रविवार, 20 नवंबर 2016
👉 आत्म-विश्वास और सफलता
🔴 ईश्वर ने हमें अपनी सर्वोत्कृष्ट कृति के रूप से विनिर्मित किया है। वह अविश्वस्त एवं अप्रमाणिक नहीं हो सकता, इसलिए हमें अपने ऊपर विश्वास करना चाहिये। ईश्वर हमारे भीतर निवास करता है। जहाँ ईश्वर निवास करे, वहाँ दुर्बलता की बात क्यों सोची जानी चाहिए? जब छोटा-सा शस्त्र या पुलिस कर्मचारी साथ होता है, तो विश्वासपूर्वक निश्चिन्त रह सकना सम्भव हो जाता है, फिर जब कि असंख्य वज्रों से बढ़ कर शस्त्र और असंख्य सेनापतियों से भी अधिक सामर्थ्यवान् ईश्वर हमारे साथ है, तब किसी से डरने या आतंकित होने की आवश्यकता ही क्यों होनी चाहिए।
🔵 जो अपने ऊपर भरोसा करता है, उसी का दूसरे लोग भी भरोसा करते हैं। जो अपनी सहायता आप करता है, उसी की ईश्वर भी सहायता करता है। जिसने अपने हाथ पैर चलाना बन्द कर दिया, उसका डूबना निश्चित है। हो सकता है कि किसी निष्ठावान को भी कभी असफल होना पड़ा है पर संसार में आज तक जितने सफल हुए हैं, उनमें से प्रत्येक को आत्म विश्वासी बनकर ही आगे बढ़ना पड़ा है। हो सकता है किसी किसान की फसल मारी जाय, पर जिसे धान काटने का सौभाग्य मिला है, उनमें से प्रत्येक को बोने और सींचने की कठोर प्रक्रिया को अपनाना ही पड़ता है।
🔴 आत्म-विश्वास शक्ति का स्रोत है। उसी के सहारे किसी के लिए आगे बढ़ना सम्भव हो सकता है। भाग्य का निर्माण ईश्वर नहीं, आत्म-विश्वास करता है। जो निष्ठापूर्वक पुरुषार्थ में संलग्न है और हार-जीत की चिन्ता न करते हुए आगे ही बढ़ता जाता है, उस आत्म-विश्वासी के लिए पर्वतों को भी रास्ता देना पड़ता है।
🌹 - ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
🌹 ~अखण्ड ज्योति फरवरी 1965 पृष्ठ 1
🔵 जो अपने ऊपर भरोसा करता है, उसी का दूसरे लोग भी भरोसा करते हैं। जो अपनी सहायता आप करता है, उसी की ईश्वर भी सहायता करता है। जिसने अपने हाथ पैर चलाना बन्द कर दिया, उसका डूबना निश्चित है। हो सकता है कि किसी निष्ठावान को भी कभी असफल होना पड़ा है पर संसार में आज तक जितने सफल हुए हैं, उनमें से प्रत्येक को आत्म विश्वासी बनकर ही आगे बढ़ना पड़ा है। हो सकता है किसी किसान की फसल मारी जाय, पर जिसे धान काटने का सौभाग्य मिला है, उनमें से प्रत्येक को बोने और सींचने की कठोर प्रक्रिया को अपनाना ही पड़ता है।
🔴 आत्म-विश्वास शक्ति का स्रोत है। उसी के सहारे किसी के लिए आगे बढ़ना सम्भव हो सकता है। भाग्य का निर्माण ईश्वर नहीं, आत्म-विश्वास करता है। जो निष्ठापूर्वक पुरुषार्थ में संलग्न है और हार-जीत की चिन्ता न करते हुए आगे ही बढ़ता जाता है, उस आत्म-विश्वासी के लिए पर्वतों को भी रास्ता देना पड़ता है।
🌹 - ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
🌹 ~अखण्ड ज्योति फरवरी 1965 पृष्ठ 1
👉 मैं क्या हूँ? What Am I? (भाग 34)
🌞 तीसरा अध्याय
🔴 उन मानसिक वस्तुओं को पृथक करके तुम उन पर विचार कर रहे हो, इसी से सिद्घ होता है कि वह वस्तुएँ तुम से पृथक हैं। पृथकत्व की भावना अभ्यास द्वारा थोड़े समय बाद लगातार बढ़ती जाएगी और शीध्र ही एक महान आकार में प्रकट होगी।
🔵 यह मत सोचिए कि हम इस शिक्षा द्वारा यह बता रहे हैं कि भावनाएँ कैसे त्याग करें। यदि तुम इसी शिक्षा की सहायता से दुष्प्रवृत्तियों को त्याग सकने की क्षमता प्राप्त कर सको, तो बहुत प्रसन्नता की बात है, पर हमारा यह मन्तव्य नहीं है, हम इस समय तो यही सलाह देना चाहते हैं कि अपनी बुरी-भली सब दुष्प्रवृत्तियों को जहाँ की तहाँ रहने दो और ऐसा अनुभव करो कि 'अहम्' इन सबसे परे एवं स्वतंत्र है। जब तुम 'अहम्' के महान् स्वरूप का अनुभव कर लो, तब लौट आओ और उन वृत्तियों को जो अब तक तुम्हें अपनी चाकर बनाये हुए थीं, मालिक की भाँति उचित उपयोग में लाओ, अपनी वृत्तियों को अहम् से परे के अनुभव में पटकते समय डरो मत।
🔴 अभ्यास समाप्त करने के बाद फिर वापस लौट आओगे और उनमें से अच्छी वृत्तियों को इच्छानुसार काम में ला सकोगे। अमुक वृत्ति ने मुझे बहुत अधिक बाँध लिया है, उससे कैसे छूट सकता हूँ, इस प्रकार की चिन्ता मत करो। यह चीजें बाहर की हैं। इसके बंधन में बँधने से पहले 'अहम्' था और बाद में भी बना रहेगा, जब अपने को पृथक् करके उनका परीक्षण कर सकते हो, तो क्या कारण है कि एक ही झटके में उठाकर अलग नहीं फेंक सकोगे? ध्यान देने योग्य बात यह है कि तुम इस बात का अनुभव और विश्वास कर रहे हो कि 'मैं' बुद्घि और इन शक्तियों का उपयोग कर रहा हूँ। यही 'मैं' जो शक्तियों को उपकरण मानता हैं, मन का स्वामी 'अहम् 'है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 *पं श्रीराम शर्मा आचार्य*
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/mai_kya_hun/part3.2
🔴 उन मानसिक वस्तुओं को पृथक करके तुम उन पर विचार कर रहे हो, इसी से सिद्घ होता है कि वह वस्तुएँ तुम से पृथक हैं। पृथकत्व की भावना अभ्यास द्वारा थोड़े समय बाद लगातार बढ़ती जाएगी और शीध्र ही एक महान आकार में प्रकट होगी।
🔵 यह मत सोचिए कि हम इस शिक्षा द्वारा यह बता रहे हैं कि भावनाएँ कैसे त्याग करें। यदि तुम इसी शिक्षा की सहायता से दुष्प्रवृत्तियों को त्याग सकने की क्षमता प्राप्त कर सको, तो बहुत प्रसन्नता की बात है, पर हमारा यह मन्तव्य नहीं है, हम इस समय तो यही सलाह देना चाहते हैं कि अपनी बुरी-भली सब दुष्प्रवृत्तियों को जहाँ की तहाँ रहने दो और ऐसा अनुभव करो कि 'अहम्' इन सबसे परे एवं स्वतंत्र है। जब तुम 'अहम्' के महान् स्वरूप का अनुभव कर लो, तब लौट आओ और उन वृत्तियों को जो अब तक तुम्हें अपनी चाकर बनाये हुए थीं, मालिक की भाँति उचित उपयोग में लाओ, अपनी वृत्तियों को अहम् से परे के अनुभव में पटकते समय डरो मत।
🔴 अभ्यास समाप्त करने के बाद फिर वापस लौट आओगे और उनमें से अच्छी वृत्तियों को इच्छानुसार काम में ला सकोगे। अमुक वृत्ति ने मुझे बहुत अधिक बाँध लिया है, उससे कैसे छूट सकता हूँ, इस प्रकार की चिन्ता मत करो। यह चीजें बाहर की हैं। इसके बंधन में बँधने से पहले 'अहम्' था और बाद में भी बना रहेगा, जब अपने को पृथक् करके उनका परीक्षण कर सकते हो, तो क्या कारण है कि एक ही झटके में उठाकर अलग नहीं फेंक सकोगे? ध्यान देने योग्य बात यह है कि तुम इस बात का अनुभव और विश्वास कर रहे हो कि 'मैं' बुद्घि और इन शक्तियों का उपयोग कर रहा हूँ। यही 'मैं' जो शक्तियों को उपकरण मानता हैं, मन का स्वामी 'अहम् 'है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 *पं श्रीराम शर्मा आचार्य*
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/mai_kya_hun/part3.2
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