विषय-वासनाएँ मनुष्य के अधःपतन का प्रबल हेतु हैं और उनका त्याग उन्नति की एक आवश्यक शर्त है। वासनाओं की संतुष्टि उनकी तृप्ति से नहीं, बल्कि त्याग से होती है, जिसका प्रतिपादन समय रहते तक ही किया जा सकता है, जब तक शरीर में शक्ति और विवेक में बल होता है। समय चूक जाने पर तो यह और भी आततायी होकर तन, मन और आत्मा का हनन किया करती हैं।
कठिनाइयाँ वास्तव में कागज के शेर के समान होती हैं। वे दूर से देखने पर बड़ी ही डरावनी लगती हैं। उस भ्रमजन्य डर के कारण ही मनुष्य उन्हें देखकर भाग पड़ता है, पर जो एक बार साहस कर उनको उठाने के लिए तैयार हो जाता है, वह इस सत्य को जान जाता है कि कठिनाइयाँ जीवन की सहज प्रक्रिया का अंग होने के सिवाय और कुछ नहीं होतीं।
अच्छे लोगों को असफल, दुःखी या कष्ट झेलते समय हमें तुरन्त यह फैसला नहीं दे देना चाहिए कि अच्छाई का जमाना नहीं रहा। सफलता, सुख, स्वास्थ्य और सम्पन्नता आदि उपलब्धियाँ एक वैज्ञानिक रीति से काम करते हुए ही अर्जित की जा सकती हंै। इनमें चूक होते ही प्रकृति का न्याय, दण्ड अनिवार्य रूप से मिलता है, जिसमें बुरे व्यक्ति भी दुःख पाते हैं और अच्छे भी।
कठिनाइयाँ वास्तव में कागज के शेर के समान होती हैं। वे दूर से देखने पर बड़ी ही डरावनी लगती हैं। उस भ्रमजन्य डर के कारण ही मनुष्य उन्हें देखकर भाग पड़ता है, पर जो एक बार साहस कर उनको उठाने के लिए तैयार हो जाता है, वह इस सत्य को जान जाता है कि कठिनाइयाँ जीवन की सहज प्रक्रिया का अंग होने के सिवाय और कुछ नहीं होतीं।
अच्छे लोगों को असफल, दुःखी या कष्ट झेलते समय हमें तुरन्त यह फैसला नहीं दे देना चाहिए कि अच्छाई का जमाना नहीं रहा। सफलता, सुख, स्वास्थ्य और सम्पन्नता आदि उपलब्धियाँ एक वैज्ञानिक रीति से काम करते हुए ही अर्जित की जा सकती हंै। इनमें चूक होते ही प्रकृति का न्याय, दण्ड अनिवार्य रूप से मिलता है, जिसमें बुरे व्यक्ति भी दुःख पाते हैं और अच्छे भी।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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