गुरुवार, 13 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 13 July 2023

इन दिनों आपत्तिकालीन स्थिति है, सामान्य समय नहीं। इन संकट के क्षणों में मानव जाति को अंधकारमय भविष्य के गर्त में गिराने से बचाने के लिए यदि सारा समय लगा दिया जाय और यह मान लिया जाय कि भौतिक जीवन जितना जी लिया उतना ही पर्याप्त है, तो यह अधिक दूरदर्शिता की, अधिक सराहनीय साहसिकता की बात होगी, पर न्यूनतम दो घण्टे तो लगाते ही रहना चाहिए।

इस युग के हर भावनाशील और जीवित व्यक्ति को गौतम बुद्ध, शंकराचार्य, समर्थ गुरऊ रामदास, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, रामतीर्थ, गाँधी, दयानंद आदि की तरह भरी जवानी में ही कर्मक्षेत्र में ही कूद पड़ना चाहिए, बुढ़ापे का इंतजार नहीं देखना चाहिए, पर इतना साहस न हो तो कम से कम इतना तो करना ही चाहिए कि पके फल की तरह पेड़ में चिपके रहने की धृष्टता न करें। जिनके पारिवारिक उत्तरदायित्व पूरे हो चुके हैं वे घर-गृहस्थी की छोटी सीमा में ही आबद्ध न रहकर विशाल कर्मक्षेत्र में उतरें और जनजागृति का शंख बजाएँ, युग परिवर्तन की कमान सँभालें।

युग निर्माण परिवार के स्त्री सदस्यों को यह विशेष कर्त्तव्य सौंपा गया है कि अपने पददलित वर्ग को ऊँचा उठाने में अपना ध्यान केन्द्रित करें और अपने वर्ग में सघन संपर्क बनाकर उसे ऊँचा उठाने के लिए आगे, आगे बढ़ाने  के लिए अधिकाधिक योगदान करें। सुख-सुविधाओं को लात मारकर वे नारी जाति के उत्कर्ष के लिए बढ़-चढ़ कर बलिदान प्रस्तुत करें।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 दाम्पत्य-जीवन को सफल बनाने वाले कुछ स्वर्ण-सूत्र (भाग 3)

बहुत से स्वार्थी लोग बड़प्पन और अधिकार के अहंकार में हर वस्तु में अपना लाइन्स-शेयर (सिंह भाग) रखते हैं। वे नाश्ते और भोजन की सबसे अच्छी चीजें सबसे अधिक मात्रा में स्वयं उपभोग करते हैं। जो कुछ उल्टा-सीधा, थोड़ा बहुत बचता है, वह प्रसाद रूप में पत्नी बेचारी को मिलता है। यही हाल बाजार से लाये फल, मेवा, मिठाई आदि में भी होता है। यह बहुत ही हेय, तुच्छ  और क्रूर स्वार्थ है। इस व्यवहार की अधिक पुनरावृत्ति होने और यह समझ लेने पर कि पति का इसमें केवल स्वार्थ ही नहीं अहंकार भावना और कमाई का अधिकार भी शामिल है, यदि पत्नी का मन उससे फिर जाता है तो उसे ज्यादा दोष नहीं दिया जा सकता। ऐसे स्वार्थी पशुओं से पत्नी ही नहीं पूरे संसार को घृणा करनी चाहिये। वे इसी योग्य होते हैं।

अच्छे और भले पति हर अच्छी वस्तु को प्रेमपूर्वक अपनी प्रियतमा को ही अधिक से अधिक खिलाने-पिलाने में संतोष और सुख अनुभव करते हैं। चूँकि वे कमाई करते हैं इसलिये उन्हें अपना यह कर्तव्य अच्छी तरह याद रहता है कि कही संकोच-वंश पत्नी किन्हीं वस्तुओं को जी भर कर न खाने का अभ्यास न कर ले अथवा खाने में संकोच करे। वे अपने आप अपने सामने अथवा अपने साथ बिठा कर खिलाने का ही यथा सम्भव प्रयत्न करते हैं। ऐसे पतियों की पत्नी कितनी प्रसन्न और सुखदायक रहती हैं इसका अनुमान सहज नहीं।

पहनने, पहनाने में भी यह विषमता अच्छी नहीं। अनेक पति अपने लिए तो जब तब अच्छे से अच्छे और नये कपड़े बनवाते रहते हैं, तब भी कमी महसूस करते रहते हैं। किन्तु पत्नी की वर्षों पहले खरीदी दो-चार साड़ियाँ उन्हें शीघ्र ही खरीदीं जैसी मालूम होती है। जैसे सुन्दर कपड़े अपने लिये बनवाते हैं, वैसे पत्नी के लिए नहीं। ऐसे ‘फैलसूफ’ पति अपनी पत्नी का पूरा प्यार कभी नहीं पा सकते। उचित यह है कि पुरुष होने के नाते पति मोटे, सस्ते और सादे कपड़े पहने और पत्नी को अच्छे से अच्छे कपड़े पहनाये। वह सुन्दर है सुकुमार है, वस्त्र उसकी शोभा है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1968 पृष्ठ 27

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