मंगलवार, 28 नवंबर 2017

👉 सर्वोच्च शिखर

🔶 एक युवक ने एक संत से कहा, 'महाराज, मैं जीवन में सर्वोच्च शिखर पाना चाहता हूं लेकिन इसके लिए मैं निम्न स्तर से शुरुआत नहीं करना चाहता।

🔷 क्या आप मुझे कोई ऐसा रास्ता बता सकते हैं जो मुझे सीधा सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दे।' संत बोले, 'अवश्य बताऊंगा। पहले तुम आश्रम के बगीचे से सबसे सुंदर गुलाब का फूल लाकर मुझे दो। लेकिन एक शर्त है। जिस गुलाब को तुम पीछे छोड़ जाओगे, उसे पलटकर नहीं तोड़ोगे।' युवक यह आसान सी शर्त मानकर बगीचे में चला गया।

🔶 वहां एक से एक सुंदर गुलाब खिले थे। जब भी वह एक गुलाब तोड़ने के लिए आगे बढ़ता, उसे कुछ दूर पर उससे भी अधिक सुंदर गुलाब नजर आते और वह उसे छोड़ आगे बढ़ जाता। ऐसा करते-करते वह बगीचे के मुहाने पर आ पहुंचा। लेकिन यहां उसे जो फूल नजर आए वे एकदम मुरझाए हुए थे।

🔷 आखिरकार वह फूल लिए बिना ही वापस आ गया। उसे खाली हाथ देखकर संत ने पूछा, 'क्या हुआ बेटा, गुलाब नहीं लाए?' युवक बोला, 'बाबा, मैं बगीचे के सुंदर और ताजा फूलों को छोड़कर आगे और आगे बढ़ता रहा, मगर अंत में केवल मुरझाए फूल ही बचे थे। आपने मुझे पलटकर फूल तोड़ने से मना किया था। इसलिए मैं गुलाब के ताजा और सुंदर फूल नहीं तोड़ पाया।' उस पर संत मुस्करा कर बोले, 'जीवन भी इसी तरह से है।

🔶 इसमें शुरुआत से ही कर्म करते चलना चाहिए। कई बार अच्छाई और सफलता प्रारंभ के कामों और अवसरों में ही छिपी रहती है। जो अधिक और सर्वोच्च की लालसा पाकर आगे बढ़ते रहते हैं, अंत में उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है।' युवक उनका आशय समझ गया।

👉 आज का सद्चिंतन 29 Nov 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 29 Nov 2017


👉 गुरुतत्त्व की गरिमा और महिमा (भाग 5)

🔶 यदि आप किसी आशीर्वाद की कामना से, देवी-देवता की सिद्धी की कामना से आए हैं तो मैं आपसे कहता हूँ कि आप अपने व्यक्तित्व को विकसित कीजिए ताकि आप निहाल हो सकें। दैवी कृपा मात्र इसी आधार पर मिल सकती है और इसके लिए माध्यम है श्रद्धा। श्रद्धा मिट्टी से गुरु बना लेती है। पत्थर से देवता बना देती है। एकलव्य के द्रोणाचार्य मिट्टी की मूर्ति के रूप में उसे तीरन्दाजी सिखाते थे। रामकृष्ण की काली भक्त के हाथों भोजन करती थी। उसी काली के समक्ष जोते ही विवेकानन्द नौकरी, पैसा भूलकर शक्ति, भक्ति माँगने लगे थे। आप चाहे मूर्ति किसी से भी खरीद लें। मूर्ति बनाने वाला खुद अभी तक गरीब है, पर मूर्ति में प्राण श्रद्धा से आते हैं। हम देवता का अपमान नहीं कर रहे। हमने खुद पाँच गायत्री माताओं की मूर्ति स्थापित की हैं, पर पत्थर में से हमने भगवान् पैदा किया है श्रद्धा से। मीरा का गिरधर गोपाल चमत्कारी था। विषधर सर्पों की माला, जहर का प्याला उसी ने पी लिया व भक्त को बचा लिया। मूर्ति में चमत्कार आदमी की श्रद्धा से आता है। श्रद्धा ही आदमी के अन्दर से भगवान् पैदा करती है।
               
🔷 श्रद्धा का आरोपण करने के लिए ही यह गुरुपूर्णिमा का त्यौहार है। श्रद्धा से हमारे व्यक्तित्व का सही मायने में उदय होता है। मैं अन्धश्रद्धा की बात नहीं करता। उसने तो देश को नष्ट कर दिया। श्रद्धा अर्थात् आदर्शों के प्रति निष्ठा। जितने भी ऋषि, सन्त हुए हैं, उनमें श्रेष्ठता के प्रति अटूट निष्ठा देखी जा सकती है। जो कुछ भी आप हमारे अन्दर देखते हैं, श्रद्धा का ही चमत्कार है। आज से ५५ वर्ष पूर्व हमारे गुरु की सत्ता हमारे पूजाकक्ष में आई। हमने सिर झुकाया व कहा कि आप हुक्म दीजिए, हम पालन करेंगे। अनुशासन व श्रद्धा-गुरुपूर्णिमा इन दोनों का त्यौहार है। अनुशासन आदर्शों के प्रति। यह कहना कि जो आप कहेंगे वही करेंगे।
  
🔶 श्रद्धा अर्थात् प्रत्यक्ष नुकसान दीखते हुए भी आस्था, विश्वास, आदर्शों को न खोना। श्रद्धा से ही सिद्धि आती है। हमें अपने आप पर घमण्ड नहीं है, पर विनम्रतापूर्वक कहते हैं कि वह देवशक्तियों के प्रति हमारी गहन श्रद्धा का ही चमत्कार है, जिसके बलबूते हमने किसी को खाली हाथ नहीं जाने दिया। गायत्री माता श्रद्धा में से निकलीं। श्रद्धा में मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं व सिद्धान्तों का संरक्षण करना पड़ता है। हमारे गुरु ने कहा संयम करो, कई दिक्कतें आएँगी पर उनका सामना करो। हमने चौबीस वर्ष तक तप किया। जायके को मारा। हम जौ की रोटी खाते। हमारी माँ बड़ी दुःखी होती। हमारी तपस्या की अवधि में उन्होंने भी हमारी वजह से कभी मिठाई का टुकड़ा तक न चखा। हमारे गायत्री मन्त्र में चमत्कार इसी तप से आया।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

👉 The Nectar of Generosity

🔶 This is a story from the life of Swami Ramteerth. He used to wander around the whole day preaching kindness and love for God. He used to cook dinner himself. One evening he came home very tired after along tour and preaching session and started cooking his dinner. Just then a group of kids came to him. Swamiji served all his dinner to the children. One onlooker was amazed and asked him, "Swamiji, you have given away all your dinner, now what will you have?" A bright smile crossed Swami Ramteerth's lips as he replied, "The purpose of dinner is to satiate hunger. It doesn't matter whose stomach it has gone into, it has served its purpose. But, to me, the joy of giving is million times the joy of receiving"

🔷 Another story is from the life of the great Indian poet Magh who was also famous for his generosity. His financial condition was not very sound, yet that made no difference to his generous attitude. One late night a poor man came to seek his help and said, "I have to arrange my daughter's marriage ceremony, but I am penniless. I have heard about your kindness. Would it be possible for you to help me, sir?"

🔶 Poet Magh's heart was filled with compassion. He looked around his house. There was nothing to offer. Suddenly, he saw the golden bracelets in the hands of his wife who was asleep. Very slowly, he took off one bracelet from his wife's hand, and said, "I do not have much to offer, please accept this gift."

🔷 Just then his wife opened her eyes and said with a smile, "How can a marriage ceremony be arranged with a single bracelet?" And she took off the other bracelet and gave it too. Magh and his wife were filled with a divine joy that cannot be described in words.

📖 From Pragya Puran

👉 आत्मचिंतन के क्षण 29 Nov 2017

🔶 अपनी यह आस्था चट्टान की तरह अडिग होनी चाहिए कि युग बदल रहा है, पुराने सड़े-गले मूल्याँकन नष्ट होने जा रहे हैं। दुनिया आज जिस लोभ-मोह और स्वार्थ, अनाचार से सर्वनाशी पथ पर दौड़ रही है, उसे वापिस लौटना पड़ेगा। अंध-परम्पराओं और मूढ़ मान्यताओं का अंत होकर रहेगा। अगले दिनों न्याय, सत्य और विवेक की ही विजय-वैजयन्ती फहरायेगी।       

🔷 खेद का विषय है कि हम नित्य प्रति के जीवन में विचार शक्ति का बड़ा अपव्यय करते हैं। जितनी शक्ति फिजूद बर्बाद होती है उसके थोड़े से भाग को यदि उचित रीति से इस्तेमाल करें तो स्वभाव तथा आदतें आसानी से बदली जा सकती है। जिस समय विचारधारा नीचे से ऊपर को चढ़ती है तो मनुष्य स्वयं अपना मित्र बन जाता है। जब विचारधारा ऊपर से नीचे को गिरती है तो वह अपने आप ही अपना शत्रु बन जाता है।

🔶 अच्छाई से बुराई की ओर पलायन का प्रमुख कारण है आज की अर्थ प्रधान मनोवृत्ति। हम हर काम पैसे के बल पर करना चाहते हैं। पैसा कमाना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, धर्म करना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, स्वस्थ रहना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, सुख-शान्ति, सम्मान भी चाहते हैं तो पैसे के बल पर-मानो पैसा एक ऐसा वरदान है, जिसके मिलते ही हमारी सारी कामनाएँपूर्ण हो जाएँगी, परन्तु हम यह कभी नहीं सोचते कि जिनके पास असंख्य धन है, क्या उन्हें यह सब कुछ प्राप्त है? क्या उनकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो गई हैं? क्या वे अपने जीवन में पूरी तरह से सुखी और संतुष्ट हैं?

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 गुरुतत्त्व की गरिमा और महिमा (भाग 4)

🔶 मैंने आपको दो शक्तियों के बारे में बताया। पहली श्रम की शक्ति, जो आपको दौलत, कीर्ति, यश देती है। दूसरी विचारणा की शक्ति, जो आपको प्रसन्नता व सही दृष्टिकोण देती है। तीसरी शक्ति रूहानी है। वह है आदमी का व्यक्तित्व। व्यक्ति का वजन। कुछ आदमी रुई के होते हैं व कुछ भारी। जिनकी हैसियत वजनदार व्यक्तित्व की होती है, वे जमाने को हिलाकर रख देते हैं। कीमत इनकी करोड़ों की होती है। वजनदार आदमी यदि हिन्दुस्तान की तवारीख से काट दें तो इसका बेड़ा गर्क हो जाए, जिसके लिए हम फूले फिरते हैं, वह वजनदार आदमियों का इतिहास है। वजनदारों में बुद्ध को शामिल कीजिए। वे पढ़े-लिखे थे कि नहीं, किन्तु वजनदार थे। हजारों सम्राटों ने, दौलतमन्दों ने थैलियाँ खाली कर दीं। बुद्ध ने जो माँगा वह उन्होंने दिया। हरिश्चन्द्र, सप्तर्षि, व्यास, दधीचि, शंकराचार्य, गाँधी, विवेकानन्द के नाम हमारी कौम के वजनदारों में शामिल कीजिए। इन्हीं पर हिन्दुस्तान की हिस्ट्री टिकी हुई है। यदि इन्हें खरीदा जा सका होता तो बेशुमार पैसा मिला होता।
               
🔷 आदमी की कीमत है उसका व्यक्तित्व। ऐसे व्यक्ति दुनिया की फिजाँ को बदलते हैं, देवताओं को अनुदान बरसाने के लिए मजबूर करते हैं। पेड़ अपनी आकर्षण शक्ति से बादलों को खींचते व बरसने के लिए मजबूर करते हैं। वजनदार आदमी अपने व्यक्तित्व की, मैग्नेट की शक्ति से देवशक्तियों को खींचते हैं। यदि आप भी दैवी अनुदान चाहते हो तो अपने व्यक्तित्व को वजनदार बनाना होगा। दैवी शक्तियाँ सारे ब्रह्माण्ड में छिपी पड़ी हैं। सिद्धियाँ जो आदमी को देवता, महामानव, ऋषि बनाती हैं, सब यहीं हमारे आसपास हैं। कभी इस धरती पर तैंतीस कोटि देवता बसते थे। सभी व्यक्तित्ववान थे। व्यक्तित्व एक बेशकीमती दौलत है, यह तथ्य आप समझिए। व्यक्तित्व सम्मान दिलाता है, सहयोग प्राप्त कराता है। गाँधी को मिला, क्योंकि उनके पास वजनदार व्यक्तित्व था।
  
🔶 व्यक्तित्व श्रद्धा से बनता है। श्रद्धा अर्थात् सिद्धान्तों व आदर्शों के प्रति अटूट व अगाध विश्वास। आदमी आदर्शों के लिए मजबूत हो जाता है तो व्यक्तित्व ऐसा वजनदार बन जाता है कि देवता तक नियन्त्रण में आ जाते हैं। विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस की शक्ति पाई, क्योंकि स्वयं को वजनदार वे बना सके। भिखारी को दस पैसे मिलते हैं। कीमत चुकाने वाले को, वजनदार व्यक्तित्व वाले को सिद्ध पुरुष का आशीर्वाद मिलता है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 160)

🌹  जीवन के उत्तरार्द्ध के कुछ महत्त्वपूर्ण निर्धारण

🔷 हर गाँव को एक तीर्थ रूप में विकसित करने के लिए तीर्थयात्रा टोलियाँ निकालने की योजना है। पद यात्रा को साइकिल यात्रा के रूप में मान्यता दी है। चार साइकिल सवारों का एक जत्था पीले वस्त्रधारण किए गले में पीला झोला लटकाए, साइकिलों पर पीले रंग के कमंडल टाँगे प्रवास चक्र पर निकलेगा। यह प्रवास न्यूनतम एक सप्ताह के, दस दिन के, पंद्रह दिन के अथवा अधिक से अधिक एक माह के होंगे। जिनका निर्धारण पहले ही हो चुका होगा। यात्रा जहाँ से आरम्भ होगी, एक गोल चक्र पूरा करती हुई वहीं समाप्त होगी। प्रातःकाल जलपान करके टोली निकलेगी। रास्ते में सहारे वाली दीवारों पर आदर्शवाक्य लिखती चलेगी। छोटी बाल्टियों में रंग घुला होगा। सुंदर अक्षर लिखने का अभ्यास पहले से ही कर लिया गया होगा। १. हम बदलेंगे-युग बदलेगा। २. हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। ३. नर और नारी एक समान, जाति वंश सब एक समान। वाक्यों की प्रकाशित शृंखलाएँ जो जहाँ उपयुक्त हों वहाँ उन्हें ब्रुश से लिखते चलना चाहिए।

🔶 रात्रि को जहाँ ठहरना निश्चय किया हो वहाँ शंख-घड़ियालों से गाँव की परिक्रमा लगाई जाए और घोषणा की जाए कि अमुक स्थान पर तीर्थयात्री मण्डली के भजन-कीर्तन होंगे।

🔷 गाँव में एक दिन के कीर्तन में जहाँ सुगम संगीत से उपस्थित जनों को आह्लादित किया जाएगा वहाँ उन्हें यह भी बताया जाएगा कि गाँव को सज्जनता और प्रगति की प्रतिमूर्ति बनाया जा सकता है। प्रौढ़ शिक्षा, बाल संस्कारशाला, स्वच्छता, व्यायामशाला, घरेलू शाक वाटिका, परिवार नियोजन, नशाबन्दी, मितव्ययिता, सहकारिता, वृक्षारोपण आदि सत्प्रवृत्तियों की महिमा और आवश्यकता बताते हुए यह बताया जाए कि इन सत्प्रवृत्तियों को मिलजुलकर किस प्रकार कार्यान्वित किया जा सकता है। और उन प्रयत्नों का कैसे भरपूर लाभ उठाया जा सकता  है।

🔶 सम्भव हो तो सभा के अंत में उत्साही प्रतिभा वाले लोगों की एक समिति बना दी जाए जो नियमित रूप से समयदान-अंशदान देकर इन सत्प्रवृत्तियों को कार्यान्वित करने में जुटे। गाँव की एकता और पवित्रता का ध्वज अशोक वृक्ष के रूप में दूसरे दिन प्रातःकाल स्थापित किया जाए। यह देव प्रतिमा उपयोगिता और भावना की दृष्टि से अतीव उपयोगी है।

🌹  क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/My_Life_Its_Legacy_and_Message/v2.183

http://literature.awgp.org/book/My_Life_Its_Legacy_and_Message/v4.22

👉 PROMISE YOURSELF

🔶 To be so strong that nothing can disturb your peace of mind.

🔷 To talk health, happiness and prosperity to every person you meet.

🔷 To make all your friends feel that there is something in them.

🔶 To look at the sunny side of everything and make your optimism come true.

🔷 To think only of best, to work only for best, and to expect only the best.

🔶 To be just as enthusiastic about the success of others as you are about your own.

🔷 To forget the mistakes of the past and press on to the greater achievements of the future.

🔶 To wear a cheerful countenance at all times and give every living creature you meet a smile.

🔷 To give so much time to the improvement of yourself that you have no time to criticize others.

🔶 To be too large for worry, too noble for anger, too strong for fear; and too happy to permit the presence of trouble.

🔷 To think well of yourself and to proclaim this fact to the world, not in loud words but in great deeds.

🔶 To live in the faith that the whole world is on your side as long as you are true to the best in yourself.

📖 From Akhand Jyoti

👉 आत्मचिंतन के क्षण 28 Nov 2017

🔶 जिन आन्दोलनों के पीछे तप नहीं होता वह कुछ समय के लिए तूफान भले ही मचा ले, पर अंत में वे असफल हो जाते हैं। जिन आत्माओं के पीछे तपस्या नहीं रहतीं वे कितनी ही चतुर, चालाक, गुणी, धनी क्यों न हो, महापुरुषों की श्रेणी में नहीं गिनी जा सकतीं। वे मनुष्य जिन्होंने मानव जाति को ऊँचा उठाया है, संसार की अशान्ति को दूर करके शान्ति की स्थापना की है, अपना नाम अमर किया है, युग प्रवाह को मोड़ा है, वे तप-शक्ति से संपन्न रहे हैं।      

🔷 हमारा कर्त्तव्य है कि हम लोगों को विश्वास दिलावें कि वे सब एक ही ईश्वर की संतान हैं और इस संसार में एक ही ध्येय को पूरा करना उनका धर्म है। उनमें से प्रत्येक मनुष्य इस बात के लिए बाधित है कि वह अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए जिन्दा रहे। जीवन का ध्येय कम या ज्यादा संपन्न होना नहीं, बल्कि अपने को तथा दूसरों को सदाचारी बनाना है। अन्याय और अत्याचार जहाँ कहीं भी हों उनके विरुद्धा आन्दोलन करना एकमात्र अधिकार नहीं, धर्म है और वह भी ऐसा धर्म जिसकी उपेक्षा करना पाप है। 

🔶 युग परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में जिन्हें घसीटा या धकेला गया है उन्हें अपने को आत्मा का, परमात्मा का प्रिय भक्त ही अनुभव करना चाहिए और शान्त चित्त से धैर्यपूर्वक उस पथ पर चलने की सुनिश्चित तैयारी करनी चाहिए। यदि आत्मा की पुकार अनसुनी करके वे लोभ-मोह के पुराने ढर्रे पर चलते रहें तो आत्म-धिक्कार की इतनी विकट मार पड़ेगी कि झंझट से बच निकलने और लोभ-मोह को न छोड़ने की चतुरता बहुत मँहगी पड़ेगी।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 भगवान् देगा

🔷 एक बार एक राजा था, वह जब भी मंदिर जाता, तो 2 फ़क़ीर उसके दाएं और बाएं बैठा करते! दाईं तरफ़ वाला कहता: "हे भगवान, तूने राजा को बहुत कुछ दिया है, मुझे भी दे दे!"

🔶 बाईं तरफ़ वाला कहता: "ऐ राजा! भगवान ने तुझे बहुत कुछ दिया है, मुझे भी कुछ दे दे!"

🔷 दाईं तरफ़ वाला फ़क़ीर बाईं तरफ़ वाले से कहता: "भगवान से माँग! बेशक वह सबसे बैहतर सुनने वाला है!"

🔶 बाईं तरफ़ वाला जवाब देता: "चुप कर बेवक़ूफ़

🔷 एक बार राजा ने अपने वज़ीर को बुलाया और कहा कि मंदिर में दाईं तरफ जो फ़क़ीर बैठता है वह हमेशा भगवान से मांगता है तो बेशक भगवान् उसकी ज़रूर सुनेगा, लेकिन जो बाईं तरफ बैठता है वह हमेशा मुझसे फ़रियाद करता रहता है, तो तुम ऐसा करो कि एक बड़े से बर्तन में खीर भर के उसमें अशर्फियाँ डाल दो और वह उसको दे आओ!

🔶 वज़ीर ने ऐसा ही किया... अब वह फ़क़ीर मज़े से खीर खाते-खाते दूसरे फ़क़ीर को चिड़ाता हुआ बोला: "हुह... बड़ा आया 'भगवान् देगा...' वाला, यह देख राजा से माँगा, मिल गया ना?"

🔷 खाने के बाद जब इसका पेट भर गया तो इसने खीर से भरा बर्तन उस दूसरे फ़क़ीर को दे दिया और कहा: "ले पकड़... तू भी खाले, बेवक़ूफ़

🔶 अगले दिन जब राजा  आया तो देखा कि बाईं तरफ वाला फ़क़ीर तो आज भी वैसे ही बैठा है लेकिन दाईं तरफ वाला ग़ायब है!

🔷 राजा नें चौंक कर उससे पूछा: "क्या तुझे खीर से भरा बर्तन नहीं मिला?"

🔶 फ़क़ीर: "जी मिला ना बादशाह सलामत, क्या लज़ीज़ खीर थी, मैंने ख़ूब पेट भर कर खायी!"

🔷 राजा: "फिर?"

🔶 फ़क़ीर: "फ़िर वह जो दूसरा फ़क़ीर यहाँ बैठता है मैंने उसको देदी, बेवक़ूफ़ हमेशा कहता रहता है: 'भगवान् देगा, भगवान् देगा!'

🔷 राजा मुस्कुरा कर बोला: "बेशक, भगवान् ने उसे दे दिया!"

👉 आज का सद्चिंतन 28 Nov 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 28 Nov 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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