हमारे शरीर को नमस्कार करने वाली भीड़ को हमने लाखों की संख्या में इधर से उधर घूमते-फिरते देखा है, पर जिन्हें हमारे विचारों के प्रति श्रद्धा हो, ऐसे व्यक्ति बहुत थोड़े हैं। भीड़ को हम कौतूहल की दृष्टि से देखते हैं, पर आत्मीय केवल उन्हें ही समझते हैं, जो हमारे विचारों का मूल्यांकन करते हैं, उन्हें प्रेम करते और अपनाते हैं।
किसी भी संगठन का प्राण उसके आदर्शों में अटूट निष्ठा ही होती है। जब तक विचारों में एकता न होगी, आकाँक्षाओं और भावनाओं का प्रवाह एक दिशा में न होगा, तब तक संगठन में मजबूती असंभव है। आस्थावान् व्यक्ति ही युग निर्माण संगठन के रीढ़ हैं।
बुराइयाँ आज संसार में इसलिए बढ़ और फल-फूल रही हैं कि उनका अपने आचरण द्वाराप्रचार करने वाले सच्चे प्रचारक पूरी तरह मन, कर्म और वचन से बुराई करने और फैलाने वाले लोग बहुसंख्यक मौजूद हैं। अच्छाइयाँ आज इसलिए घट रही हैं, क्योंकि अच्छाइयों के प्रचारक आज निष्ठावान् नहीं बातूनी लोग ही दिखाई पड़ते हैं। फलस्वरूप बुराइयों की तरह अच्छाइयों का प्रसार नहीं हो पाता। वे पोथी के बैंगनों की तरह केवल कहने-सुनने भर की बातें रह जाती हैं।
किसी भी संगठन का प्राण उसके आदर्शों में अटूट निष्ठा ही होती है। जब तक विचारों में एकता न होगी, आकाँक्षाओं और भावनाओं का प्रवाह एक दिशा में न होगा, तब तक संगठन में मजबूती असंभव है। आस्थावान् व्यक्ति ही युग निर्माण संगठन के रीढ़ हैं।
बुराइयाँ आज संसार में इसलिए बढ़ और फल-फूल रही हैं कि उनका अपने आचरण द्वाराप्रचार करने वाले सच्चे प्रचारक पूरी तरह मन, कर्म और वचन से बुराई करने और फैलाने वाले लोग बहुसंख्यक मौजूद हैं। अच्छाइयाँ आज इसलिए घट रही हैं, क्योंकि अच्छाइयों के प्रचारक आज निष्ठावान् नहीं बातूनी लोग ही दिखाई पड़ते हैं। फलस्वरूप बुराइयों की तरह अच्छाइयों का प्रसार नहीं हो पाता। वे पोथी के बैंगनों की तरह केवल कहने-सुनने भर की बातें रह जाती हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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