सोमवार, 26 जून 2017

👉 समस्याओं का समाधान दृष्टिकोण के परिष्कार पर निर्भर

🔵 कोई आदमी अच्छा है या बुरा? यह उसकी आदतों का स्तर देखकर पता चलता है। ये आदतें कहीं बाहर से आकर नहीं चिपटतीं। मनुष्य की विचारणा और क्रिया ही दीर्घकालीन अभ्यास से स्वभाव का अंग बन जाती है।

🔴 विख्यात मनोविज्ञान वेत्ता विलियम जेम्स ने आदतों का विश्लेषण करते हुए एक स्थल पर लिखा है कि किसी प्रक्रिया की बार-बार आवृत्ति से हमारे मस्तिष्क में एक मनोवैज्ञानिक खाँचा बन जाता है। उस कार्य अथवा विचार की आवृत्ति उस खाँचे को और गहरी करती रहती है। यह खाँचा जितना गहरा होता जाता है, मन को उससे विरत करना उतना ही कठिन लगने लगता है।

🔵 आदतों की उत्कृष्टता-निकृष्टता ही जीवन में उत्थान-पतन की परिस्थितियाँ रचा करती हैं। अच्छी आदतें अन्तरंग सहयोग की तरह हर जगह अनुकूलता प्रदान करती हैं। इसके विपरीत बुरी आदतें हमेशा अपने पालक के अनगढ़पन की चुगली करती फिरती हैं। बने बनाए कामों तथा मधुर सम्बन्धों में खटाई डाल देना इस दुष्प्रवृत्ति का प्रिय व्यसन है।

🔴 कुछ बुरी आदतें स्वभाव में जड़ जमाकर इतनी पक्की हो जाती हैं कि उनके दुष्परिणाम भुगतने वाला भी उससे अनभिज्ञ बना रहता है। उदाहरण के लिए, जो दाँतों से नाखून काटता रहता है- चाहे किसी रूप में- आमतौर पर ‘नर्वस’ समझा जाता है। जो सदा देर से कहीं पहुँचता हो, वह लोगों की नजर में स्वार्थी और दूसरों का न ख्याल करने वाला होता है। टालमटोल करने वाला व्यक्ति अविश्वस्त माना जाता है, उसे कोई दायित्व वाला काम नहीं सौंपा जाता। यदि प्रयास किया जाय तो इन प्रवृत्तियों से मुक्ति भी पायी जा सकती है। अपने चिन्तन एवं व्यवहार में दैनन्दिन स्वयमेव समीक्षा करते रहने से यह दुष्कर लगने वाला कार्य भी सम्भव हो सकता है।

🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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