🔷 जब तक नारी वस्त्रों में, बनाव, शृंगार में, फैशन में, जेवर-आभूषणों में अपना व्यक्तित्व देखती रहेगी, पुरुषों के लिए कामिनी बनकर उनकी वासनाओं की तृप्ति के लिए ही अपना जीवन समझती रहेगी या खा-पीकर घर की चहारदीवारी में पड़े रहना ही अपना आदर्श समझेंगी, तब तक कोई भी शक्ति, नियम, कानून उसका उद्धार नहीं कर सकेंगे।
🔶 स्त्रियों में सभ्यता के नाम पर बढ़ता हुआ फैशन, बनाव, शृंगार, चमकीले, भड़कीले वस्त्र आदि गृहस्थ जीवन की स्थिति और मर्यादाओं पर बहुत बुरा प्रभाव डाल रहे हैं और इसके प्रभाव से समाज में अनेकों बुराइयाँ फैलती जा रही हंै। हालांकि सौन्दर्य, स्वास्थ्य, स्वच्छता, व्यवस्थित रहन-सहन के आवश्यक अंग हैं, किन्तु कृत्रिमता, बाह्य साधनों के प्रयोग से नित-नूतन मेकअप बनाना अस्वाभाविक और गलत रास्ता है। समाज में बढ़ते अनाचार, दुराचार के प्रोत्साहन में नारी के ये बनाव-शृंगार भी कम जिम्मेदार नहीं है।
🔷 परिवार बसा लेना आसान है, लोग आये दिन बसाते ही रहते हैं, उसका पालन भी कोई विशेष कठिन नहीं। सभी उसका पालन करते हैं, किन्तु परिवार को समुन्नत एवं सुसंस्कृत बनाने के लिए उसका निर्माण करना एक श्रम साध्य कर्त्तव्य है। अधिकतर लोग परिजनों के लिए अधिकाधिक सुख-सुविधाएँ देने, उनके लिए अच्छा भोजन, वस्त्र तथा आराम की चीजें जुटाना ही पारिवारिक जीवन का उद्देश्य मान बैठे हैं। वे यह कभी नहीं सोच पाते कि भोजन, वस्त्र तथा शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ परिवार की एक सर्वोपरि आवश्यकता भी है और वह है उसे सद्गुणी बनाना।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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