लेखकों दार्शनिकों का अब एक नया वर्ग उठेगा। वह अपनी प्रतिभा के बलबूते एकाकी सोचने और एकाकी लिखने का प्रयत्न करेगा। उन्हें उद्देश्य में सहायता मिलेगी। मस्तिष्क के कपाट खुलते जायेंगे और उन्हें सूझ पड़ेगा कि इन्हीं दिनों क्या लिखने योग्य है और मात्र वही लिखा जाना है।
क्या बिना सम्पन्न लोगों की सहायता लिए, बिना वर्तमान पुस्तक विक्रेताओं की मोटे मुनाफे की माँग पूरी किये, ऐसा हो सकता है कि जन-साधारण का उपयोग लोक साहित्य लागत मूल्य पर छपने लगे और घर-घर तक पहुँचने लगे। हमारा विश्वास है कि यह असम्भव नहीं है। समय अपनी आवश्यकता पूरी कराने के लिए रास्ता निकालेगा और छाये हुए अंधेरे में किसी चमकने वाले सितारे का प्रकाश दृष्टिगोचर होगा।
दार्शनिक और वैज्ञानिक दोनों ही मुड़ेंगे। इन दोनों खदानों में से ऐसे नर रत्न निकलेंगे जो उलझी हुई समस्याओं को सुलझाने में आश्चर्यजनक योगदान दे सकें ऐसी परिस्थितियाँ विनिर्मित करने में हमारा योगदान होगा, भले ही परोक्ष होने के कारण लोग उसे अभी देख या समझ सकें।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- जुलाई 1984 पृष्ठ 19
क्या बिना सम्पन्न लोगों की सहायता लिए, बिना वर्तमान पुस्तक विक्रेताओं की मोटे मुनाफे की माँग पूरी किये, ऐसा हो सकता है कि जन-साधारण का उपयोग लोक साहित्य लागत मूल्य पर छपने लगे और घर-घर तक पहुँचने लगे। हमारा विश्वास है कि यह असम्भव नहीं है। समय अपनी आवश्यकता पूरी कराने के लिए रास्ता निकालेगा और छाये हुए अंधेरे में किसी चमकने वाले सितारे का प्रकाश दृष्टिगोचर होगा।
दार्शनिक और वैज्ञानिक दोनों ही मुड़ेंगे। इन दोनों खदानों में से ऐसे नर रत्न निकलेंगे जो उलझी हुई समस्याओं को सुलझाने में आश्चर्यजनक योगदान दे सकें ऐसी परिस्थितियाँ विनिर्मित करने में हमारा योगदान होगा, भले ही परोक्ष होने के कारण लोग उसे अभी देख या समझ सकें।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- जुलाई 1984 पृष्ठ 19