शुक्रवार, 7 जुलाई 2023

👉 सहयोग और सहिष्णुता (भाग 2)

संसार में सभी प्रकार के मनुष्य हैं। मूर्ख-विद्वान, रोगी-स्वस्थ, पापी-पुण्यात्मा, कायर-वीर, कटुवादी नम्र, चोर-ईमानदार, निन्दनीय-आदरास्पद, स्वधर्मी-विधर्मी, दया पात्र-दंडनीय, शुष्क-सरस, भोगी-त्यागी आदि परस्पर विरोधी स्थितियों के मनुष्य भरे पड़े हैं। उनकी स्थिति को देखकर तदनुसार उनसे भाषण, व्यवहार एवं सहयोग करें। उनकी स्थिति के आधार पर ही उन के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित करें।

कपट और असहिष्णुता यह दो बहुत बड़े पातक हैं। इन दोनों से बचने के लिए गायत्री के ‘गो’ अक्षर में निर्देश किया गया है। धोखा, विश्वासघात, छल, ढोंग, पाखण्ड यह मनुष्यता को कलंकित करने वाली सबसे निकृष्ट कोटि की कायरता एवं कमजोरी है। जिसको हम बुरा समझते हैं उससे लड़ाई रखें तो इतना हर्ज नहीं, परन्तु मित्र बनकर, मिले रहकर, मीठी-मीठी बातों से धोखे में रखकर उसका अनर्थ कर डालने में जो पाप है वह निष्कृष्ट कोटि का है। अनेक व्यक्ति ऊपर से मिले रहते हैं, हितैषी बनते हैं और भीतर ही भीतर छुरी चलाते हैं। बाहर से मित्र बनते हैं भीतर से शत्रु का काम करते हैं। विश्वास देते हैं कि हम तुम्हारे प्रति इस प्रकार का व्यवहार करेंगे परन्तु पीछे अपने वचन को भंग करके उसके विपरीत कार्य कर डालते हैं।

आजकल मनुष्य बड़ा कायर हो गया है। उसकी दुष्टता अब मैदानी लड़ाई में दृष्टिगोचर नहीं होती। प्राचीन काल में लोग जिनसे द्वेष करते थे, जिसका अहित करना चाहते थे, उसे पूर्व चेतावनी देकर मैदान में लड़ते निपटते थे। पर आज तो वीरता का दर्शन दुर्लभ हो रहा है। विश्वास दिलाकर, मित्र बनकर, बहका-फुसलाकर, किसी को अपने चंगुल में फँसा लेना और अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए उसके प्राणों तक का ग्राहक बन जाना, आज का एक व्यापक रिवाज हो गया है। जिधर दृष्टि उठाकर देखिए उधर ही छल, कपट, धोखा, विश्वासघात का बोल बाला दीखता है। गायत्री कहती है कि यह आत्मिक कायरता, मनुष्यता के पतन का निकृष्टतम चिन्ह है। इससे ऊपर उठे बिना कोई व्यक्ति ‘सच्चा मनुष्य’ नहीं कहला सकता।

किसी की धरोहर मार लेना, विष खिला देना, पहले से कोई वचन देकर समय पर उसे तोड़ देना, असली बताकर नकली चीज देना, मित्र बनकर शत्रुता के काम करना, यह बातें मनुष्यता के नाम पर कलंक हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- दिसम्बर 1952 पृष्ठ 2


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👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 7 July 2023

सही को अपनाने और गलत को छोड़ देने का साहस ही युग निर्माण परिवार के परिजनों की वह पूँजी है, जिसके आधार पर वे युग साधना की वेला में ईश्वर प्रदत्त उत्तरदायित्व का सही रीति से निर्वाह कर सकेंगे। ऐसी क्षमता पैदा करना हमारे लिए उचित भी है और आवश्यक भी।

युग परिवर्तन का अर्थ है- व्यक्ति परिवर्तन और यह महान् प्रक्रिया अपने से आरंभ होकर दूसरों पर प्रतिध्वनित होती है। यह तथ्य हमें हजार बार मान लेना चाहिए और उसे कूट-कूट कर नस-नस में भर लेना चाहिए कि दुनिया को पलटना जिस उपकरण के माध्यम से किया जा सकता है, वह अपना परिष्कृत व्यक्तित्व ही है।

युग निर्माण परिवार के प्रत्येक परिजन को निरन्तर आत्म-निरीक्षण करना चाहिए और देखना चाहिए कि भारत के औसत नागरिक के स्तर से वह अपने ऊपर अधिक खर्च तो नहीं करता? यदि करता है तो आत्मा की, न्याय की, कर्त्तव्य की पुकार सुननी चाहिए और उस अतिरिक्त खर्च को तुरन्त घटना चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...