🔴 गुरु, जो कि स्वयं ईश्वर हैं उनकी आवाज कहती हैं:- अहो में सदैव तुम्हारे साथ हूँ। तुम चाहे जहाँ जाओं वहाँ मैं उपस्थित हूँ ही। मैं तुम्हारे लिये ही जीता हूँ। अपनी अनुभूति के फल मैं तुम्हें देता हूँ। तुम मेरे ह्रदय- धन हो। मेरी आँखो के तारे हो। प्रभु में हम एक हैं। हमारा कार्य अनुभूति है। इसलिए मैं तुमसे अपनी एकता की अनुभूति करता हूँ। तुम्हें- संसार- मरुस्थल तथा संशय के वन में फेंक देने में मुझे भय नहीं होता, यह इसलिए कि मैं तुम्हारी शक्ति की मात्रा को जानता हूँ। मैं तुम्हें अनुभवों के बाद अनुभवों में भेजता हूँ, किन्तु तुम्हारे इस भ्रमण में मेरी दृष्टि सदैव तुम्हारा पीछा करती रहती हैं। क्या तुम पाप करते हो? पुण्य करते हो वह सब मेरी उपस्थिति में करते हो। मैं उन सभी को देखता हूँ।
🔵 मैं तुम्हारे सभी मनोभावों को जानता हूँ। सभी प्रकार के अनुभवों एवं विचारो द्वारा मैं मेरे और तुम्हारे बीच के संबंधों को दृढ़ करता हूँ। जब तक तुम मेरी मुक्ति में सहभागी नहीं होते वह मेरे लिए व्यर्थ है। दूसरे रूप में तुम मेरी ही आत्मा हो। मेरे दर्शनों को तुम जितना अधिक ग्रहण करते हो उतने ही अधिक हम आध्यात्मिक एकता में बढ़ते जाते हैं! पृथक व्यक्तित्व वो परदे गिरते जाते हैं!! तुम मेरी अपनी आत्मा हो। वे बंधन अत्यन्त निकट हैं। मेरे साथ तुम्हारे संबंध में मृत्यु और पृथकता का कोई अधिकार नही हैं। क्योंकि भले ही तुम्हारा जन्म किसी दूसरे स्थान में हुआ हो तथा जो शरीर मैंने धारण किया है उसे तुमने देखा भी न हो तब भी तुम मेरे एक दम अपने हो। शिष्यत्व, मेरा रूप देखने में नही हैं। किन्तु वह मेरी इच्छा को समझने में है। तुम मेरे जाल से कभी नही बच सकते।
🔴 मेरी इच्छाओं को ढूँढो़। उन शिक्षाओं का अनुसरण करो जो मेरे गुरु ने मुझे दी थीं और जिसे मेंने तुम्हें दिया है। जो एक है उसी का दर्शन करो, तब तुम मेरे सहस्रों शरीरों के साथ रहकर जितनी एकता का अनुभव करते उससे कहीं अधिक एकता का अनुभव करोगे। मेरी इच्छा और विचारों के प्रति स्थिरता और भक्ति में ही शिष्यत्व है। हम दोनों के बीच असीम प्रेम है। शांति में प्रवेश करो। गुरु और शिष्य का संबंध वज्र से भी अधिक कठोर होता है। वह मृत्यु से भी अधिक सशक्त होता है। क्योंकि वे अपरिमेय प्रेम तथा ईश्वरीय सर्वोच्च इच्छा से बँधे हुए हैं।
ओम तत् सत्
शिष्य प्रशंसा एवं कृतज्ञता से उत्तर देता है : --
🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर
🔵 मैं तुम्हारे सभी मनोभावों को जानता हूँ। सभी प्रकार के अनुभवों एवं विचारो द्वारा मैं मेरे और तुम्हारे बीच के संबंधों को दृढ़ करता हूँ। जब तक तुम मेरी मुक्ति में सहभागी नहीं होते वह मेरे लिए व्यर्थ है। दूसरे रूप में तुम मेरी ही आत्मा हो। मेरे दर्शनों को तुम जितना अधिक ग्रहण करते हो उतने ही अधिक हम आध्यात्मिक एकता में बढ़ते जाते हैं! पृथक व्यक्तित्व वो परदे गिरते जाते हैं!! तुम मेरी अपनी आत्मा हो। वे बंधन अत्यन्त निकट हैं। मेरे साथ तुम्हारे संबंध में मृत्यु और पृथकता का कोई अधिकार नही हैं। क्योंकि भले ही तुम्हारा जन्म किसी दूसरे स्थान में हुआ हो तथा जो शरीर मैंने धारण किया है उसे तुमने देखा भी न हो तब भी तुम मेरे एक दम अपने हो। शिष्यत्व, मेरा रूप देखने में नही हैं। किन्तु वह मेरी इच्छा को समझने में है। तुम मेरे जाल से कभी नही बच सकते।
🔴 मेरी इच्छाओं को ढूँढो़। उन शिक्षाओं का अनुसरण करो जो मेरे गुरु ने मुझे दी थीं और जिसे मेंने तुम्हें दिया है। जो एक है उसी का दर्शन करो, तब तुम मेरे सहस्रों शरीरों के साथ रहकर जितनी एकता का अनुभव करते उससे कहीं अधिक एकता का अनुभव करोगे। मेरी इच्छा और विचारों के प्रति स्थिरता और भक्ति में ही शिष्यत्व है। हम दोनों के बीच असीम प्रेम है। शांति में प्रवेश करो। गुरु और शिष्य का संबंध वज्र से भी अधिक कठोर होता है। वह मृत्यु से भी अधिक सशक्त होता है। क्योंकि वे अपरिमेय प्रेम तथा ईश्वरीय सर्वोच्च इच्छा से बँधे हुए हैं।
ओम तत् सत्
शिष्य प्रशंसा एवं कृतज्ञता से उत्तर देता है : --
🌹 क्रमशः जारी
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर