सोमवार, 8 मई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 8 May 2023

विषय-वासनाएँ मनुष्य के अधःपतन का प्रबल हेतु हैं और उनका त्याग उन्नति की एक आवश्यक शर्त है। वासनाओं की संतुष्टि उनकी तृप्ति से नहीं, बल्कि त्याग से होती है, जिसका प्रतिपादन समय रहते तक ही किया जा सकता है, जब तक शरीर में शक्ति और विवेक में बल होता है। समय चूक जाने पर तो यह और भी आततायी होकर तन, मन और आत्मा का हनन किया करती हैं।

कठिनाइयाँ वास्तव में कागज के शेर के समान होती हैं। वे दूर से देखने पर बड़ी ही डरावनी लगती हैं। उस भ्रमजन्य डर के कारण ही मनुष्य उन्हें देखकर भाग पड़ता है, पर जो एक बार साहस कर उनको उठाने के लिए तैयार हो जाता है, वह इस सत्य को जान जाता है कि कठिनाइयाँ जीवन की सहज प्रक्रिया का अंग होने के सिवाय और कुछ नहीं होतीं।

अच्छे लोगों को असफल, दुःखी या कष्ट झेलते समय हमें तुरन्त यह फैसला नहीं दे देना चाहिए कि अच्छाई का जमाना नहीं रहा। सफलता, सुख, स्वास्थ्य और सम्पन्नता आदि उपलब्धियाँ एक वैज्ञानिक रीति से काम करते हुए ही अर्जित की जा सकती हंै। इनमें चूक होते ही प्रकृति का न्याय, दण्ड अनिवार्य रूप से मिलता है, जिसमें बुरे व्यक्ति भी दुःख पाते हैं और अच्छे भी।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 जीवन संग्राम की तैयारी कीजिए (भाग 2)

एक जन्मजात गायक कभी भी शेयर बाजार में सफल नहीं हो सकता। जिसमें अदम्य साहस है, जो प्रत्येक स्थिति पर काबू पा लेता है और जो बिखरी शक्तियों को एक में समन्वित कर लेता है, वह दैनिक जीवन में चमक सकता है। इस बात में सभी विद्वान सहमत हैं कि यदि सूर्य के रथ को खींचने वाले द्रुतगामी घोड़ों को बैलगाड़ी में जोत दिया जाय, तो इससे बढ़कर मूर्खता की दूसरी बात हो ही नहीं सकती। इसलिए युवक को चाहिए की वह अपनी आत्मा को पहचाने और संरक्षकों तथा माता-पिता का सबसे बड़ा काम यही है कि उसे केवल इतनी सहायता दे जिसमें उसे अपनी शक्तियों का बोध अच्छी तरह हो जाय। अभिभावकों की अदूरदर्शिता और अति प्रेम के कारण कितनी ही प्रतिभाओं का विकास न हो सका।

अपनी शक्ति को पहचानने में भी बहुत बड़े धोखे हो जाते हैं। ‘पसंद’ और ‘प्रतिभा’ दो अलग अलग चीजें है और ‘पसंद’ को ‘प्रतिभा’ समझ लेना बड़ी भारी भूल है। यदि किसी को कविता सुनने में आनन्द आता है तो उसे वह न समझ लेना चाहिए कि वह कालिदास और भवभूति बन सकता है। पसंद और प्रतिभा में विवेक कर लेना कठिन भी है पर उसे इस प्रकार समझा जा सकता है। ‘प्रतिभा’ मनुष्य के हृदय के भीतर निरंतर जलने वाली ज्वाला है, वह उसकी महत्वाकाँक्षा को प्रतिफल भोजन देकर जीवित रखती है।

दिन-रात, सोते-जागते और उठते-बैठते, स्पष्ट या अस्पष्ट रूप से मनुष्य एक बड़ी भारी कमी अपने में महसूस करता है। उसे पूरा करने के लिए उसका हृदय तड़पता रहता है और उसी के चिंतन में उसे शान्ति मिलती है, बस प्रतिभा यही है। प्रतिभा केवल एक होती है, पसन्द अनेक होती हैं। गायिका के जमघट में बैठकर और संगीत का आनन्द लाभ करके जब यह इच्छा होती है कि कितना अच्छा हो यदि मुझे भी गाना आ जाये और उस समय यह भी सोच ले कि हम भी गीत का अभ्यास करेंगे मगर उस गोष्ठी से दूर हट कर वही इच्छा लुप्त हो जाती है और यदि महीनों उस संगति में न जाये तो उस ओर ध्यान भी नहीं जाता, वही स्थिति पसन्द का बोध कराती है। पसंद क्षणिक है, वह मन को केवल अस्थायी शान्ति देती है। मनुष्य परिवर्तन चाहता है ‘पसंद’ केवल इसमें सहायता देती है। यदि पसंद पूरी न हो तो मनुष्य को कोई दुख विशेष नहीं होता। एक औंस ‘प्रतिभा’ हजारों मन ‘पसंद’ से ज्यादा कीमती है। इसलिए राख के अन्दर छिपी हुई चिंगारी की तरह अपनी प्रतिभा को खोज निकालो।

📖 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1949 पृष्ठ 13


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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...