गुरुवार, 8 अगस्त 2024

👉 भगवान प्रेम स्वरूप हैं। (भाग 2)

🔹 मनुष्य अपने आपको नहीं पहचान पाता है वास्तव में जो कुछ वह किया करता है उसी से कार्यानुसार दंड व यश का भागी बनता है। अब सब कुछ मनुष्य मात्र पर ही रह जाता है। यदि मनुष्य स्वतः को सुधार लेता है तो वह सबको सुधार सकता है परन्तु जब वह स्वतः नहीं सुधरेगा तो दूसरों को कैसे सुधार सकता है। नियमों का विधान पालन करने के लिए ही बनाया जाता है। जब उन विचारों का उल्लंघन किया जाता है तब मनुष्य अपने कर्त्तव्य से च्युत हो जाता है तब उसे उस अवस्था में दंड प्राप्त होता है।

🔸 यहाँ प्रधानता मनुष्य के कर्मों की ही है वह कर्मानुसार ही फल को प्राप्त होता है। भगवान सबसे प्रेम करते हैं। भगवान की मान्यता ही मानवता का आधार है। चाहे कितनी ही बाधाएं सामने क्यों न खड़ी हों, यदि मनुष्य प्रेमपूर्वक उनका अभिनन्दन कर, प्रेम स्वरूप प्रभु का मंगल विधान समझ अपने पथ पर दृढ़ होकर डटा रहता है तो उसका विकास सदैव सही मार्ग से ही होता है। मनुष्य के लिए कर्त्तव्य की जो सीमा निर्धारित की गई है उसके पालन के लिए न तो कोई विशेष प्रयत्न ही आवश्यक है और न कोई साधना की, सीधा पथ है-उस प्रभु का आधार।

🔹 सब कठिनाइयों का प्रेमपूर्वक स्वागत करें तो आप उन्हें अवश्य जीत सकेंगे। भारी से भारी विपत्ति क्यों न हो हमें उसका प्रेमपूर्वक अभिनन्दन करना चाहिए। भगवान के प्रत्येक विधान में हमारा मंगल भरा है। आज जो विपत्ति व बाधाएं हमारे सामने हैं उनसे मुँह मोड़ने व भागने की आवश्यकता नहीं है। उनका आविर्भाव तो हमारे कल्याण के लिए ही हुआ है। हो सकता है हमारे पूर्व जन्म के कर्मों के कारण उपलक्ष के ही वे हमें प्राप्त हो रही हों। हमें कब और किस समय कौन सी वस्तु की आवश्यकता होती है यह वे अंतर्यामी परम प्रभु स्वतः जानते हैं।

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🔸 परम पिता हमें कितना अपार स्नेह देते हैं यदि वह रहस्य हम समझ जाए तो सुख और दुख, शाँति अशाँति दोनों ही हमारे लिए समान हो जाएंगे। तथा यश व दंड का भेद ही न रह जायगा। अपने परम शुभ चिंतक मंगलमय भगवान के प्रत्येक विधान में हमें सदा प्रसन्न रहना चाहिए तथा सबसे प्रेम का व्यवहार कर प्रेम स्वरूप प्रभु को समझने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रेम ही परमात्मा है और परमात्मा ही प्रेम है।

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परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी

👉 परिस्थितियों के अनुकूल बनिये

🔹 परिस्थितियों की अनुकूलता की प्रतिज्ञा करते-2 मूल उद्देश्य दूर पड़ा रह जाता है। हमें जीवन में जो कष्ट है, जो हमारा लक्ष्य है, उसे हम परिस्थिति के प्रपंच में पड़ कर विस्मृत कर रहे हैं।

🔸 यदि आपके पास कीमती फाउन्टेन पेन नहीं है, बढ़िया कागज और फर्नीचर नहीं है, तो क्या आप कुछ न लिखेंगे? यदि उत्तम वस्त्र नहीं हैं, तो क्या उन्नति नहीं करेंगे? यदि घर में बच्चों ने चीजें अस्त-व्यस्त कर दी हैं, या झाडू नहीं लगा है, तो क्या आप क्रोध में अपनी शक्तियों का अपव्यय करेंगे? यदि आपकी पत्नी के पास उत्तम आभूषण नहीं हैं, तो क्या वे असुन्दर कहलायेंगी या घरेलू शान्ति भंग करेंगी? यदि आपके घर के इर्द-गिर्द शोर होता है, तो क्या आप कुछ भी न करेंगे? यदि सब्जी, भोजन, दूध इत्यादि ऊंचे स्टैन्डर्ड का नहीं बना है, तो क्या आप बच्चों की तरह आवेश में भर जायेंगे? नहीं, आपको ऐसा कदापि न करना चाहिए।

🔹 परिस्थितियाँ मनुष्य के अपने हाथ की बात है। मन के सामर्थ्य एवं आन्तरिक स्वावलम्बन द्वारा हम उन्हें विनिर्मित करने वाले हैं। हम जैसा चाहें जब चाहें सदैव कर सकते हैं। कोई भी अड़चन हमारे मार्ग में नहीं आ सकती। मन की आन्तरिक सामर्थ्य के सम्मुख प्रतिकूलता बाधक नहीं हो सकती।

🔸 सदा जीतने वाला पुरुषार्थी वह है जो सामर्थ्य के अनुसार परिस्थितियों को बदलता है। किन्तु यदि वे बदलती नहीं, तो स्वयं अपने आपको उन्हीं के अनुसार बदल लेता है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में उसकी मनः शान्ति और संतुलन स्थिर रहता है। विषम परिस्थितियों के साथ वह अपने आपको फिट करता चलता है।

👉 अमृतवाणी:- खुश रहने के लिए अपने को बदलिये https://youtu.be/gkDv7D1pHFk?si=m_aueBFkz8nqJFYX

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🔹 निराश न होइए यदि आपके पास बढ़िया मकान, उत्तम वस्त्र, टीपटाप, ऐश्वर्य इत्यादि वस्तुएँ नहीं हैं। ये आपकी उन्नति में बाधक नहीं हैं। उन्नति की मूल वस्तु-महत्वाकाँक्षा है। न जाने मन के किस अतल गह्वर में यह अमूल्य सम्पदा लिपटी पड़ी हो किन्तु आप गह्वर में है अवश्य। आत्म-परीक्षा कीजिये और इसे खोजकर निकालिये।

🔸 प्रतिकूल परिस्थितियों से परेशान न होकर उनके अनुकूल बनिये और फिर धीरे-2 उन्हें बदल डालिये।

📖 अखण्ड ज्योति- मई 1949

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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