👉 प्रतिभा संवर्धन का मूल्य भी चुकाया जाए
🔶 गाँधी युग में जो सत्याग्रही उभरकर आगे आए वे स्वतंत्रता सेनानी कहलाये, यशस्वी बने। ताम्रपत्र, पेंशन और आवागमन के मुफ्त पास प्राप्त करने के लाभों से गौरवान्वित हुए। जो उनमें वरिष्ठ और विशिष्ट थे, वे देश का शासन सूत्र संचालन करने वाले मूर्द्धन्य बने। बापू के संपर्क में रहे नेहरू, पटेल जैसे अनेकों रत्न ऐसे हैं जिनके स्मारकों को नमन किया जाता है। इतिहास के पृष्ठों पर यशोगाथा पढ़कर भाव-विभोर हुआ जाता है। यह उनकी प्रचंड प्रतिभा का प्रतिफल मात्र है। यदि वे संकीर्ण स्वार्थ परायणों की तरह अपने मतलब से ही मतलब रखते, तो मात्र कुछ सुख-साधनों से मन बहला पाते, प्रकाश स्तंभ बनने के सुयोग सौभाग्य से तो उन्हें वंचित ही रहना पड़ता। जो उन दिनों कृपणता धारण किए रहे वे अग्रगामियों के साथ अपनी तुलना करने पर ‘माया मिली न राम’ वाली अपनी मूर्खता पर पश्चाताप ही करते रहते हैं, पर बीता हुआ समय पुनः लौटता कहाँ है?
🔷 बुद्ध, गाँधी, दयानंद, विवेकानंद, बिनोवा जैसों की महान उपलब्धियाँ स्मरण करके हर विचारशील का अंत:करण उमंगता है कि यदि उन्हें ऐसा ही श्रेय मिल सका होता तो कितना अच्छा होता। उस अवसर को गँवाकर वे जिस ललक-लिप्सा की पूर्ति का दिवा-स्वप्न देखते रहते हैं, उसे भी कौन साकार कर पाता है? तृष्णा मरते समय तक प्रौढ़ ही बनी रहती है। शेखचिल्लियों का समुदाय कुबेर जैसा धनाढ्य और इंद्र जैसा प्रतापी बनने के सपने देखता है, पर अब निष्कर्ष की बेला में मात्र इतना ही प्रतीत होता है कि कोल्हू के बैल की तरह पिलते और पिसते हुए समय बीतता गया। श्मशान के भूत-पलीत की तरह डरते और डराते रहने के अतिरिक्त और कुछ हाथ न लगा।
🔶 भाग्यवान वे हैं, जिन्होंने आदर्शों के साथ रिश्ता जोड़ा, महानता का मार्ग अपनाया और ऐसा कुछ कर दिखाया, जिसका अनुकरण करते हुए असंख्यों को गौरव-गरिमा का लक्ष्य प्रदान करने वाला ऊर्जा भरा प्रकाश उपलब्ध होता रहे। मूर्खता और बुद्धिमत्ता के चयन के लिए इसी चौराहे पर सही निर्णय करने का अवसर है। वैसा अवसर सुयोग भी इन्हीं दिनों है, जिसका लाभ भगीरथ और अर्जुन ने अपनी उदात्त साहसिकता के बदले खरीदा था। वरदान अनायास ही किसी को कहाँ मिलते हैं? देवता कुपात्रों और असमर्थों पर कृपा कहाँ करते हैं। पात्रता की गहराई रहने पर ही वर्षा का पानी विशाल जलाशय के रूप में लहराता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार पृष्ठ 30
🔶 गाँधी युग में जो सत्याग्रही उभरकर आगे आए वे स्वतंत्रता सेनानी कहलाये, यशस्वी बने। ताम्रपत्र, पेंशन और आवागमन के मुफ्त पास प्राप्त करने के लाभों से गौरवान्वित हुए। जो उनमें वरिष्ठ और विशिष्ट थे, वे देश का शासन सूत्र संचालन करने वाले मूर्द्धन्य बने। बापू के संपर्क में रहे नेहरू, पटेल जैसे अनेकों रत्न ऐसे हैं जिनके स्मारकों को नमन किया जाता है। इतिहास के पृष्ठों पर यशोगाथा पढ़कर भाव-विभोर हुआ जाता है। यह उनकी प्रचंड प्रतिभा का प्रतिफल मात्र है। यदि वे संकीर्ण स्वार्थ परायणों की तरह अपने मतलब से ही मतलब रखते, तो मात्र कुछ सुख-साधनों से मन बहला पाते, प्रकाश स्तंभ बनने के सुयोग सौभाग्य से तो उन्हें वंचित ही रहना पड़ता। जो उन दिनों कृपणता धारण किए रहे वे अग्रगामियों के साथ अपनी तुलना करने पर ‘माया मिली न राम’ वाली अपनी मूर्खता पर पश्चाताप ही करते रहते हैं, पर बीता हुआ समय पुनः लौटता कहाँ है?
🔷 बुद्ध, गाँधी, दयानंद, विवेकानंद, बिनोवा जैसों की महान उपलब्धियाँ स्मरण करके हर विचारशील का अंत:करण उमंगता है कि यदि उन्हें ऐसा ही श्रेय मिल सका होता तो कितना अच्छा होता। उस अवसर को गँवाकर वे जिस ललक-लिप्सा की पूर्ति का दिवा-स्वप्न देखते रहते हैं, उसे भी कौन साकार कर पाता है? तृष्णा मरते समय तक प्रौढ़ ही बनी रहती है। शेखचिल्लियों का समुदाय कुबेर जैसा धनाढ्य और इंद्र जैसा प्रतापी बनने के सपने देखता है, पर अब निष्कर्ष की बेला में मात्र इतना ही प्रतीत होता है कि कोल्हू के बैल की तरह पिलते और पिसते हुए समय बीतता गया। श्मशान के भूत-पलीत की तरह डरते और डराते रहने के अतिरिक्त और कुछ हाथ न लगा।
🔶 भाग्यवान वे हैं, जिन्होंने आदर्शों के साथ रिश्ता जोड़ा, महानता का मार्ग अपनाया और ऐसा कुछ कर दिखाया, जिसका अनुकरण करते हुए असंख्यों को गौरव-गरिमा का लक्ष्य प्रदान करने वाला ऊर्जा भरा प्रकाश उपलब्ध होता रहे। मूर्खता और बुद्धिमत्ता के चयन के लिए इसी चौराहे पर सही निर्णय करने का अवसर है। वैसा अवसर सुयोग भी इन्हीं दिनों है, जिसका लाभ भगीरथ और अर्जुन ने अपनी उदात्त साहसिकता के बदले खरीदा था। वरदान अनायास ही किसी को कहाँ मिलते हैं? देवता कुपात्रों और असमर्थों पर कृपा कहाँ करते हैं। पात्रता की गहराई रहने पर ही वर्षा का पानी विशाल जलाशय के रूप में लहराता है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार पृष्ठ 30