सोमवार, 13 मई 2019

👉 आज का सद्चिंतन Today Thought 13 May 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग Pakshpaat Nahi Kare 13 May 2019


👉 जीवन साधना के त्रिविध पंचशील (भाग 1)

साधना चाहे घर पर की जाय अथवा एकान्तवास में रहकर, मनःस्थिति का परिष्कार उसका प्रधान लक्ष्य होना चाहिए। साधना का अर्थ यह नहीं कि अपने को नितान्त एकाकी अनुभव कर वर्तमान तथा भावी जीवन को नहीं, मुक्ति- मोक्ष को, परलोक को लक्ष्य मानकर चला जाय। साधना विधि में चिन्तन क्या है, आने वाले समय को साधक कैसा बनाने और परिष्कृत करने का संकल्प लेकर जाना चाहता है, इसे प्रमुख माना गया है। व्यक्ति, परिवार और समाज इन तीनों ही क्षेत्रों में बँटे जीवन सोपान को व्यक्ति किस प्रकार परिमार्जित करेंगे, उसकी रूपरेखा क्या होगी, इस निर्धारण में कौन कितना खरा उतरा इसी पर साधना की सफलता निर्भर है।

कल्प साधना में भी इसी तथ्य को प्रधानता दी गयी है। एक प्रकार से यह व्यक्ति का समग्र काया कल्प है, जिसमें उसका वर्तमान वैयक्तिक जीवन, पारिवारिक गठबंधन तथा समाज सम्पर्क तीनों ही प्रभावित होते हैं। कल्प साधकों को यही निर्देश दिया जाता है कि उनके शान्तिकुञ्ज वास की अवधि में उनकी मनःस्थिति एकान्त सेवी, अन्तर्मुखी, वैरागी जैसी होनी चाहिए। त्रिवेणी तट की बालुका में माघ मास की कल्प साधन फूस की झोपड़ी में सम्पन्न करते हैं। घर परिवार से मन हटाकर उस अवधि में मन को भगवद् समर्पण में रखते हैं। श्रद्धा पूर्वक नियमित साधना में संलग्न रहने और दिनचर्या के नियमित अनुशासन पालने के अतिरिक्त एक ही चिन्तन में निरत रहना चाहिये, कि काया कल्प जैसी मनःस्थिति लेकर कषाय- कल्मषों की कीचड़ धोकर वापस लौटना है। इसके लिए भावी जीवन को उज्ज्वल भविष्य की रूपरेखा निर्धारित करने का ताना- बाना बुनते रहना चाहिये।

व्यक्ति, परिवार और समाज के त्रिविध क्षेत्रों में जीवन बंटा हुआ हैं, इन तीनों को ही अधिकाधिक परिष्कृत करना इन दिनों लक्ष्य रखना चाहिये। इस सन्दर्भ में त्रिविध पंचशीलों के कुछ परामर्श क्रम प्रस्तुत हैं। भगवान बुद्ध ने हर क्षेत्र के लिए पंचशील निर्धारित किये थे।

.....क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...