शनिवार, 12 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 12 Aug 2023

मुद्दतों को देव परम्पराएँ अवरुद्ध हुई पड़ी हैं। अब हमें अपना सारा साहस समेटकर तृष्णा और वासना के कीचड़ से बाहर निकलना होगा और वाचालता एवं विडम्बना से नहीं, अपनी कृतियों से अपनी उत्कृष्टता का प्रमाण देना होगा। हमारा उदाहरण ही दूसरे अनेक लोगों को अनुकरण का साहस प्रदान करेगा। वाणी और लेखनी के माध्यम से लोगों को किसी बात की-अध्यात्मवाद की भी जानकारी कराई जा सकती है इससे अधिक भाषणों का कोई उपयोग नहीं। दूसरों को यदि कुछ सिखाना हो तो उसका एकमात्र तरीका अपना उदाहरण प्रस्तुत करना है।

नर पशुओं और नर पिशाचों का बाहुल्य जब कभी भी संसार में होगा तो विपत्तियाँ आयेंगी और अगणित प्रकार की विभीषिकाएँ उत्पन्न होगी। यह अभिवृद्धि जब चिन्ताजनक स्तर तक पहुँच जाती है तो ईश्वर की इस परम प्रिय सृष्टि के लिए सर्वनाश का खतरा उत्पन्न हो जाता है। इसी को बचाने के लिए उन्हें हस्तक्षेप करना पड़ता है, अवतार लेना पड़ता है।

अगले दिनों देवासुर संग्राम होने वाला है उसमें मनुष्य और मनुष्य आपस में नहीं लड़ेंगे, वरन् आसुरी और दैवी प्रवृत्तियों में जमकर अपने -अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष होगा। असुरता अपने पैर जमाये रहने के लिए देवत्व अपनी स्वर्ग संभावनाएँ चरितार्थ करने के लिए भरसक चेष्टा करेंगे। इस विचार संघर्ष में देवत्व के विजयी हो जाने पर वे परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी जिनमें हर व्यक्ति को उचित न्याय, स्वातन्त्र्य, उल्लास, साधन और संतोष मिल सके।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 पिशाच प्रेमी या पागल (भाग 1)

देखते हैं कि आजकल गली कूचों में प्रेम की आँधी सी आई हुई है। मुहब्बत के तूफान उड़ रहे हैं। सिनेमाबाज, मनचले, शौकीन फिल्म अभिनेत्रियों से प्रेम करते हैं, उनकी तस्वीरों को आँखों में छिपाये फिरते हैं। सूरत मन में बसी हुई है, उनके हाव-भाव और भाव-भंगी का ऐसा स्मरण करते रहते हैं मानो ये ही इनकी उपास्य देवता हैं। “प्रेम का घर हो प्रेम की छत हो” के गीत उनकी जबान पर गुनगुनाते रहते हैं, उन्हीं की प्रतिध्वनि उनके कानों में गूँजती रहती है।

देखते हैं कि गलियों में कमर लचकाकर चलने वाले छैल चिकनियाँ पराई बहिन-बेटियों पर कुदृष्टि डालते हैं। उन्हें बहकाकर पाप पंक में घसीटने का प्रयत्न करते हैं, मौका लगे तो उनका धन, धर्म ले भागते हैं। कलेजा थामे फिरते हैं, कोई नयन बाण से बिधा हुआ बनता है, किसी को इश्क का ज्वर है, किसी को मुहब्बत मर्ज। बुलबुल के तराने, सैयाद कफस, शमा, परवाना, कातिल, शमशीर दिल, छुरी और न जाने क्या-क्या उन्हें याद आता है। वेश्याओं के उपासक, दुराचारिणी स्त्रियों के गुलाम, यह रंगीले मनचले इधर से उधर मटर-गश्ती करते हैं और अपने को प्रेमी बताते हैं।

देखते हैं कि घासलेटी कथाकार, आशिक माशूकी के अफसाने कहने वाले, लैला मजनू के नवीन संस्करण तैयार करते हैं। भोगेच्छा को अनियंत्रित रूप से भड़काने के लिए प्रेम को बन्धन रहित बताते हैं। “काबू में जिसका दिल न हो-वह गरीब क्या करे?” का नारा इसलिए लगाया जाता है कि इनकी शोहदाई को छूट मिल जाय, दुनिया इन्हें निर्दोष समझे। चार मनचले मिले कि गन्दी-गन्दी चर्चा चली, खूबसूरत औरतों की चर्चा, अपने कुकर्मों का बढ़ा-चढ़ा वर्णन, इन्द्रिय सुख की अनर्गल कल्पनाएं करने वाले अपने को प्रेमी मानते हैं।

.....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति मई 1942 पृष्ठ 11

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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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