शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

👉 कर्ज से छुटकारा पाना ही ठीक है। (भाग ३)

उधार लेते समय प्रायः सभी यह सोचते हैं कि फसल की अच्छी कमाई होगी, बीमा पॉलिसी मिलेगी, मकान का किराया आवेगा या प्राविडेण्ट फण्ड का पैसा मिलेगा तब आसानी से इसे अदा कर देंगे। यह सोचकर लोग शादी-विवाह, मृतक संस्कार, भोज या अन्य किसी आवश्यकता के लिये कर्ज ले लेते हैं। अदायगी के समय तक सूद ही बहुत बढ़ जाता है, फिर उस समय भी तो खर्चे बने रहते हैं अतः. देने में बड़ी कठिनाई आती है। इस तरह ऋणी और साहूकार के आपसी सम्बन्ध भी खराब होते हैं, और देने वालों की कमाई का वह भाग व्यर्थ ही चला जाता है जिससे परिवार के अन्य सदस्यों के विकास में सहायता मिल सकती थी।

सूद के रूप में दिया जाने वाला पैसा एक तरह का अपने परिजनों की प्रगति पर आघात है। जेवर या जमीन रखकर लिया गया पैसा भी अपराध ही है क्योंकि इनके बदले में ली गई मूल रकम तो चुकानी ही पड़ती है, ब्याज भी देना पड़ता है और इन वस्तुओं का उपयोग भी कुछ नहीं हो पाता। कुछ दिन कठिनाइयों को सहन कर लेना या जेवर बेच देना कर्ज लेन से कहीं अधिक अच्छा है क्यों कि इससे हमारा नैतिक साहस ऊँचा उठा रहता है और सूद पर अकारण जाने वाला धन भी बच जाता है।

ऋण मनुष्य की खर्चीली प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देता है। चोरी, बेईमानी, जुआ, सट्टा आदि से ग्रसित लोगों को प्रायः ऋणी देखा जाता है क्योंकि इन लोगों को धन बेरोक टोक खर्च करने का स्वभाव हो जाता है। इससे विलासिता बढ़ती है और लोग पूर्व संचित संपत्ति भी गँवा देते है। ऋण के फेर में फँस कर धनी, सेठ, साहूकार तक अपनी बड़ी-बड़ी दुकानें, मकान आदि गँवा कर निर्धन हो जाते हैं। उदारता वश किसी की सहायता करके उसे आर्थिक धन्धा दे देना दूसरी बात है किन्तु ऋण लेने देने की आदत को व्यवसायिक रूप देना सदैव ही घातक होता है। अधिकाँश मध्यम वर्ग के लोगों में यह बुरी लत पड़ जाती है। अपने को ऊँचा करने के लिए सीमित साधनों से आगे बढ़ने का प्रयत्न करना ही कर्ज का कारण बन जाता है। लोग यह समझते हैं कि अमुक कार्य इस ढंग का नहीं होगा तो दूसरे व्यक्ति अपमानित करेंगे, छोटा समझेंगे। अपनी हेठी न हो इसी कायरता के कारण लोग आर्थिक परतन्त्रता स्वीकार कर लेते हैं। किन्तु यह एक मामूली सी समस्या है, लोग अपनी औकात के अनुसार खर्च की मर्यादा बनाये रहें तो ऋण लेने की समस्या कभी भी सामने न आये।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1966 पृष्ठ 45

👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ८5)

👉 पंचशीलों को अपनाएँ, आध्यात्मिक चिकित्सा की ओर कदम बढ़ाएँ

आध्यात्मिक स्वास्थ्य का अर्थ समझें- आध्यात्मिक चिकित्सा की ओर बढ़ाएँ कदम! यही वह दैवी सन्देश है- जिसे इस समय अन्तस् सुना रहा है। हिमालय की हवाओं ने जिसे हम सबके लिए भेजा है। नवरात्रि के पवित्र पलों में इसी की साधना की जानी है। भगवती महाशक्ति से यही प्रार्थना की जानी है कि हम सभी आध्यात्मिक स्वास्थ्य का अर्थ और मर्म समझ सकें। और भारत देश फिर से आध्यात्मिक चिकित्सा में अग्रणी हो। इसी सन्देश को ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान की रजत जयंती के अवसर पर जन- जन को सुनाया जाना है। क्योंकि स्वास्थ्य किसी एक की समस्या नहीं है। अकेले अपने महादेश भारत में ही नहीं- सम्पूर्ण विश्व के कोटि- कोटि जन इससे ग्रसित हैं। सच तो यह है कि जो अपने को स्वस्थ कहते हैं, वे भी किसी न किसी रूप में बीमार हैं।

जिनका तन ठीक है, उनका मन बीमार है। आध्यात्मिक स्वास्थ्य के अर्थ से प्रायः सभी अपरिचित हैं। हालांकि इसका परिचय- इसकी परिभाषा इतनी ही है कि तन और मन ही नहीं हमारी जीवात्मा भी अपने स्व में स्थित हो। हमारी आत्म शक्तियाँ जीवन के सभी आयामों से अभिव्यक्त हों। हम भगवान् के अभिन्न अंश हैं यह बात हमारे व्यवहार, विचार व भावनाओं से प्रमाणित हो। यदि ऐसा कुछ हमारी अनुभूतियों में समाएगा तभी हम आध्यात्मिक स्वास्थ्य का सही अहसास कर पाएँगे। इसी के साथ हमारे- हम सबके कदम साहसिक साधनाओं की ओर बढ़ने चाहिए। तभी हम आध्यात्मिक चिकित्सा की ओर बढ़ सकते हैं और भविष्य में आध्यात्मिक चिकित्सक होने का गौरव पा सकते हैं।

बात जब आध्यात्मिक चिकित्सा की चलती है तो इसे कतिपय क्रियाओं- कर्मकाण्डों व प्रयोगों तक सीमित मान लिया जाता है। और आध्यात्मिक जीवन दृष्टि की अपेक्षा- अवहेलना की जाती है। इस अवहेलना भरी अनदेखी के कारण ये कर्मकाण्ड और प्रयोग थोड़े ही समय में अपने प्रभाव का प्रदर्शन करके किसी अंधियारे में समा जाते हैं। इस सच को हर हालत में समझा जाना चाहिए कि आध्यात्मिक जीवन दृष्टि ही सभी आध्यात्मिक उपचारों व प्रयोगों की ऊर्जा का स्रोत है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। इसी वजह से जो अध्यात्म चिकित्सा के सिद्धान्तों व प्रयोगों के विशेषज्ञ व मर्मज्ञ हैं उन्होंने पाँच सूत्रों को अपनाने की बात कही है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ ११९

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...