कौशिक नामक एक ब्राह्मण बड़ा तपस्वी था। तप के प्रभाव से उसमें बहुत आत्म बल आ गया था। एक दिन वह वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था कि ऊपर बैठी हुई चिड़िया ने उस पर बीट कर दी। कौशिक को क्रोध आ गया। लाल नेत्र करके ऊपर को देखा तो तेज के प्रभाव से चिड़िया जल कर नीचे गिर पड़ी। ब्राह्मण को अपने बल पर गर्व हो गया।
दूसरे दिन वह एक सद् गृहस्थ के यहाँ भिक्षा माँगने गया। गृहिणी पति को भोजन परोसने में लगी थी। उसने कहा-भगवान थोड़ी देर ठहरें अभी आपको भिक्षा दूँगी। इस पर ब्राह्मण को क्रोध आया कि मुझ जैसे तपस्वी की उपेक्षा करके यह पति सेवा को अधिक महत्व दे रही है। गृह स्वामिनी ने दिव्य दृष्टि से सब बात जान ली। उसने ब्राह्मण से कहा-क्रोध न कीजिए मैं चिड़िया नहीं हूँ। अपना नियत कर्तव्य पूरा करने पर आपकी सेवा करूँगी।
ब्राह्मण क्रोध करना तो भूल गया, उसे यह आश्चर्य हुआ कि चिड़िया वाली बात इसे कैसे मालूम हुई? ब्राह्मणी ने इसे पति सेवा का फल बताया और कहा कि इस संबंध में अधिक जानना हो तो मिथिला पुरी में तुलाधार वैश्य के पास जाइए। वे आपको अधिक बता सकेंगे।
भिक्षा लेकर कौशिक चल दिया और मिथिलापुरी में तुलाधार के घर जा पहुँचा। वह तौल नाप के व्यापार में लगा हुआ था। उसने ब्राह्मण को देखते ही प्रणाम अभिवादन किया ओर कहा-तपोधन कौशिक देव! आपको उस सद्गृहस्थ गृह स्वामिनी ने भेजा है सो ठीक है। अपना नियत कर्म कर लू तब आपकी सेवा करूँगा कृपया थोड़ी देर बैठिये। ब्राह्मण को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मेरे बिना बताये ही इसने मेरा नाम तथा आने का उद्देश्य कैसे जाना? थोड़ी देर में जब वैश्य अपने कार्य से निवृत्त हुआ तो उसने बताया कि मैं ईमानदारी के साथ उचित मुनाफ़ा लेकर अच्छी चीजें लोकहित की दृष्टि से बेचता हूँ। इस नियत कर्म को करने से ही मुझे यह दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई है। अधिक जानना हो तो मगध के निजात चाण्डाल के पास जाइए।
कौशिक मगध चल दिया और चाण्डाल के यहाँ पहुँचा। वह नगर की गंदगी झाड़ने में लगा हुआ था। ब्राह्मण को देखकर उसने साष्टांग प्रणाम किया और कहा-भगवान आप चिड़िया मारने जितना तप करके उस सद्गृहस्थ देवी और तुलाधार वैश्य के यहाँ होते हुए यहाँ पधारे यह मेरा सौभाग्य है। मैं नियत कर्म कर लू, तब आपसे बात करूँगा तब तक आप विश्राम कीजिए।
चाण्डाल जब सेवा वृत्ति से निवृत्त हुआ तो उन्हें संग ले गया और अपने वृद्ध माता पिता को दिखाकर कहा अब मुझे इनकी सेवा करनी है। मैं नियत कर्तव्य कर्मों में निरंतर लगा रहता हूँ इसी से मुझे दिव्य दृष्टि प्राप्त है।
तब कौशिक की समझ में आया कि केवल तप साधना से ही नहीं, नियत कर्तव्य कर्म निष्ठा पूर्व करते रहने से भी आध्यात्मिक लक्ष’ पूरा हो सकता है और सिद्धियाँ मिल सकती हैं।
📖 अखण्ड ज्योति अगस्त 1961