बुधवार, 19 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 19 July 2023

संसार में जितने भी सफल और समुन्नत व्यक्ति हुए हैं उनकी सफलता का एक महत्त्वपूर्ण कारण उनके सहायक भी हैं। कोई व्यक्ति चाहे कितना ही विद्वान्, बुद्धिमान्, चतुर, शक्तिवान् क्यों न हो, पर सहयोग के अभाव में लुंज-पुंज ही रहेगा। उससे कोई महत्त्वपूर्ण कार्य न बन सकेगा। असहयोग भले ही द्वेष के बराबर हानिकारक न हो, पर वह भी जीवन की प्रगति को रोक देने में एक विशालकाय पर्वत की तरह अड़कर खड़ा हो जाता है।

अपनी मनोदशा मिशन को आगे बढ़ते देखकर प्रसन्न और संतुष्ट होने की है। अब उसी में अपना सारा आनंद, उल्लास केन्द्रीभूत हो गया है। सो जो कोई उस दिशा में आगे बढ़ता दीखता है तो लगता है अपने कर्त्तव्य के लिए ही नहीं हमारे लिए भी बहुत कुछ करने में संलग्न है। ऐसे लोगों के प्रति हमारी श्रद्धा, कृतज्ञता, ममता और सहानुभूति का अंतःप्रवाह अनायास ही प्रवाहित होने लगता है। वस्तुतः शरीर की सेवा-समीपता से नहीं, भावना और आदर्शों की प्रखरता ही से अपने को शान्ति और संतुष्टि मिलती है।

यदि केवल हमारे व्यक्तित्व के प्रति ही श्रद्धा है, शरीर से ही मोह है और उसी की प्रशस्ति-पूजा की जाती है और मिशन की बात ताक पर उठाकर रख दी जाती है तो लगता है हमारे प्राण का तिरस्कार करते हुए केवल शरीर पर पंखा ढुलाया जा रहा हो।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 दाम्पत्य जीवन की सफलता का मार्ग (अंतिम भाग)

संसार में रहने का यही तरीका है कि एक दूसरे के सामने थोड़ा-थोड़ा झुका जाय और समझौते की नीति से काम लिया जाय। महात्मा गाँधी, उच्चकोटि के आदर्शवादी संत थे, पर उनके ऐसे भी अनेकों सच्चे मित्र थे जो उनके विचार और कार्यों से मतभेद ही नहीं विरोध भी रखते थे। यह मतभेद उनकी मित्रता में बाधक न होते थे। ऐसी ही उदार समझौतावादी नीति के आधार पर आपसी सहयोग संबंधों को कायम रखा जा सकता है।

इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि साथी में दोष, दुर्गुण, हो उनकी उपेक्षा की जाय और उन बुराइयों को अबाध रीति से बढ़ने दिया जाय। ऐसा करना तो एक भारी अनर्थ होगा। जो पक्ष अधिक बुद्धिमान, विचारशील एवं अनुभवी है उसे अपने साथी को सुसंस्कृत, उमुन्नत, सद्गुणी बनाने के लिए भरसक प्रयत्न करना चाहिए। साथ ही अपने आपको भी ऐसा मधुरभाषी, उदार, सहनशील एवं निर्दोष बनाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए कि साथी पर अपना समुचित प्रभाव पड़ सके।

जो स्वयं अनेक बुराइयों में फंसा हुआ है वह अपने साथी को सुधारने में सफल कैसे हो सकता है? सती सीता परम साध्वी उच्चकोटि की पतिव्रता थीं, पर उनके पतिव्रता होने का एक कारण यह भी था कि वे एक पत्नी व्रतधारी अनेक सद्गुणों से सम्पन्न राम की धर्मपत्नी थीं। रावण स्वयं दुराचारी एवं उसकी पत्नी मंदोदरी सर्वगुण सम्पन्न एवं बुद्धिमान होते हुए भी पतिव्रता न रह सकी। रावण के मरते ही उसने विभीषण से पुनर्विवाह कर लिया।

🔵 जीवन की सफलता, शाँति, सुव्यवस्था इस बात पर निर्भर है कि हमारा दाम्पत्य जीवन और संतुष्ट हो। इसके लिए आरंभ में ही सावधानी बरती जानी चाहिए और गुण स्वभाव की समानता के आधार पर लड़के-लड़कियों के जोड़े चुने चाहिए। अच्छा चुनाव होने पर भी पूर्ण समता तो हो नहीं सकती, इसे हर एक स्त्री-पुरुष के लिए इस नीति को अपनाना आवश्यक है कि अपनी बुराइयों को कम कर साथी के साथ मधुरता उदारता और सहनशीलता का आत्मीयतामय व्यवहार करें। साथ ही उसकी बुराइयों को कम करने के लिए धैर्य, दृढ़ता और चतुरता के साथ प्रयत्नशील रहे। इस मार्ग पर चलने से असंतुष्ट दाम्पत्य जीवनों में संतोष की मात्रा बढ़ेगी और संतुष्ट संपत्ति स्वर्गीय जीवन का आनन्द उपलब्ध करेंगे।

.... समाप्त
📖 अखण्ड ज्योति- मार्च 1950 पृष्ठ 28


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