मंगलवार, 8 नवंबर 2016

👉 मैं क्या हूँ? What Am I? (भाग 23)

🌞 दूसरा अध्याय

🔴 हमसे भी जिन परमाणुओं का काम पड़ेगा वह स्वभावतः हमारी परिक्रमा करेंगे क्योंकि हम चेतना के केन्द्र हैं। इस बिल्कुल स्वाभाविक चेतना को भलीभाँति हृदयंगम कर लेने से तुम्हें अपने अन्दर एक विचित्र परिवर्तन मालूम पड़ेगा। ऐसा अनुभव होता हुआ प्रतीत होगा कि मैं चेतना का केन्द्र हूँ और मेरा संसार, मुझसे सम्बन्धित समस्त भौतिक पदार्थ मेरे इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं। मकान, कपड़े, जेवर-धन, दौलत आदि मुझसे सम्बन्धित हैं, पर वह मुझमें व्याप्त नहीं, बिल्कुल अलग है। अपने को चेतना का केन्द्र समझने वाला, अपने को माया से सम्बन्धित मानता है, पर पानी में पड़े हुए कमल के पत्ते की तरह कुछ ऊँचा उठा रहता है, उसमें डूब नहीं जाता।

🔵  जब वह अपने को तुच्छ, अशक्त और बँधे हुए जीव की अपेक्षा चेतन-सत्ता और प्रकाश-केन्द्र स्वीकार करता है, तो उसे उसी के अनुसार परिधान भी मिलते हैं। बच्चा जब बड़ा हो जाता है तो उसके छोटे कपड़े उतार दिये जाते हैं। अपने को हीन, नीच और शरीराभिमानी तुच्छ जीव जब तक समझोगे, तब तक उसी के लायक कपड़े मिलेंगे। लालच, भोगेच्छा, कामेच्छा, चाटुकारिता, स्वार्थपरता आदि गुण तुम्हें पहनने पड़ेंगे, पर जब अपने स्वरूप को महानतम अनुभव करोगे, तब यह कपड़े निरर्थक हो जायेंगे। छोटा बच्चा कपड़े पर टट्टी कर कर देने में कुछ बुराई नहीं समझता, किन्तु बड़ा होने पर वह ऐसा करने से घृणा करता है।

🔴 कदाचित बीमारी की दशा में वह ऐसा कर भी बैठे, तो अपने को बड़ा धिक्कारता है और शर्मिन्दा होता है। नीच विचार, हीन भावनाएँ, पाशविक इच्छाएँ और क्षुद्र स्वार्थपरता ऐसे ही गुण हैं, जिन्हें देखकर आत्म-चेतना में विकसित हुआ मनुष्य घृणा करता है। उसे अपने आप वह गुण मिल गये होते हैं, जो उसके इस शरीर के लिए उपयुक्त हैं। उदारता, विशाल हृदयता, दया, सहानूभूति, सच्चाई प्रभृति गुण ही तब उसके लायक ठीक वस्त्र होते हैं। बड़ा होते ही मेढक की लम्बी पूँछ जैसे स्वयमेव झड़ पड़ती है, वैसे ही दुर्गुण उससे विदा होने लगते हैं और वयोवृद्घ हाथी के दाँत की तरह सद्गुण क्रमशः बढ़ते रहते हैं।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/Main_Kya_Hun/v4.2

👉 हमारी युग निर्माण योजना (भाग 12)

🌹युग-निर्माण योजना का शत-सूत्री कार्यक्रम

🔵 यदि अपना दृष्टिकोण बदल दिया जाय, संयम और नियमितता की नीति अपना ली जाय तो फिर न बीमारी रहे और न कमजोरी। अपनी आदतें ही संयमशीलता और आहार-विहार में व्यवस्था रखने की बनानी होंगी। इस निर्माण में जिसे जितनी सफलता मिलेगी वह उतना आरोग्य लाभ का आनन्द भोग सकेगा। इस संदर्भ में पालन करने योग्य 10 नियम नीचे दिए जा रहे हैं।

🔴 1. दो बार का भोजनभोजन, दोपहर और शाम को दो बार ही किया जाय। प्रातः दूध आदि हल्का पेय पदार्थ लेना पर्याप्त है। बार-बार खाते रहने की आदत बिलकुल छोड़ देनी चाहिए।

🔵 2. भोजन को ठीक तरह चबाया जाय —भोजन उतना चबाना कि वह सहज ही गले से नीचे उतर जाय। इसकी आदत ऐसे डाली जा सकती है कि रोटी अकेली, बिना साग के खावे और साग को अलग से खावें। साग के साथ गीली होने पर रोटी कम चबाने पर भी गले के नीचे उतर जाती है। पर यदि उसे बिना शाक के खाया जा रहा है तो उसे बहुत देर चबाने पर ही गले से नीचे उतारा जा सकेगा। यह बात अभ्यास के लिये है। जब आदत ठीक हो जाय तो शाक मिलाकर भी खा सकते हैं।

🔴 3. भोजन अधिक मात्रा में न हो आधा पेट भोजन, एक चौथाई जल, एक चौथाई सांस आने-जाने के लिये खाली रखना चाहिए। अर्थात् भोजन आधे पेट किया जाय।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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👉 समाधि के सोपान Samadhi Ke Sopan (अन्तिम भाग )

🔵 और उसके पश्चात् ध्यान की घड़ियों में मैं सदा बहार तथा भीतर एक प्राणवन्त उपस्थिति का अनुभव करता रहा एवं आनन्द में विभोर हो कर मैंने महामंत्र सुना तथा उसे दुहराता रहा।
ओम्! सदैव! सदैव! के लिये आपकी आत्मा मैं हूँ। आपकी शक्ति अनंत है।
उठो जागो और जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाय बढ़ते चलो। तुम ब्रह्म हो! तुम ब्रह्म हो!!

ओम्! ओम्!! ओम!!!


🔴 अगर आप भारत को समझना चाहते हैं, तो विवेकानन्द का अध्ययन कीजिए। उनमें सब सकारात्मक है, नकारात्मक कुछ भी नहीं है।…….
🌹 -विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर

🔵 निस्सन्देह किसी से स्वामी विवेकानन्द के लेखों के लिए भूमिका की अपेक्षा नहीं है। वे स्वयं ही अप्रतिहत आकर्षण हैं।….
🌹 - महात्मा गाँधी

🔴 उनके शब्द महान संगीत हैं, बोथोवन-शैली के टुकड़े हैं, हैंडेल के समवेत गान के छन्द- प्रवाह की भाँति उद्दीपक लय हैं। शरीर में विद्युत्स्पर्श के-से आघात की सिहरन का अनुभव किये बिना मैं उनके इन वचनों का स्पर्श नहीं कर सकता जो तीस वर्ष की दूरी पर पुस्तकों के पृष्ठों में बिखरे पड़े हैं। और जब वे नायक के मुख से ज्वलन्त शब्दों में निकले होंगे तब तो न आघात एवं आवेग पैदा हुए होंगे!
🌹 -रोमाँ रोलाँ

🌹 समाप्त
🌹 एफ. जे. अलेक्जेन्डर

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...