शनिवार, 25 नवंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 25 Nov 2023

🔷 भावनाओं का विस्तार अपने आप से करना है। व्यक्तिगत चरित्र निर्माण से यह प्रक्रिया प्रारम्भ होती है, धीरे-धीरे परिवार, गाँव, समाज, राष्ट्र और विश्व के साथ उसका सामंजस्य बढ़ता जाता है। इसी क्रम में व्यक्ति का निज का ज्ञान, बौद्धिक विकास और ईश्वर अनुभूति की सिद्धि प्राप्त होती है। यह आत्मयोग ही ब्रह्म ज्ञान का सबसे सीधा और सरल रास्ता है।

🔶 मन बड़ा शक्तिशाली है। पर उससे कोई विशिष्ट लाभ तभी प्राप्त किया जा सकता है जब उसे पूर्ण नियंत्रण में रखा जाय। जीवन लक्ष्य की प्राप्ति, साँसारिक सुख सुविधायें प्राप्त करने के लिए भी यह शर्त अनिवार्य है। हमारा मन वश में हो जाय तो इस जीवन को स्वस्थ व समुन्नत बना सकते हैं और पारलौकिक जीवन का भी मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

🔷 क्रोध के आवेग में जो कुछ भी हो जाय कम ही है। यह व्यक्ति के सर्वनाश का संकेत है क्योंकि इसका आवेग आने पर मनुष्य की सोचने विचारने की शक्ति क्षीण हो जाती है और वह आवेग में कुछ भी कर सकता है। मार पीट, कत्ल, आत्महत्या, नृशंस घटनायें क्रोध के आवेग में ही घटती हैं। सन्त तिरुवल्लरु के शब्दों में “आवेग उसे ही जलाता है जो उसके पास जाता है किन्तु क्रोध तो पूरे परिवार, समाज को संतप्त कर देता है। क्रोध एक प्रकार की आँधी है, जब वह आती है तो विवेक को ही नष्ट कर देती है और अविवेकी व्यक्ति ही समाज में अपराध तथा बुराइयों के कारण बनते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 झूठा वैराग्य

कितने ऐसे मनुष्य हैं जो संसार के किसी पदार्थ से प्रेम नहीं करते, उनके भीतर किसी भी मौलिक वस्तु के प्रति सद्भाव नहीं होता। वे निर्दय, निर्भय, निष्ठुर होते हैं। निस्संदेह वे अनेक प्रकार की कठिनाइयों से, मुसीबतों से, बच जाते हैं, किन्तु वैसे तो निर्जीव पत्थर की चट्टान को भी कोई शोक नहीं होता, कोई वेदना नहीं होती, लेकिन क्या हम सजीव मनुष्य की तुलना पत्थर से कर सकते हैं? जो वज्र वत कठोर हृदय होते हैं, नितान्त एकाकी होते हैं, वे चाहे कष्ट न भोगें पर जीवन के बहुत से आनन्दों का उपभोग करने से वे वंचित रह जाते हैं। ऐसा जीवन भी भला कोई जीवन है? वैरागी वह है जो सब प्रकार से संसार में रह कर, सब तरह के कार्यक्रम को पूरा कर, सब की सेवा कर, सबसे प्रेम कर, फिर भी सबसे अलग रहता है।

हम लोगों को यह एक विचित्र आदत सी पड़ गई है कि जो भी दुष्परिणाम हमको भोगने पड़ते हैं, जो भी कठिनाइयाँ आपत्तियाँ हमारे सामने आती हैं, उनके लिए हम अपने को दोषी न समझ कर दूसरे के सर दोष मढ़ दिया करते हैं। संसार बुरा है, नारकीय है, भले लोगों के रहने की यह जगह नहीं है, यह हम लोग मुसीबत के समय कहा करते हैं। यदि संसार ही बुरा होता और हम अच्छे होते तो भला हमारा जन्म ही यहाँ क्यों होता? यदि थोड़ा सा भी आप विचार करो तो तुरन्त विदित हो जायेगा कि यदि हम स्वयं स्वार्थी न होते तो स्वार्थियों की दुनिया में आप का वास असंभव था। हम बुरे हैं तो संसार भी बुरा प्रतीत होगा लेकिन लोग वैराग्य का झूठा ढोल पीटकर अपने को अच्छा और संसार को बुरा बताने की आत्म वंदना किया करते हैं।

✍🏻 स्वामी विवेकानन्द
📖 अखण्ड-ज्योति मार्च 1943 पृष्ठ 5

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...