🔷 यह संसार कर्मभूमि है। कर्म और निरन्तर कर्म ही सिद्धि एवं समृद्धि की आधारशिला है। कर्मवीर, कर्मयोगी तथा कर्मठ व्यक्ति कितनी ही निम्न स्थिति और पिछड़ी हुई अवस्था में क्यों न पड़ा हो, आगे बढ़कर परिस्थितियों को परास्त कर अपना निर्दिष्ट स्थान प्राप्त कर ही लेता है। उठिये अपना लक्ष्य प्राप्त करके दिशा देखिए कि वह किधर आपकी प्रतीक्षा कर रही है। यह मानकर जीवन पथ पर अभियान कीजिए कि आप एक महापुरुष हैं, आपको अपने अनुरूप, अपने चरित्र के बल पर समाज में अपना स्थान बना ही लेना है।
🔶 आत्म अवमूल्यन आत्महत्या जैसी क्रिया है। जो लोग आवश्यकता से अधिक दीन-हीन, क्षुद्र और नगण्य बनकर समाज में अपनी विनम्रता और शिष्टता की छाप छोड़ना चाहते हैं और आशा करते हैं कि इस आधार पर यश मिलेगा, वे मूर्खों के स्वर्ग में विचरण करते हैं।
🔷 मुसीबतें दरअसल बोझ नहीं, संकेत हैं जो आत्म विकास का दिशा निर्देश करती हैं। इन संकेतों को समझना और उनसे लाभ उठाना ही मनुष्य की बुद्धिमानी है। यदि इतनी कला मनुष्य को आ जाय तो कठिनाई से बड़ा देवता नहीं, विपत्ति से बढ़कर हितैषी नहीं।
🔶 आत्म अवमूल्यन आत्महत्या जैसी क्रिया है। जो लोग आवश्यकता से अधिक दीन-हीन, क्षुद्र और नगण्य बनकर समाज में अपनी विनम्रता और शिष्टता की छाप छोड़ना चाहते हैं और आशा करते हैं कि इस आधार पर यश मिलेगा, वे मूर्खों के स्वर्ग में विचरण करते हैं।
🔷 मुसीबतें दरअसल बोझ नहीं, संकेत हैं जो आत्म विकास का दिशा निर्देश करती हैं। इन संकेतों को समझना और उनसे लाभ उठाना ही मनुष्य की बुद्धिमानी है। यदि इतनी कला मनुष्य को आ जाय तो कठिनाई से बड़ा देवता नहीं, विपत्ति से बढ़कर हितैषी नहीं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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