शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा हेतु जिस प्रकार पथ्य और परहेज अत्यावश्यक है, उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के हेतु सद्विचार और आत्म-संयम हैं। मानसिक स्वास्थ्य का आनंद कहकर नहीं बताया जा सकता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, शोक, अहंकार, घृणा आदि मनोविकारों से रहित जब आपका मन अकारण ही स्वाभाविक रूप से प्रसन्न तथा शान्त रहता हो बस वही मन के स्वस्थ रहने की अवस्था है। क्या ऐसी सहज प्रसन्नता सदैव के लिए पा लेना वांछनीय नहीं है?
प्रशंसा और यश के लिए अधिक उत्सुक न रहिए, क्योंकि यदि आप प्रतिभावान हैं, तो आपको बढ़ने से कोई भी आलोचना नहीं रोक सकेगी। दूसरे की आलोचना को आंतरिक सच्ची प्रेरणा के सम्मुख कोई महत्त्व न दीजिए, वरन् जितनी भी आलोचना हो उससे दुगुनी इच्छा शक्ति लगाकर कार्य को आगे बढ़ाते चलिए।
ईश्वर सर्वत्र है, इसका यह गलत अर्थ नहीं लगा लेना चाहिए कि जहाँ जो कुछ भी हो रहा है ईश्वर की इच्छा से हो रहा है। बुराइयाँ, बुरे काम, ईश्वर की इच्छा से कदापि नहीं होते। पाप कर्म तो मनुष्य अपनी स्वतंत्र कर्तृत्व शक्ति का दुरुपयोग करके करते हैं। इस दुरुपयोग का नाम ही शैतान है। शैतान की सत्ता को हटाकर ईश्वरीय सत्ता को प्रकाश में लाना यह मनुष्य मात्र का धर्म है।
प्रशंसा और यश के लिए अधिक उत्सुक न रहिए, क्योंकि यदि आप प्रतिभावान हैं, तो आपको बढ़ने से कोई भी आलोचना नहीं रोक सकेगी। दूसरे की आलोचना को आंतरिक सच्ची प्रेरणा के सम्मुख कोई महत्त्व न दीजिए, वरन् जितनी भी आलोचना हो उससे दुगुनी इच्छा शक्ति लगाकर कार्य को आगे बढ़ाते चलिए।
ईश्वर सर्वत्र है, इसका यह गलत अर्थ नहीं लगा लेना चाहिए कि जहाँ जो कुछ भी हो रहा है ईश्वर की इच्छा से हो रहा है। बुराइयाँ, बुरे काम, ईश्वर की इच्छा से कदापि नहीं होते। पाप कर्म तो मनुष्य अपनी स्वतंत्र कर्तृत्व शक्ति का दुरुपयोग करके करते हैं। इस दुरुपयोग का नाम ही शैतान है। शैतान की सत्ता को हटाकर ईश्वरीय सत्ता को प्रकाश में लाना यह मनुष्य मात्र का धर्म है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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