🔶 जब मैं शिलांग, डिब्रूगढ़ की तरफ अपने मिशन के लिए दौरा कर रहा था तो मेरी इच्छा हुई कि नागालैण्ड जाऊँ। नागा कैसे होते हैं? जरा देखकर आऊँ। हमारे कार्यकर्ता साथ चले, बोले हम दुभाषिए का काम करेंगे। उनकी जीप में बैठकर मैं नागालैण्ड चला गया। उन लोगों के बीच जो रेलगाड़ी पलट देते थे, तीर-कमानों से जिन्होंने सेना की नाक में दम कर रखा था। नागाओं के एक गाँव में जाकर एक चबूतरे पर मेरे मित्रों ने बिठा दिया व नागाओं से उनकी भाषा में कहा, ये हमारे गुरुजी हैं, महात्मा हैं, आशीर्वाद देते हैं। किसी का कोई दुःख हो तो इनसे कह लीजिए। ये नहीं कहा कि ये विद्वान हैं, कोई मिशन चलाते हैं। बस यही कहा कि कोई मनोकामना हो तो इनसे कहिए। कोई पचास-सौ नागा वहाँ बैठे थे। एक ने दूसरे से कहा, दूसरे ने तीसरे से कहा। सब ने आपस में पूछताछ कर ली व कहा कि हमारा तो कोई दुःख नहीं है, रोटी मिल जाती है। सोने के लिए फूस के मकान हैं, पहनने के लिए लोमड़ी के खाल है, मौज करते हैं। हमें दुःख काहे का।
🔷 एक-दूसरे की ओर देखा तो बुड्ढा नागा उठा व दुभाषिए से बोला कि इन स्वामी जी से पूछिए कि इनको कोई दुःख तो नहीं है। हमसे बोले, ‘‘हमें तो कोई परेशानी नहीं किन्तु आप भूखे हों तो हमारे यहाँ चावल हैं, भूखे नहीं जाएँ हमारे दरवाजे से। पहनने के कपड़े न हों तो खालें ले जाएँ। हमारा अपना कोई कष्ट नहीं। हम तो प्रसन्न हैं। स्वामीजी को कोई दुःख हो तो हम दूर कर देंं।’’ मैं समझ गया आदमी का दर्शन यह है। नागाओं ने नागालैण्ड बना लिया। क्या वजह हो सकती है? यह उस बिरादरी का दर्शन है। जो कुछ हमारे पास है, उससे खुशी की जिन्दगी जिएँगे। उसे देखकर के खाएँगे। मस्ती का जीवन जिएँगे। यह दर्शन है। कौमें, बिरादरियाँ, समय और जातियाँ हमेशा दर्शन के आधार पर उठी हैं। यह दर्शन पैदा करना मनीषा का काम है। दर्शन को बनाने वाली माँ का नाम है ‘मनीषा’। मनीषा कैसी होती है? मनीषा ऐसी होती है जैसी कि बुद्ध के भीतर से पैदा हुई थी।
🔶 बुद्ध ने जमाने को देखा था। बड़ा वाहियात जमाना, बड़ा फूहड़ जमाना। माँस, मदिरा, मद्य, मुद्रा, मैथुन—ये पाँच चीजें ही उस समय जीवन का आधार बनी हुई थीं। यही उस समय का धर्म था। जो आज के समय का वाममार्ग है, वही उस समय का दर्शन ऐसी परिस्थितियों में एक बुद्ध नाम का आदमी उठ खड़ा हुआ। बुद्ध किसे कहते हैं? बुद्ध विचारशीलता का, भावनाशीलता का प्रतीक है। लोगों को दिशा देने वाले को बुद्ध कहते हैं। कथावाचक, धर्मोपदेशक उस जमाने में भी थे लेकिन मनीषी के रूप में अकेले बुद्ध सामने आए। उन्होंने लोगों से कहा, ‘‘बुद्धं शरणं गच्छामि’’—बुद्धि की, विवेक की, समझदारी की पकड़ में आ जाओ। क्यों और कैसे के सवाल पूछो।
....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)
🔷 एक-दूसरे की ओर देखा तो बुड्ढा नागा उठा व दुभाषिए से बोला कि इन स्वामी जी से पूछिए कि इनको कोई दुःख तो नहीं है। हमसे बोले, ‘‘हमें तो कोई परेशानी नहीं किन्तु आप भूखे हों तो हमारे यहाँ चावल हैं, भूखे नहीं जाएँ हमारे दरवाजे से। पहनने के कपड़े न हों तो खालें ले जाएँ। हमारा अपना कोई कष्ट नहीं। हम तो प्रसन्न हैं। स्वामीजी को कोई दुःख हो तो हम दूर कर देंं।’’ मैं समझ गया आदमी का दर्शन यह है। नागाओं ने नागालैण्ड बना लिया। क्या वजह हो सकती है? यह उस बिरादरी का दर्शन है। जो कुछ हमारे पास है, उससे खुशी की जिन्दगी जिएँगे। उसे देखकर के खाएँगे। मस्ती का जीवन जिएँगे। यह दर्शन है। कौमें, बिरादरियाँ, समय और जातियाँ हमेशा दर्शन के आधार पर उठी हैं। यह दर्शन पैदा करना मनीषा का काम है। दर्शन को बनाने वाली माँ का नाम है ‘मनीषा’। मनीषा कैसी होती है? मनीषा ऐसी होती है जैसी कि बुद्ध के भीतर से पैदा हुई थी।
🔶 बुद्ध ने जमाने को देखा था। बड़ा वाहियात जमाना, बड़ा फूहड़ जमाना। माँस, मदिरा, मद्य, मुद्रा, मैथुन—ये पाँच चीजें ही उस समय जीवन का आधार बनी हुई थीं। यही उस समय का धर्म था। जो आज के समय का वाममार्ग है, वही उस समय का दर्शन ऐसी परिस्थितियों में एक बुद्ध नाम का आदमी उठ खड़ा हुआ। बुद्ध किसे कहते हैं? बुद्ध विचारशीलता का, भावनाशीलता का प्रतीक है। लोगों को दिशा देने वाले को बुद्ध कहते हैं। कथावाचक, धर्मोपदेशक उस जमाने में भी थे लेकिन मनीषी के रूप में अकेले बुद्ध सामने आए। उन्होंने लोगों से कहा, ‘‘बुद्धं शरणं गच्छामि’’—बुद्धि की, विवेक की, समझदारी की पकड़ में आ जाओ। क्यों और कैसे के सवाल पूछो।
....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)