हमें अपने गुण, कर्म एवं स्वभाव का परिष्कार करना चाहिए। अपनी विचार पद्धति एवं गतिविधि को सुधारना चाहिए। जिन कारणों से निम्नस्तरीय जीवन बिताने को विवश होना पड़ रहा है उन्हें ढूँढना चाहिए और साहस एवं मनोबलपूर्वक उन सभी कारणों के कूड़े-कचरे को मन-मंदिर में से झाड़-बुहार कर बाहर फेंक देना चाहिए। हम अपने उद्धार के लिए-उत्थान के लिए कटिबद्ध होंगे तो सारा संसार हमारी सहायता करेगा।
अध्यात्मवाद का ढाँचा इस उद्देश्य को लेकर खड़ा किया गया है कि व्यक्ति अपने आप में पवित्र, विवेकी, उदार और संयमी बने। दूसरों से ऐसा मधुर व्यवहार करे जिसकी प्रतिक्रिया लौटकर उसके लिए सुविधा और प्रसन्नता उपस्थित करे। ऐसी विचारणा और गतिविधि व्यक्ति अपना सके तो समझना चाहिए उसने अध्यात्मवाद के तत्त्वज्ञान को समझ लिया और लोक कल्याण के लक्ष्य तक पहुँचने का सुनिश्चित मार्ग पकड़ लिया।
यह संसार कुएँ की आवाज की तरह है, जिसमें हमारे ही उच्चारण की प्रतिध्वनि गूँजती है। यह संसार दर्पण की तरह है, जिसमें विभिन्न व्यक्तियों के माध्यम से अपना ही स्वरूप दिखाई पड़ता है। इस संसार के बाजार में कोई सुख-सुविधा अपने सद्गुणों के मूल्य पर ही खरीदी जाती है। जब हम अपने आपको सुधारने के लिए अग्रसर होते हैं, तो निश्चित रूप से यह दुनिया हमारे लिए अपेक्षाकृत अधिक सुधरी हुई, सुंदर और मधुर बन जाती है।
साहस ही जीवन की विशेषताओं को व्यक्त करने का अवसर देता है।मनुष्य में सभी गुण हों, वह विद्वान् हो, पंडित हो, शक्तिशाली हो, धनवान् हो, सद्गुण संपन्न हो, लेकिन उसमें साहस न हो तो वह अपनी विशेषताओं का, योग्यताओं का कोई उपयोग नहीं कर सकता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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