मंगलवार, 13 अगस्त 2024

👉 आज का सद्चिंतन Aaj Ka Sadchintan 14 Aug 2024


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👉 प्रसन्न रहने का सरल उपाय

🔷 असुविधायें उत्साह बढ़ाती और प्रगति के लिए सुतिधायें प्रदान करती हैं। एकाकी रहने पर दोनों अपूर्ण हैं। पूर्णता के लिए ऐसा कुछ चाहिए, जिसमें अग्रगमन का उत्साह और अवरोध से जूझने का पराक्रम प्रकट हो👉 प्रसन्न रहने का सरल उपायता रहे।

🔶 वैभव की कमी नहीं, पर आवश्यकता जितना हो समेटें पक्षियों को देखिये! पशुओ को देखिये! वे प्रातः से लेकर सायंकाल तक उतनी खुराक बीनते चलते हेैं, जितनी वे पचा सकते हैं। पृथ्वी पर बिखरे चारे- दाने की कमी नहीं। सबेरे से शाम तक घाटा नहीं पड़ता। पर लेते उतना ही हैं, जितना मुँह माँगता और पेट सम्हालता है। यही प्रसन्न रहने की नीति है।

🔷 जब उन्हें स्नान का मन होता है, तब इच्छित समय तक स्नान करते हैं। उतना ही बड़ा घोंसला बनाते हैं, जिसमें उनका शरीर समा सके। कोई इतना बड़ा नहीं बनाता, जिसमें समूचे समुदाय को बिठाया सुलाया जाय।

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🔶 पेड़ पर देखिये हर पक्षी ने अपना छोटा घोंसला बनाया हुआ है। जानवर अपने रहने लायक छाया का प्रबन्ध करते हैं। वे जानते हैं कि सृष्टा के सम्राज्य में किसी बात की कमी नहीं। जब जिसकी जितनी जरूरत है, आसानी से मिल जाता है। आपस में लड़ने का झंझट क्यों मोल लिया जाय? हम इतना ही लें, जितनी तात्कालिक आवश्यकता हो। ऐसा करने से हम सुख- शांतिपूर्वक रहेंगे भी और उन्हें भी रहने देंगे, जो उसके हकदार हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 आप निराश मत हूजिए (भाग ५)

तनिक विचार करो एकलव्य यदि गुरु द्रोण के यहाँ से निराश होकर धनुर्विद्या का अभ्यास छोड़ देता और भ्राँति के विचारों के संपर्क में होकर क्षुब्ध हो जाता तो क्या वह सफलता को प्राप्त कराने वाली वाँछनीय मनःस्थिति स्थिर रख सकता था। उसने निराशा सूचक उनके शब्दों को अपने अन्तःकरण को स्थायी वृत्ति नहीं बनाया। उसके बलवान मन पर भ्राँति का कोई विचार या तिरस्कार अपना प्रभाव न डाल सका। दुर्बल-व्यक्ति चित्त पर ही प्रतिकूल प्रसंग का कुप्रभाव पड़ता है। संसार के मनुष्य, चारों ओर से निकम्मे संदेहात्मक दरिद्र विचार लाकर उसके अन्तःकरण में डालते हैं और उसकी सफलता, प्रसन्नता और उत्साह को छिन्न-भिन्न कर देते हैं। यदि हम दूसरों की निराशोत्पादक बातों पर ध्यान न दें और उधर से हमेशा के लिए पीठ मोड़ कर आशा के प्रकाश की ओर रुख कर लें तो अल्प काल में ही विकसित पुष्प की भाँति आनन्दित हो सकते हैं।

जब तुम निश्चय कर लोगे कि मेरा निराशा से जीवन का कोई संबंध नहीं होगा। मुझे नाउम्मीदों से कोई सरोकार नहीं है, मैं अब से वस्त्रभूषा पर शरीर पर, व्यवहार में, अपने कार्यों में निराशा का कोई चिन्ह भी न रहने दूँगा मैं पूर्ण शक्ति और मनोरथ सिद्धि में प्रवृत्त हूँगा, निराशापूर्ण वातावरण से मेरा कुछ लेना देना नहीं है। मैंने तो अपनी प्रवृत्ति ही उत्तम पदार्थों की ओर कर दी है। लता और मनोरथ सिद्धि मेरे बाएं हाथ का खेल है मुझे संसार की कठिनाई अपने श्रेय के मार्ग विचलित नहीं कर सकतीं तब याद रखो तुम्हारे हृदय में एक दिव्य शक्ति-शासनकर्ता शक्ति प्रसन्न होगी। आत्म-श्रद्धा और स्वाभिमान प्रबल लगेंगे और तुम आश्चर्यपूर्वक कहोगे कि यह बर्तन न जाने क्यों कर हो गया? तब तुम भी यही कहोगे कि मन को आशापूर्ण, प्रकाशित और प्रसन्न रखने से सफलता प्राप्त करते है, आशावाद की सफलता प्राप्त कराता है।

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“हमारे लिए कुछ न होगा।” ऐसा निराशावादी विचार सफलता का विधातक शत्रु होता है। आशावाद बहुत बड़ी उत्पादक शक्ति है जीवन की जड़ है उसके अंदर प्रत्येक वस्तु निवास करती है। यह मानसिक क्षेत्र में प्रविष्ट करते ही बड़ा लाभ पहुँचाती है अतः जिसे नाउम्मीदी से छुटकारा पाने की आकाँक्षा हो उसे उचित है कि अपने मन की स्थिति को उत्पादक, उत्साहपूर्ण, उदार, प्रवर्द्धक और उदात्त रखे।

.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति नवम्बर 1950 पृष्ठ 15

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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 14 Aug 2024

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