🔸 जिन्दगी को ठीक तरह से जीने के लिए एक ऐसे साथी की आवश्यकता रहती है जो पूरे रास्ते हमारे साथ रहे, प्यार करे, सलाह दे और सहायता की शक्ति तथा भावना दोनो से ही सम्पन्न हो। ऐसा साथी मिल जाने पर जिन्दगी की लम्बी मन्जिल बड़ी हंसी-खुशी और सुविधा के साथ पूरी हो जाती है ।अकेले चलने में यह रास्ता भारी हॊ जाता है और कठिन प्रतीत होता है। ऐसा सबसे उपयुक्त साथी जो निरन्तर, मित्र, सखा, सेवक, गुरू, सहायक की तरह हर घड़ी प्रस्तुत रहे और बदले में कुछ भी प्रत्युपकार न मांगे, केवल एक ईश्वर को जीवन का सहचर बना लेने से मंजिल इतनी मंगलमय हो जाती है कि धरती ही ईश्वर के स्वर्गलोक जैसी आनन्दलोक प्रतीत होने लगती है। यों ईश्वर सबके साथ है और वह सबकी सहायता भी करता है पर जॊ उसे समझते और देखते हैं, वास्तविक लाभ उन्हें ही मिल पाता है।
🔹 डरता वह है जिसे ईश्वर का डर नहीं होता। जो ईश्वर से डरता है , उसके आदेशों का उल्लंघन नहीं करता, उसे संसार में किसी से भी डरना नहीं पड़ता। संसार की हर वस्तु से डरने और सशंकित रहने का एक ही कारण है, ईश्वर से न डरना, उसकी अवज्ञा करना, जो ऐसा नहीं करते, उसे अपना मित्र, सहायक और मार्गदर्शक मानते हैं उन्हें सबसे पहला उपहार निर्भयता का प्राप्त हॊता है, उन्हें फ़िर किसी से भी डरना नहीं पड़ता, आपत्तियाँ उसे खिलवाड़ दीखती हैं।
🔸 विपन्नता की स्थिति में धैर्य न छोड़ना, मानसिक संतुलन नष्ट न होने देना, आशा ,पुरुषार्थ को न छोड़ना आस्तिकता का प्रथम चिन्ह है। जिसे परमात्मा जैसी अनन्त सत्ता के साथ बैठने का सौभाग्य प्राप्त है वह किसी भी व्यक्ति या परिस्थिति से क्यों डरेगा? क्यों अधीर होगा? क्यों निराशा और कातरता प्रकट करेगा? धैर्य और साहस की अजस्र धारा उसके मन: क्षेत्र में उठती ही रहनी ही चाहिए।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य