गणना में एक कड़ी यह भी है कि इन दिनों अस्सी वर्ष की आयु तक पहुँचने वाले प्राय: जराजीर्ण हो जाते हैं और मौत के घर जाने की तैयारी करने लगते हैं। पर यहाँ दृश्य दूसरा ही है। शरीर, मन, संकल्प और पुरुषार्थ उसी स्तर का परिचय दे रहा है जैसे कि वयोवृद्ध द्रोणाचार्य धनुष संधानने और लक्ष्य बेधने की शिक्षा अंत काल तक देते रहे। बुढ़ापे में भी जवानी जीवंत रह सकती है, इस स्तर का इस प्रयोक्ता का एक सघन स्वरूप यह भी है।
🔶 चर्चा को अप्रासंगिक, अनावश्यक और अहंकार स्तर का उद्धत उल्लेख न समझा जाए, इसलिए इस लम्बे प्रसंग को उनके लिए शेष छोड़ दिया है, जो शरीर न रहने पर कुछ और खोजने-बताने के लिए उत्सुक होंगे।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 परिवर्तन के महान् क्षण पृष्ठ 23
🔶 अपनी अपेक्षा पिछड़ों, दु:खियारों, आवश्यकताओं की सहायता करना मानवी कर्तव्य है। गिरों को उठाने, उठों को उछालने में ही सच्चे सामर्थ्यवानों के हाथ खुलते और सहायता देते रहे हैं। इस लम्बे जीवन की अवधि में कितनों की कितनी भौतिक एवं आत्मिक सहायता बन पड़ी, यह प्रसंग तो असाधारण रूप से विस्तृत है, पर उसकी चर्चा पर इसलिए प्रतिबन्ध लगा दिया है कि देने वाले का अहंकार उभर सकता है और लेने वाला किसी अहसान की अनुभूति में अपनी हेठी समझकर संकोचग्रस्त हो सकता है।
🔷 सिद्धियों के और भी किसी प्रत्यक्ष प्रमाण का परिचय प्राप्त करना हो तो उसी गणना में एक कड़ी यह भी है कि इन दिनों अस्सी वर्ष की आयु तक पहुँचने वाले प्राय: जराजीर्ण हो जाते हैं और मौत के घर जाने की तैयारी करने लगते हैं। पर यहाँ दृश्य दूसरा ही है। शरीर, मन, संकल्प और पुरुषार्थ उसी स्तर का परिचय दे रहा है जैसे कि वयोवृद्ध द्रोणाचार्य धनुष संधानने और लक्ष्य बेधने की शिक्षा अंत काल तक देते रहे। बुढ़ापे में भी जवानी जीवंत रह सकती है, इस स्तर का इस प्रयोक्ता का एक सघन स्वरूप यह भी है।
🔶 चर्चा को अप्रासंगिक, अनावश्यक और अहंकार स्तर का उद्धत उल्लेख न समझा जाए, इसलिए इस लम्बे प्रसंग को उनके लिए शेष छोड़ दिया है, जो शरीर न रहने पर कुछ और खोजने-बताने के लिए उत्सुक होंगे।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 परिवर्तन के महान् क्षण पृष्ठ 23