शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

👉 भक्तिगाथा (भाग ७५)

महारास की रसमयता से प्रकट हुआ है भक्तिशास्त्र

देवर्षि का यह सूत्र सभी को भक्तिकाव्य की मधुर-सम्मोहक पंक्ति की तरह लगा। यह सच सभी अनुभव कर रहे थे कि अन्य शास्त्रों की तो चर्चा होती है, विचार किया जाता है, विमर्श होता है, उनके उपदेश होते हैं, पर भक्ति की तो बात ही अनूठी है। इसमें भला चर्चा और विमर्श क्या? तर्कों के गणितीय समीकरणों का भला भक्ति में क्या काम? बात भक्ति की चले तो स्वयं ही गीत गूंजने लगते हैं। बात भक्ति की हो तो साधना की पथरीली राहों पर स्वयं ही सुमन सज जाते हैं। कदम भक्ति की डगर पर बढ़े तो ग्रीष्म का आतप, शिशिर की ठिठुरन, वर्षा का प्रचण्ड वेग, सबके सब ऋतुराज वसन्त में रूपान्तरित हो जाते हैं। सत्य यही है कि भक्ति बोलती नहीं, गाती है। भक्ति बोलती नहीं, नाचती है।

भक्ति की यह अनुभूति समष्टि में तरंगित होती रही। जल-थल और नभ में यह भक्तिधुन तैरती रही। हिमवान के शैलशिखरों में भी आज भक्ति का अन्तःस्रोत प्रकाशित हो उठा। अपनी किरणों से अमृतवृष्टि कर रहे चन्द्रदेव का अस्तित्त्व भी भावों में भीग गया। और ऐसा स्वाभाविक भी था- ‘चन्द्रमा मनसो जातः’ इस वेदवाणी के अनुसार चन्द्रमा प्रभु के मन का बिम्ब ही तो है। भक्ति की इस भावचर्चा में जब भक्तों के मन भीगे हुए हैं तो भला भगवान का मन क्यों न भीगे। देवर्षि नारद ने भक्तिरस में सिक्त चन्द्रमा की ओर देखा, फिर मुस्करा कर मौन हो गए।

उनकी यह मुस्कराहट और फिर उनका मौन होना, इसे सभी ने देखा। जहाँ अन्यों ने कुछ नहीं कहा, वहीं ब्रह्मर्षि वसिष्ठ तनिक मुखर होकर किन्तु मृदु स्वर में बोले- ‘‘कुछ कहें देवर्षि! आखिर आप भी तो भक्ति के आचार्य हैं। आपकी अनुभूतियों में तो भक्ति के साधन के गीत सदा ही गूंजते होंगे।’’ वसिष्ठ के इस कथन को शिरोधार्य करते हुए देवर्षि ने विनम्र भाव से कहा, ‘‘आप सदृश ब्रह्मर्षियों का आशीष अवश्य भगवत्कृपा बनकर मेरे अन्तर्भावों में गूँजता है। परन्तु जहाँ तक भक्ति के साधन गीतों के गायन की बात है, तो आज तो वह समस्त सृष्टि में गूँज रहे हैं।’’ ऐसा कहते हुए देवर्षि ने आकाश में तारागणों के साथ मुक्त विहार करते हुए चन्द्रमा की ओर निहारा।

देवर्षि की इस दृष्टि और उनके मन के अन्तर्भावों को ब्रह्मर्षि वसिष्ठ सहित सभी महर्षि एवं देवगण समझ गए, उन्हें भान हुआ कि आज शरद पूर्णिमा है। उसी की ओर इंगित कर रहे हैं। शरद पूर्णिमा तो सदा ही भक्ति का महारास बनकर सृष्टि में अवतरित होती है। इन पावन क्षणों में प्रकृति अनगिन रूप धर कर विराट पुरुष को अपनी भक्ति अर्पित करती है। इस महारास में प्रकृति स्वयं भक्त बनकर भक्ति के अनन्त-अनन्त रूपों को प्रस्तुत करती है और उसके सभी रूपों को स्वयं भगवान स्वीकारते हैं। भक्ति और भक्त उन भगवान में समाते हैं, उनसे एकात्म होते हैं। जिनके पास आध्यात्मिक दृष्टि है, सृष्टि की सूक्ष्मता का ज्ञान है, जो प्रकृति और पुरुष के अन्तर्मिलन को निहारने में समर्थ हैं, केवल वे ही उनके बाह्य मिलन को अनुभव कर सकते हैं। भक्ति के सभी आचार्यों ने इन सूक्ष्मताओं को देख परख कर ही तो भक्ति के साधनों का गान किया है।

शरद पूर्णिमा की इस अनुपम छटा ने देवर्षि को अपने आत्मभावों में निमज्जित कर दिया है। वे जैसे स्वयं से ही कह रहे थे- ‘‘द्वापर युग में ब्रजमण्डल में एक परमदिव्य शरद पूर्णिमा की निशावेला में विराट पुरुष एवं प्रकृति का यह सम्मिलन साकार हुआ था। इस विरल मुहूर्त में भक्ति के अनोखे गीत गूँजे थे और भक्ति के सभी साधनों ने नृत्य किया था। कालिन्दी की लहरों के सान्निध्य में, कदम्ब के वृक्षों की छांव में, यह महारास हुआ था। विराट पुरुष स्वयं योगेश्वर कृष्ण का रूप लेकर आए थे। प्रकृति ने ब्रजबालाओं का बाना पहना था। चन्द्रदेव उस घड़ी में सर्वथा मुक्त भाव से अमृतवृष्टि कर रहे थे।

उन पलों में भक्ति-भक्त एवं भगवान तीनों ही सम्पूर्ण रूप से एकाकार हो रहे थे। जीवन चेतना का हर पहलू जुड़ रहा था, मिल रहा था, समा रहा था। वहाँ हास्य था, उल्लास था, उछाह था, मुक्त मिलन था। महारास था, परन्तु आसक्ति का लेश भी न था, विषय वासना तनिक भी न थी। चन्द्रदेव की धवल चन्द्रिका की भाँति अन्तः-बाह्य सभी आयामों में सम्पूर्ण निर्मलता थी। गोपिकाएँ अपने गोपेश्वर के प्रति अर्पित हो रही थीं। जैसे समस्त सरिताएँ एक साथ ही सागर में समा जाती हैं, ठीक वैसे ही गोपबालाएँ योगेश्वर कृष्ण में समा रही थीं। प्रकृति का कण-कण, रसमय-प्रभुमय हो रहा था। यह रसमयता, यह प्रभुमयता ही तो भक्ति है। जहाँ यह है, वहाँ भक्ति के समस्त साधन स्वयं ही प्रकट हो जाते हैं। वहाँ सहज ही भक्ति के गीत गूँजते हैं।’’ धाराप्रवाह बोलते-बोलते देवर्षि अचानक रुके, फिर मुस्कराए और अपने प्रिय नारायण का स्मरण करते हुए बोले- ‘‘मेरा सम्पूर्ण भक्तिशास्त्र उस महारास की रसमयता से ही तो प्रकट हुआ है।’’

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 भक्तिगाथा नारद भक्तिसूत्र का कथा भाष्य पृष्ठ १४०

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...