रविवार, 6 अगस्त 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 6 Aug 2023

हमारे शरीर को नमस्कार करने वाली भीड़ को हमने लाखों की संख्या में इधर से उधर घूमते-फिरते देखा है, पर जिन्हें हमारे विचारों के प्रति श्रद्धा हो, ऐसे व्यक्ति बहुत थोड़े हैं। भीड़ को हम कौतूहल की दृष्टि से देखते हैं, पर आत्मीय केवल उन्हें ही समझते हैं, जो हमारे विचारों का मूल्यांकन करते हैं, उन्हें प्रेम करते और अपनाते हैं।

किसी भी संगठन का प्राण उसके आदर्शों में अटूट निष्ठा ही होती है। जब तक विचारों में एकता न होगी, आकाँक्षाओं और भावनाओं का प्रवाह एक दिशा में न होगा, तब तक संगठन में मजबूती असंभव है। आस्थावान् व्यक्ति ही युग निर्माण संगठन के रीढ़ हैं।

बुराइयाँ आज संसार में इसलिए बढ़ और फल-फूल रही हैं कि उनका अपने आचरण द्वाराप्रचार करने वाले सच्चे प्रचारक पूरी तरह मन, कर्म और वचन से बुराई करने और फैलाने वाले लोग बहुसंख्यक मौजूद हैं। अच्छाइयाँ आज इसलिए घट रही हैं, क्योंकि अच्छाइयों के प्रचारक आज निष्ठावान् नहीं बातूनी लोग ही दिखाई पड़ते हैं। फलस्वरूप बुराइयों की तरह अच्छाइयों का प्रसार नहीं हो पाता। वे पोथी के बैंगनों की तरह केवल कहने-सुनने भर की बातें रह जाती हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 अहंकार अपने ही विनाश का एक कारण (भाग ४)

अकारण अहंकार करने वाले व्यक्ति तो एक प्रकार से अभागे ही होते है। वे अपनी इस अहैतुक विषाग्नि में यों ही जलते रहते है। कोई शक्ति नहीं, कोई सम्पत्ति नहीं, कोई पुरुषार्थ नहीं तब भी शिर पर दम्भ का भार लिए फिरते है। बात बात में ऐंठते रहते है, बात बात में जान बधारते है- ऐसे निरर्थक अहंकारी पग-पग पर असहनीय और तिरस्कार पाते रहते है। अपनी सीमित परिधि में ही जिस पिटकर नष्ट हो जाते हैं न शाँति पा पाते है, और न सन्तोष योग्य कोई स्थिति। विस्तार व्यक्तियों का अहंकार न केवल विकार ही होता है, बल्कि वह एक रोग भी होता है, जो जीवन के विकास पर धरना देकर बैठ जाता है सारी प्रगतियों के द्वार बन्द कर देता है।

इसी प्रकार के निस्तार अहंकारी प्रायः अपराधी बन जाया करते है। प्रगति तो उनकी अपने इस रोग के कारण नहीं होती है और दोश ये समाज के मत्थे मड़ा करते हैं। बुद्धि भ्रम के कारण क्रोध करते हैं और संघर्ष उत्पन्न कर उसमें फँस जाते है। ऐसे अहंकारियों की कामनायें बड़ी चढ़ी होती हैँ, उनकी पूर्ति की क्षमता होती नहीं, वही निदान अपराध पथ पर बढ़ जाया करते है। अकारण अहंकार करने वाला व्यक्ति अपनी जितनी हानि किया करता है, उतनी शायद एक पागल व्यक्ति भी नहीं करता।

किन्तु साधन-सम्पन्न व्यक्ति भी अहंकार की आग में भस्म हुए बिना नहीं रहते। साधनहीन व्यक्ति यदि अहंकार को प्रश्रय देता है तो उसकी हानि उसकी भावी उन्नति की सम्भावना तक ही सीमित रहती है। पर साधन सम्पन्न व्यक्ति जब अहंकार को ग्रहण करता है, तब उसका भविष्य तो भयानक बनता ही है, वर्तमान भी ध्वस्त हो जाता है। इस दोष के कारण समाज का असहयोग होते ही सारे रास्ते बन्द हो जाते है। सम्पत्ति निकम्मी होकर पड़ी रहती है, किसी काम नहीं आती। सम्पत्ति की सक्रियता भी तो समाज के सहयोग पर ही निर्भर रहती है। जब समाज का सहयोग ही उठ जायेगा तो सम्पत्ति ही क्या काम बना सकती है? जीवन में आयात का मार्ग बन्द होते ही निर्यात आरम्भ हो जाता है, ऐसा नियम है। निदान धीरे धीरे सारी सम्पत्ति निकल जाती है। इस प्रकार वर्षों का संचय किया हुआ, अतीत का फल भी नष्ट हो जाता है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1969 जून पृष्ठ 59

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1969/June/v1.59


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