शनिवार, 6 अक्टूबर 2018

👉 परिवर्तन के महान् क्षण (भाग 21)

👉 त्रिधा भक्ति एवं उसकी अद्भुत सिद्धि   
 
🔶 अपनी अपेक्षा पिछड़ों, दु:खियारों, आवश्यकताओं की सहायता करना मानवी कर्तव्य है। गिरों को उठाने, उठों को उछालने में ही सच्चे सामर्थ्यवानों के हाथ खुलते और सहायता देते रहे हैं। इस लम्बे जीवन की अवधि में कितनों की कितनी भौतिक एवं आत्मिक सहायता बन पड़ी, यह प्रसंग तो असाधारण रूप से विस्तृत है, पर उसकी चर्चा पर इसलिए प्रतिबन्ध लगा दिया है कि देने वाले का अहंकार उभर सकता है और लेने वाला किसी अहसान की अनुभूति में अपनी हेठी समझकर संकोचग्रस्त हो सकता है।
  
🔷 सिद्धियों के और भी किसी प्रत्यक्ष प्रमाण का परिचय प्राप्त करना हो तो उसी गणना में एक कड़ी यह भी है कि इन दिनों अस्सी वर्ष की आयु तक पहुँचने वाले प्राय: जराजीर्ण हो जाते हैं और मौत के घर जाने की तैयारी करने लगते हैं। पर यहाँ दृश्य दूसरा ही है। शरीर, मन, संकल्प और पुरुषार्थ उसी स्तर का परिचय दे रहा है जैसे कि वयोवृद्ध द्रोणाचार्य धनुष संधानने और लक्ष्य बेधने की शिक्षा अंत काल तक देते रहे। बुढ़ापे में भी जवानी जीवंत रह सकती है, इस स्तर का इस प्रयोक्ता का एक सघन स्वरूप यह भी है।
  
🔶 चर्चा को अप्रासंगिक, अनावश्यक और अहंकार स्तर का उद्धत उल्लेख न समझा जाए, इसलिए इस लम्बे प्रसंग को उनके लिए शेष छोड़ दिया है, जो शरीर न रहने पर कुछ और खोजने-बताने के लिए उत्सुक होंगे।

  .... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 परिवर्तन के महान् क्षण पृष्ठ 23

👉 Serve Man as God

🔶 The only way of getting our divine nature manifested is by helping others to do the same. If there is inequality in nature, still there must be equal chance for all – or if greater for some and for some less  - the weaker should be given more chance than the strong. In other words, a Brahmana is not so much in need of education as a Chandala. If the son of a Brahmana needs one teacher, that of a Chandala needs ten. For greater help must be given to him whom nature has not endowed with an acute intellect from birth. It is a madman who carries coals to Newcastle. The poor, the downtrodden, the ignorant - let these be your god.

🔷 This is the gist of all worship - to be pure and to do good to others. He who sees Siva in the poor, in the weak, and in the diseased, really worships Siva; and if he sees Siva only in the image, his worship is but preliminary.

🔶 The life of Buddha shows that even a man who has no metaphysics, belongs to no sect, and does not go to any church, or temple, and is a confessed materialist, even he can attain to the highest. …. He was the only man who was ever ready to give up his life for animals, to stop a sacrifice. He once said to a king: ‘If the sacrifice of a lamb helps you to go to heaven, sacrificing a man will help you better; so sacrifice me.’ The king was astonished.

🔷 ‘The good live for others alone. The wise man should sacrifice himself for others.’ I can secure my own good only by doing your good. There is no other way, none whatsoever.

🔶 Go from village to village; do good to humanity and to the world at large. Go to hell yourself to buy salvation for others… ‘When death is so certain, it is better to die for a good cause.’

🔷 Throughout the history of the world, you find great men make great sacrifices and the mass of mankind enjoy the benefit. If you want to give up everything for your own salvation, it is nothing. Do you want to forgo even your own salvation for the good of the world? You are God, think of that.

📖 Swami Vivekananda

👉 नदी बनाम जोहड़ (तालाब)

🔶 एक जल-पूरित नदी कल-कल करती हुई आनन्द और उल्लास के साथ बही जा रही थी । उसके किनारे बड़े-बड़े सुन्दर नगर और उपनगर बसे हुए थे। इन सभी नगरों के निवासी विविध प्रकार से उसके जल का उपयोग करके अपने दैनिक जीवन को सफल बनाते रहते थे।

🔷 पर्वतों से टकराकर नदी का पानी जहाँ ऊपर से नीचे गिरता था वहाँ एक विशाल विद्युत-केन्द्र बनाया गया था जहाँ बिजली का उत्पादन होकर उससे अनेक प्रकार के यान्त्रिक और औद्योगिक कार्यों का संचालन किया जा रहा था।

🔶 आगे चलकर इसी नदी से कुछ नहरें निकाली गई थीं। कहीं नावों से इसमें व्यापार करके अपनी आजीविका चला रहे थे।

🔷 ऐसा था इस नदी का जीवन । आदि से अन्त तक अपने अंग-प्रत्यंग से औरों का भला करती हुई जब इस प्रकार वेग से समुद्राभिमुख बही चली जा रही थी तब एक ठहरी हुई जोहड़ ने, जिसका पानी प्रवाहहीन होने के कारण दुर्गन्धयुक्त हो गया था इस नदी से कहा-

🔶 “बहन, बताओ अपने इस दिन-रात के बहते हुए जीवन में आखिर तुम्हें किस बात का अनुभव होता है, जो तुम निरन्तर कल-कल करती हुई किलोलें में किया करती हो? मुझे क्यों नहीं देखती, जो एक जगह ठहरकर अपने जीवन को प्रगति और प्रवाह से दूर करके स्थिर होकर यहाँ पड़ी-पड़ी आराम के साथ अपने दिन गुजार रही हूँ।”

🔷 नदी ने जोहड़ से कहा-प्रगति और प्रवाह का पन्थ अपनाने से ही मेरा आभ्यन्तर स्वच्छ और निर्मल बना हुआ है और इसीलिए मेरी हर बूँद का सदुपयोग किया जाता है। प्रगति और प्रवाहहीन होने के कारण ही तुम गंदगी का आगार बनी हुई हो। औरों के उपयोग में न आने वाले तुम्हारे जीवन का इस दुनिया में अधिक अस्तित्व नहीं है।

📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1967 पृष्ठ 13
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1967/April/v1.13

👉 फैशन का कलंक धो डालिये (अन्तिम भाग)

🔶 भारत के नागरिकों की कारों, मोटर साइकिल और यहां तक कि रिक्शों, तांगों में गाते हुए रेडियो सेट तथा ट्रांजिस्टरों को देखकर संसार का कौन-सा देश इस बात पर विश्वास कर लेगा कि भारत एक गरीब देश है और मित्रों की सहायता का अधिकारी है? और यदि वह उसको गरीब समझ कर उसके कारणों पर सोचेगा तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि भारत की गरीबी के प्रमुख हेतुओं में से एक उसके नागरिकों की, फैशनपरस्ती और फिजूलखर्च है। यह एक राष्ट्रीय अपमान है, देश की गौरव गरिमा पर लांछन है। इस पर हम सबको और खासतौर पर भारतीय नौजवानों को गम्भीरता से विचार ही नहीं करना है बल्कि अपनी बालवृत्तियों में सुधार कर कलंक मिटाने का प्रयत्न करना है। यदि हम कपड़ों लत्तों में फैलसूफ हैं तो अपने परिवार वालों अथवा परोक्ष रूप से अपने अनेक देश बन्धुओं को नंगा रहने पर मजबूर करते हैं।

🔷 सुन्दरता, वस्त्रों अथवा वेशविन्यास की विचित्रता अथवा अपव्ययता में नहीं है वह व्यवस्था एवं करीने में है। मोटे तथा सस्ते कपड़े भी यदि ठीक सिले-धुले और पहने गये हैं तो वे मनुष्य के व्यक्तित्व में चार चांद लगा देंगे। अपनी तथा अपने देश काल के अनुसार ही रहन-सहन रखना बुद्धिमानी, भद्रता तथा सज्जनता है। फैशन के नशे में सब कुछ समझने पर भी पैसा खोना सरासर नादानी है। उस पैसे को बचाकर हम सबको अपने-अपने परिवार तथा राष्ट्र की उन्नति पर खर्च कर जीवन से प्रदर्शन का कलंक धो डालने में ही कल्याण है, शोभा है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 भारतीय संस्कृति की रक्षा कीजिए पृष्ठ 112

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