बुधवार, 17 जुलाई 2019
👉 अन्त का परिष्कार, प्रखर उपासना से ही संभव (भाग 4)
मस्तिष्क की यहाँ निरर्थकता नहीं बताई जा रही है और न तर्क, प्रभाव अध्ययन का, विचार साधन का महत्त्व कम किया जा रहा है। उसकी उपयोगिता तो है ही और रहेगी ही। बात इतनी भर है कि मस्तिष्क भौतिक जीवन में अत्यन्त पेचीदा समस्याओं को सुलझाने और महत्त्वपूर्ण फैसले करने और पेचीदगियों को सरल बनाने में अद्भुत सूझ- बूझ का परिचय दे सकने में समर्थ होते हुए भी अन्तःकरण में जमे हुए संचित संस्कारों को प्रभावित करने में यत्किंचित् ही सहायक हो पाता है। कारण कि वह गहरी परत मस्तिष्क के प्रभाव क्षेत्र में पूरी तरह है नहीं। वरन् उलटे मस्तिष्क को ही अपने इच्छानुकूल चलने के लिए विवश करता है।
अंतःकरण ही मानवी सत्ता का केन्द्र बिन्दु है। वह जितना महत्वपूर्ण हैं उतना ही अद्भुत इस अर्थ में कि उसमें तनिक सा अन्तर आते ही मनुष्य का सारा स्वरूप बदल जाता है। अद्भुत इस अर्थ में कि भावनाओं, संवेदनाओं की दृष्टि से अति सरल होते हुए भी अपनी स्थिति के संबन्ध में इतना दुराग्रही है कि बदलने में अत्यन्त कठोरता का परिचय देता है। परिवर्तन के लिए किये जाने वाले साधारण प्रयत्नों को तो ऐसे ही उपहास में उड़ा देता है। ईश्वर से मिलने की, सूक्ष्म जगत से सम्पर्क साधने की क्षमताएँ इसी मर्म स्थल में सन्निहित हैं। ऋद्धियों और सिद्धियों की समस्त रत्न राशियाँ इसी तिजोरी में भरी हुई हैं। इतने पर भी इसका खोल सकना अत्यन्त कठिन है। जानकार लोग भी अपने आपको असहाय पाते हैं। आत्मबोध की आवश्यकता समझने- समझाने वाले- उसके द्वारा मिलने वाले चमत्कारों का स्वरूप समझने वाले भी इतना सङ्कल्प नहीं जुटा पाते कि आत्म जागृति का लाभ उठा सके और साक्षात्कार कर सके। अपनी जानकारी से स्वयं लाभान्वित न हुआ जा सके, तो समझना चाहिए कि कोई बहुत बड़ा कारण या अवरोध काम करता है।
अन्तःकरण की स्थिति में थोड़ा सा परिवर्तन होते ही जीवन के स्वरूप में असाधारण परिवर्तन प्रस्तुत होता है। वाल्मीकि, अजामिल अम्बपाली, अंगुलिमाल, बिल्वमंगल आदि अनेकों के दुष्ट जीवनों ने पलटा खाया और देखते- देखते कायाकल्प कर लिया। बोधि वृक्ष के नीचे एक दिन गौतम राजकुमार के अन्तःकरण ने पलटा खाया और वे दूसरे दिन ही भगवान बुद्ध बन गये। समर्थ गुरु रामदास का विवाह मुहूर्त निकट था, उनके भीतर दुस्साहस पूर्वक दूसरे प्रकार का निश्चय कर बैठा। देखते- देखते सारी दिशाधारा ही उलट गई। गृहस्थों जैसा सामान्य जीवन क्रम दूसरे ही दिन महामानवों की, ऋषियों की पंक्ति में जा विराजा। ऐसे चमत्कार अन्तःकरण के परिवर्तन से ही होते रहे हैं।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अंतःकरण ही मानवी सत्ता का केन्द्र बिन्दु है। वह जितना महत्वपूर्ण हैं उतना ही अद्भुत इस अर्थ में कि उसमें तनिक सा अन्तर आते ही मनुष्य का सारा स्वरूप बदल जाता है। अद्भुत इस अर्थ में कि भावनाओं, संवेदनाओं की दृष्टि से अति सरल होते हुए भी अपनी स्थिति के संबन्ध में इतना दुराग्रही है कि बदलने में अत्यन्त कठोरता का परिचय देता है। परिवर्तन के लिए किये जाने वाले साधारण प्रयत्नों को तो ऐसे ही उपहास में उड़ा देता है। ईश्वर से मिलने की, सूक्ष्म जगत से सम्पर्क साधने की क्षमताएँ इसी मर्म स्थल में सन्निहित हैं। ऋद्धियों और सिद्धियों की समस्त रत्न राशियाँ इसी तिजोरी में भरी हुई हैं। इतने पर भी इसका खोल सकना अत्यन्त कठिन है। जानकार लोग भी अपने आपको असहाय पाते हैं। आत्मबोध की आवश्यकता समझने- समझाने वाले- उसके द्वारा मिलने वाले चमत्कारों का स्वरूप समझने वाले भी इतना सङ्कल्प नहीं जुटा पाते कि आत्म जागृति का लाभ उठा सके और साक्षात्कार कर सके। अपनी जानकारी से स्वयं लाभान्वित न हुआ जा सके, तो समझना चाहिए कि कोई बहुत बड़ा कारण या अवरोध काम करता है।
अन्तःकरण की स्थिति में थोड़ा सा परिवर्तन होते ही जीवन के स्वरूप में असाधारण परिवर्तन प्रस्तुत होता है। वाल्मीकि, अजामिल अम्बपाली, अंगुलिमाल, बिल्वमंगल आदि अनेकों के दुष्ट जीवनों ने पलटा खाया और देखते- देखते कायाकल्प कर लिया। बोधि वृक्ष के नीचे एक दिन गौतम राजकुमार के अन्तःकरण ने पलटा खाया और वे दूसरे दिन ही भगवान बुद्ध बन गये। समर्थ गुरु रामदास का विवाह मुहूर्त निकट था, उनके भीतर दुस्साहस पूर्वक दूसरे प्रकार का निश्चय कर बैठा। देखते- देखते सारी दिशाधारा ही उलट गई। गृहस्थों जैसा सामान्य जीवन क्रम दूसरे ही दिन महामानवों की, ऋषियों की पंक्ति में जा विराजा। ऐसे चमत्कार अन्तःकरण के परिवर्तन से ही होते रहे हैं।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
👉 इन ग्रन्थों में मंत्रों में छिपे पड़े हैं अति गोपनीय प्रयोग (भाग 30)
जहाँ तक दुर्गासप्तशती की बात है, तो इस रहस्यमय ग्रन्थ में वेदों में वर्णित सभी तांत्रिक प्रक्रियाएँ कूटभाषा में वर्णित हैं। इसके अलग- अलग पाठक्रम अपने अलग- अलग प्रभावों को प्रकट करते हैं। यूं तो इसके पाठक्रम अनेक हैं। पर प्रायः इसके ग्यारह पाठक्रमों की चर्चा मिलती है। ये ग्यारह पाठक्रम कुछ इस प्रकार हैं- १. महाविद्या क्रम, २. महातंत्री क्रम, ३. चण्डी क्रम, ४. महाचण्डी क्रम, ५. सप्तशती क्रम, ६. मृत संजीवनी क्रम, ७. रूपदीपिका क्रम, ८. निकुंभला क्रम, ९. योगिनी क्रम, १०. संहार क्रम, ११. अक्षरशः विलोम क्रम। पाठक्रम की ये सभी विधियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। और प्रयोग के पूर्ण होते ही अपने प्रभाव को प्रकट किए बिना नहीं रहतीं।
इन पाठ क्रमों के अतिरिक्त श्री दुर्गासप्तशती के सहस्रों प्रयोग हैं। इनमें से कुछ साधारण हैं तो कुछ अतिविशिष्ट। इन सब की चर्चा यहाँ सम्भव नहीं जान पड़ रही। क्योंकि यह विषय अति गोपनीय एवं गम्भीर है, जिसे गुरुमुख से सुनना- जानना व करना ही श्रेयस्कर है। संक्षेप में हम यहाँ इतना ही कहेंगे कि पृथ्वी पर ही नहीं समस्त सृष्टि में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे दुर्गासप्तशती के समर्थ प्रयोगों से हासिल न किया जा सके। इन पंक्तियों को पढ़ने वाले इसे रंचमात्र भी अतिशयोक्ति न समझें। लगातार जो अनुभव किया गया है, वही कहा गया है। वैसे यदि बात अपने स्वयं के व्यक्तित्व की चिकित्सा की हो तो दुर्गासप्तशती के साथ गायत्री महामंत्र के प्रयोग को श्रेष्ठतम पाया गया है।
वृन्दावन के उड़िया बाबा की दुर्गासप्तशती पर भारी श्रद्धा थी। अपनी आध्यात्मिक साधना के लिए जब उन्होंने घर छोड़ा, तो कोई सम्बल न था। कहाँ जाएँ, किधर जाएँ, कुछ भी सुझायी न देता था। ऐसे में उन्हें जगन्माता का स्मरण हो आया। मां के सिवा अपने बच्चे की और कौन देखभाल कर सकता है। बस मां का स्मरण करते हुए वे शतचण्डी के अनुष्ठान में जुट गए। दुर्गासप्तशती के इस अनुष्ठान ने उनके व्यक्तित्व को आध्यात्मिक ऐश्वर्य से भर दिया। अपने इस अनुष्ठान के बारे में वे भक्तों से बताया करते थे। गायत्री महामंत्र के साथ दुर्गासप्तशती के पाठ के संयोग से अपने जीवन की आध्यात्मिक चिकित्सा की जा सकती है। इतना ही नहीं स्वयं भी आध्यात्मिक चिकित्सक होने का गौरव पाया जा सकता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 44
इन पाठ क्रमों के अतिरिक्त श्री दुर्गासप्तशती के सहस्रों प्रयोग हैं। इनमें से कुछ साधारण हैं तो कुछ अतिविशिष्ट। इन सब की चर्चा यहाँ सम्भव नहीं जान पड़ रही। क्योंकि यह विषय अति गोपनीय एवं गम्भीर है, जिसे गुरुमुख से सुनना- जानना व करना ही श्रेयस्कर है। संक्षेप में हम यहाँ इतना ही कहेंगे कि पृथ्वी पर ही नहीं समस्त सृष्टि में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे दुर्गासप्तशती के समर्थ प्रयोगों से हासिल न किया जा सके। इन पंक्तियों को पढ़ने वाले इसे रंचमात्र भी अतिशयोक्ति न समझें। लगातार जो अनुभव किया गया है, वही कहा गया है। वैसे यदि बात अपने स्वयं के व्यक्तित्व की चिकित्सा की हो तो दुर्गासप्तशती के साथ गायत्री महामंत्र के प्रयोग को श्रेष्ठतम पाया गया है।
वृन्दावन के उड़िया बाबा की दुर्गासप्तशती पर भारी श्रद्धा थी। अपनी आध्यात्मिक साधना के लिए जब उन्होंने घर छोड़ा, तो कोई सम्बल न था। कहाँ जाएँ, किधर जाएँ, कुछ भी सुझायी न देता था। ऐसे में उन्हें जगन्माता का स्मरण हो आया। मां के सिवा अपने बच्चे की और कौन देखभाल कर सकता है। बस मां का स्मरण करते हुए वे शतचण्डी के अनुष्ठान में जुट गए। दुर्गासप्तशती के इस अनुष्ठान ने उनके व्यक्तित्व को आध्यात्मिक ऐश्वर्य से भर दिया। अपने इस अनुष्ठान के बारे में वे भक्तों से बताया करते थे। गायत्री महामंत्र के साथ दुर्गासप्तशती के पाठ के संयोग से अपने जीवन की आध्यात्मिक चिकित्सा की जा सकती है। इतना ही नहीं स्वयं भी आध्यात्मिक चिकित्सक होने का गौरव पाया जा सकता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 44
👉 Amrit Chintan 17 July 2019
★ "To live content with small means, to seek elegance rather than luxury, and refinement rather than fashion, to be worthy, not respectable, and wealthy, not rich, to study hard, think quietly, talk gently, act frankly, to listen to stars and birds, to babes and sages, with open heart, to bear all cheerfully, do all bravely, await occasions, hurry never, in a word to let the spiritual, unbidden and unconscious, grow up through the common, this is to be my symphony."
William Henry Channing
◇ A lady once offered me a mat; but as I had no room to spare within the house, nor time to spare within or without to shake it, I declined it, preferring to wipe my feet on the sod before my door. It is best to avoid the beginnings of evil.
Henry David Thoreau
■ "He has achieved success who has lived well, laughed often, and loved much; Who has enjoyed the trust of pure women, the respect of intelligent men and the love of little children; Who has filled his niche and accomplished his task; Who has never lacked appreciation of Earth's beauty or failed to express it; Who has left the world better than he found it, Whether an improved poppy, a perfect poem, or a rescued soul; Who has always looked for the best in others and given them the best he had; Whose life was an inspiration; Whose memory a benediction."
Bessie Anderson Stanley
William Henry Channing
◇ A lady once offered me a mat; but as I had no room to spare within the house, nor time to spare within or without to shake it, I declined it, preferring to wipe my feet on the sod before my door. It is best to avoid the beginnings of evil.
Henry David Thoreau
■ "He has achieved success who has lived well, laughed often, and loved much; Who has enjoyed the trust of pure women, the respect of intelligent men and the love of little children; Who has filled his niche and accomplished his task; Who has never lacked appreciation of Earth's beauty or failed to express it; Who has left the world better than he found it, Whether an improved poppy, a perfect poem, or a rescued soul; Who has always looked for the best in others and given them the best he had; Whose life was an inspiration; Whose memory a benediction."
Bessie Anderson Stanley
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