शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

👉 समाज सेवी की योग्यता

🔷 भगवान बुद्ध के एक शिष्य ने कहा- मैं धर्मोपदेश के लिए देश भ्रमण करना चाहता हूँ, आज्ञा दीजिए। इस पर बुद्ध ने कहा- धर्मप्रचार की पुनीत सेवा को भी अधर्मी और ईर्ष्यालु सहन नहीं कर पाते। वे तरह-तरह के मिथ्या लांछन लगाते हैं, बदनाम करते तथा सताते हैं। तुम्हें उनका सामना करना पड़ेगा तो अपना मानसिक सन्तुलन किस प्रकार ठीक रख पाओगे?

🔶 शिष्य ने कहा- मैं किसी के अपकारों के प्रति मन में दुर्भाव न रखूँगा। जो मुझे गालियाँ देगा समझूँगा इसने मारा नहीं इतनी दया की। जो कोई मारेगा तो समझूँगा इसने जीवित छोड़कर उदारता दिखाई। यदि कोई मार भी डालेगा तो समझूँगा इस भव बंधन (संसार) में अधिक कष्ट भोगने से छुटकारा दिलाकर इसने उपकार ही किया।

🌹 अखण्ड ज्योति जून 1961

👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 148)

🌹  इन दिनों हम यह करने में जुट रहे है

🔷 कार्लमार्क्स ने सारे अभावों में जीवन जीते हुए अर्थशास्त्र रूपी ऐसे दर्शन को जन्म दिया जिसने समाज में क्रांति ला दी। पूँजीवादी किले ढहते चले गए एवं साम्राज्यवाद दो तिहाई धरती से समाप्त हो गया। ‘‘दास कैपीटल’’ रूपी इस रचना ने एक नवयुग का शुभारम्भ किया जिसमें श्रमिकों को अपने अधिकार मिले एवं पूँजी के समान वितरण का यह अध्याय खुला जिसमें करोड़ों व्यक्तियों को सुख-चैन की, स्वावलंबन प्रधान जिंदगी जी सकने की स्वतंत्रता मिली। रूसो ने जिस प्रजातंत्र की नींव डाली थी, उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद के पक्षधर शोषकों की रीति-नीति ही उसकी प्रेरणा स्त्रोत होगी।

🔶 मताधिकार की स्वतंत्रता बहुमत के आधार पर प्रतिनिधित्व का दर्शन विकसित न हुआ होता, यदि रूसो की विचारधारा ने व्यापक प्रभाव जनसमुदाय पर न डाला होता तो। जिसकी लाठी उसकी भैंस, की नीति ही सब जगह चलती, कोई विरोध तक न कर पाता। जागीरदारों एवं उत्तराधिकार के आधार पर राजा बनने वाले अनगढ़ों का ही वर्चस्व होता है। इसे एक प्रकार की मनीषा प्रेरित क्रांति कहना चाहिए कि देखते-देखते उपनिवेश समाप्त हो गए, शोषक वर्ग का सफाया हो गया। इसी संदर्भ में हम कितनी ही बार लिंकन एवं लूथर किंग के साथ-साथ उस महिला हैरियट स्टो का उल्लेख करते रहे हैं, जिसकी कलम ने कालों को गुलामी के चंगुल से मुक्त कराया। प्रत्यक्षतः यह युग मनीषा की भूमिका है।

🔷 बुद्ध की विवेक एवं नीतिमत्ता पर आधारित विचार क्रांति एवं गाँधी पटेल, नेहरू द्वारा पैदा की गई स्वातन्त्र्य आंदोलन की आँधी उस परोक्ष मनीषा की प्रतीक है, जिसने अपने समय में ऐसा प्रचण्ड प्रवाह उत्पन्न किया कि युग बदलता चला गया। उन्होंने कोई विचारोत्तेजक साहित्य रचा हो, यह भी नहीं। फिर यह सब कैसे सम्भव हुआ। यह तभी हो पाया जब उन्होंने मुनि स्तर की भूमिका निभाई, स्वयं को तपाया विचारों में शक्ति पैदा की एवं उससे वातावरण को प्रभावित किया।

🔶 परिस्थितियाँ आज भी विषम हैं। वैभव और विनाश के झूले में झूल रही मानव जाति को उबारने के लिए आस्थाओं के मर्मस्थल तक पहुँचना होगा और मानवी गरिमा को उभारने, दूरदर्शी विवेकशीलता को जगाने वाला प्रचण्ड पुरुषार्थ करना होगा। साधन इस कार्य में कोई योगदान दे सकते हैं, यह सोचना भ्रांतिपूर्ण है। दुर्बल आस्था अंतराल को तत्त्वदर्शन और साधना प्रयोग के उर्वरक की आवश्यकता है। आध्यात्म वेत्ता इस मरुस्थल की देख−भाल करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते व समय-समय पर संव्याप्त भ्रांतियों से मानवता को उबारते हैं। अध्यात्म की शक्ति विज्ञान से भी बड़ी हैं। अध्यात्म ही व्यक्ति के अंतराल में विकृतियों के माहौल से लड़ सकने-निरस्त कर पाने वाले सक्षम तत्त्वों की प्रतिष्ठापना कर पाता है। हमने व्यक्तित्वों में पवित्रता व प्रखरता का समावेश करने के लिए मनीषा को ही अपना माध्यम बनाया एवं उज्ज्वल भविष्य का सपना देखा है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 अपने ब्राह्मण एवं संत को जिन्दा कीजिए (भाग 5)

🔶 एक हमारा प्याऊ है जो कभी सूखेगा नहीं। जो पसीने से लथपथ हो गये हैं, थक गये हैं, हमारे प्याऊ पानी, हमारी तपस्या में से उनको देते रहेंगे, उन्हें हरा-भरा बनाये रखेंगे। आप सब लोग हमारे प्याऊ से पानी पी सकते हैं। ब्राह्मण, सन्त का जीवन चलता रहेगा। हम प्याऊ बन्द नहीं कर सकते हैं। हमने एक चिकित्सालय-डिस्पेन्सरी खोला है। जो भी दुःखी हमारे पास आये, हमने उसे छाती से लगाया। उसकी बीमारी का, दुःख का बराबर ख्याल रखा है। सन्त का काम भाव-संवेदना का है। हमें अपने बच्चे को खिलाना है, बच्चों की देख−भाल करनी है, बच्चों को गुब्बारा बाँटना है, बच्चों के चेहरे पर मुसकराहट देखनी है। ये चीजें देखकर हमको खुशी होती है। हम बच्चों के स्कूल चलाते हैं। इसका मतलब क्या है? हमारा अस्पताल चलता है, डिस्पेन्सरी चलती है। प्याऊ चलाने से क्या मतलब है? यह आध्यात्मिक बात है। यह सन्त की बातें हैं। तो क्या आप सन्त की दुकान बन्द कर देंगे? नहीं, बन्द नहीं करेंगे, जब तक हम जिन्दा हैं। आगे भी चलता रहेगा।
      
🔷 आप लोगों को हमने कई बार कहा है, हजार बार कहा है कि आपकी जो समस्याएँ हैं, उसे आप लिखकर देवें। आप आधा घण्टे भी भगवान का नाम नहीं ले सकते हैं। आप कहते हैं कि हम आपके रास्ते पर चल सकते हैं। बेकार की बातें मत कीजिये। तराजू हमारे पास है। हम जानते हैं, हमारा भगवान जानता है कि आप क्या हैं? इसलिए हमने इस बार यह कहना शुरू कर दिया है कि आप हमारा समय नष्ट करने के बजाय लिखकर दे जाइये।

🔶 आप यहाँ न ध्यान करने आते हैं, न पूजा करने आते हैं, न मतलब की बात करने आते हैं, केवल घूमने आते हैं, किराया खर्च करते हैं। आप हमें बेअकल समझते हैं। हम आपकी नस-नस जानते हैं। इसलिए हमने बैखरी वाणी से बोलना बन्द कर दिया है। हमारे गुरु हम से बैखरी वाणी से नहीं बोलते, पश्यन्ति वाणी से बोलते हैं, परावाणी से बोलते हैं। आपकी बातों को हमने सुन लिया है और कहा है कि बेकार की रामकहानी कहकर हमारा समय क्यों खराब करते हैं? हमें राम कहानी से क्या मतलब है, आप मतलब की बात कहिये।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

👉 Benevolence Brought Ganga to Earth

🔶 King Bhagirath's ancestors were suffering unbearable miseries due to wrath of a Rishi. Bhagirath knew very well that if the divine river Ganga could be requested to descent from the heaven to Earth, it would end the miseries of his ancestors, as well as quench the thirst of innumerable flora and fauna.

🔷 With this noble cause in mind he left the comfortable life of his palaces and performed great penance in the Himalayas. After a very long time, considering the generous and selfless objectives of Bhagirath, Ganga was ready to descend upon Earth. Lord Shaker controlled the force of the river Ganga as it descended from the heaven and the divine river since flows through the great plains of India benefiting millions of people.

🔶 King Bhagirath's own powers were far from sufficient to achieve such an extraordinary feat. It was his benevolent objectives that attracted the divine blessings and cooperation from Lord Shanker. His ancestors were freed from the dreadful curse, Bhagirath became famous for ever, and most of all millions people benefit from this great river even today.

🌹 From Pragya Puran

👉 आत्मचिंतन के क्षण 26 Oct 2017

🔶 हर परिस्थिति, हर घटना, हर वस्तु के लिए कुछ बातें अनुकूल हैं तो कुछ प्रतिकूल पड़ती हैं। उनका विशेष प्रभाव अनुकूलों पर ही होता है, प्रतिकूलों पर या तो वह प्रभाव होता ही नहीं, होता भी है तो बहुत कम। आग का विशेष प्रभाव सूखी लकड़ी पर जितना होता है उतना गीली पर नहीं, पानी को जितना रेतीली जमीन सोखती है उतना पथरीली जमीन नहीं, बीमारी का आक्रमण जितना अशुद्ध रक्त वालों पर होता है उतना शुद्ध रक्त वालों पर नहीं, रंग जितना साफ कपड़े पर चढ़ता है, उतना गंदे पर नहीं, इसी प्रकार बुरी परिस्थितियों, बुरे तत्वों और बुरे व्यक्तियों का प्रभाव भी हलके दर्जे की मनोभूमि के लोगों पर ही पड़ता है। ऊंची और सुसंस्कृत मनोभूमि के लोग उससे बहुत कम ही प्रभावित होते हैं।

🔷 कुमार्ग पर ले जाने वाली अनेकों बुराइयाँ जगह-जगह मौजूद हैं और वे अपना क्षेत्र बढ़ाने के लिये भी सक्रिय रहती हैं। अनेकों व्यक्ति उनके चंगुल में फंसते हैं और अपने आपको उस रंग में इतना रंग लेते हैं कि फिर इस जाल से निकल सकना कठिन हो जाता है। जुए बाजी के, शराब खोरी के, सिनेमाबाजी के, व्यभिचार के, आवारागर्दी के, शैतानी के अड्डे हर जगह पाये जाते हैं, उनके जाल में अनेक लोग रोज ही फंसते हैं और अपना समय, स्वास्थ्य, धन लोक परलोक सभी कुछ गंवा कर छूँछ हो जाते हैं। इससे उन बुराइयों की शक्ति और सफलता का अन्दाज सहज ही लगाया जा सकता है। पर यह प्रभाव एक खास तरह की उथली मनोभूमि के लोगों पर ही पड़ता है, वे ही इनके चंगुल में फंसते और बर्बाद होते हैं।

🔶 ठगों के जाल में अनेक लोग फंस जाते हैं और उनके द्वारा बहुत ही हानि उठाते हैं पर उन समस्त लोगों में अधिकतर ऐसी मनोवृत्ति के लोग होते हैं जो बहुत सस्ते में, बहुत सा लाभ प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं। जिन्हें अपनी योग्यता एवं श्रम के आधार पर परिश्रम की कमाई पर संतोष है जो केवल नीतिपूर्वक उचित तरीके से जितना प्राप्त हो सकता है उससे काम चलाते हैं और प्रसन्न रहते हैं उन्हें कोई ठग नहीं ठग सकता। यों ठगी के अनेकों तरीके हैं पर उनमें सिद्धान्त एक ही काम करता है कि ठग लोग यह सोचते हैं कि शिकार में लालच पर्याप्त है कि नहीं, वह योग्यता और श्रम की बात को भुलाकर जैसे बने वैसे अधिक लाभ प्राप्त करने का इच्छुक है कि नहीं? यदि है तो ठग समझ लेते हैं कि यह हमारा पक्का शिकार है। इसे ठगा जा सकता है। नोट दूना कराने, ताँबे से सोना बनाने, जमीन में से गढ़ा धन निकालने कोई बड़ा लाभ करा देने आदि के प्रलोभन देकर लोगों को लालायित करते हैं।

🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 चालीस दिन की गायत्री साधना (अन्तिम भाग)

🔷 लगभग तीन साढ़े तीन घंटे में अट्ठाईस मालाएं आसानी से जपी जा सकती हैं। यह प्रातः काल का साधन है। इसे करने के पश्चात अन्य कोई काम करना चाहिए। दिन में शयन करना, नीचे लोगों का स्पर्श, पराये घर का अन्न इन दिनों वर्जित है। जल अपने हाथ से नदी या कुँए में से लाना चाहिये और उसे अपने लिये अलग से सुरक्षित रखना चाहिए। पीने के लिए यही जल काम में लाया जाय। तीसरे पहर गीता का कुछ स्वाध्याय करना चाहिए। संध्या समय भगवत् स्मरण, संध्यावन्दन करना चाहिए। रात को जल्दी सोने का प्रयत्न करना उचित है जिस से प्रातः काल जल्दी उठने में सुविधा रहे। सोते समय गायत्री माता का ध्यान करना चाहिए और जब तक नींद न आवे मन ही मन बिना होठ हिलाये मन्त्र का जप करते रहना चाहिये। दोनों एकादशियों को और अमावस्या पूर्णमासी को केवल थोड़े फलाहार के साथ उपवास करना चाहिए।
  
🔶 पूर्णमासी से आरंभ करके पूरा एक मास और आगे के मास में कृष्ण पक्ष की दशमी या एकादशी को पूरे चालीस दिन होंगे जिस दिन यह अनुष्ठान समाप्त हो उस दिन गायत्री मन्त्र से कम से कम 108 आहुतियों का हवन कराना चाहिए और यथाशक्ति सदाचारी विद्वान ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। गौओं को आटा और गुड़ मिले हुए गोले खिलाने चाहिए। साधना के दिनों में तुलसी दल को जल के साथ दिन में दो तीन बार नित्य लेते रहें।

🔷 इस चालीस दिनों में दिव्य तेज युक्त गायत्री माता के स्वप्नावस्था में किसी न किसी रूप में दर्शन होते हैं। यदि उनकी आकृति प्रसन्नता सूचक हो तो सफलता हुई ऐसा अनुभव करना चाहिए यदि उनकी भ्रू-भंगी अप्रसन्नता सूचक, नाराजी से भरी हुई, क्रुद्ध प्रतीत हो तो साधना में कुछ त्रुटि समझनी चाहिए और बारीकी से अपने कार्यक्रम का अवलोकन करके अपने अभ्यास को अधिक सावधानी के साथ चलाने का प्रयत्न करना चाहिए। नेत्र बन्द करके ध्यान करते समय, मन्त्र जपते समय मानसिक नेत्रों के आगे कुछ चमकदार गोलाकार प्रकाश पुँज से दृष्टिगोचर हो तो उन्हें जप द्वारा प्राप्त हुई आत्मशक्ति का प्रतीक समझना चाहिए।

🔶 चालीस दिन की यह साधना अपने को दिव्य शक्ति से सम्पन्न करने के लिए है। साधना के दिनों में मनुष्य कुश होता है उसका वजन घट जाता है परन्तु दो बातें बढ़ जाती हैं एक तो शरीर की त्वचा पर पहले की अपेक्षा कुछ-कुछ चमकदार तेज दिखाई पड़ने लगता है, दूसरे एक विशेष प्रकार की गंध आने लगती है। जिसमें यह दोनों लक्षण प्रकट होने लगे समझना चाहिए कि उस साधक ने गायत्री के द्वारा अपने अन्दर दिव्य शक्ति का संचय किया है। इस शक्ति को वह अपने और दूसरों के अनिष्टों को दूर करने एवं कई प्रकार के लाभ उठाने में खर्च कर सकता है। अच्छा तो यही है कि इस शक्ति को अपने अन्दर छिपा कर रखा जाय और साँसारिक सुखों की अपेक्षा आध्यात्मिक, पारलौकिक आनन्द प्राप्त किया जाय।

🌹 समाप्त
🌹 अखण्ड ज्योति- दिसम्बर 1944 पृष्ठ 14
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1944/December/v1.14

👉 आज का सद्चिंतन 27 Oct 2017


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