ईसा को अपराधी ठहराया और शूली पर लटकाया गया। सुकरात को जहर का प्याला पीना पड़ा। दयानन्द को विष दिया गया। गाँधी को गोली से उड़ाया गया। व्याध ने कृष्ण के प्राण हरण किये। गुरु गोविंद सिंह के अबोध बालकों को जल्लादों के सुपुर्द किया गया। मीरा निर्दोष होते हुए भी उत्पीड़न सहती रहीं। जहाँ तक अपराधों, आक्रमणों और प्रताड़नाओं का सम्बन्ध हैं वहाँ तक जो जितना उच्चस्तरीय आत्मवेत्ता हुआ है उसे उतना ही अधिक भार सहन करना पड़ा है। भगवान बुद्ध की जीवन गाथा पढ़ने से पता चलता है कि पुरातन पंथी और ईर्ष्यालु उनके प्राणघाती शत्रु बने हुए थे। उन्होंने अंगुलिमाल को आक्रमण के लिए उकसाया था। चरित्र हनन के लिए ढेरों दुरभिसंधियाँ रची थी। समर्थकों में अश्रद्धा उत्पन्न करने के लिए जो षड़यन्त्र रचे जा सकते थे उसमें कुछ कसर नहीं छोड़ी गई थी। गाँधी को विरोध होता रहा। उन पर पैसा बटोरने और हड़पने का लांछन लगाने वालों की संख्या आरम्भ में तो अत्यधिक थी, प्रताप बढ़ने के बाद ही वह घटने लगी थी। अन्ततः उन्हें गोली से ही उड़ा दिया गया। मध्यकाल में सन्तों में से प्रायः प्रत्येक को शत्रुओं की प्रताड़नाएं सहनी पड़ी हैं। आद्य शंकराचार्य, चैतन्य महाप्रभु, नामदेव, एकनाथ, तुकाराम, ज्ञानेश्वर, रामदास, गुरु गोविंदसिंह, बन्दा वैरागी आदि इसके जी-जागते प्रमाण हैं।
संसार के सुधारकों में प्रत्येक को प्रायः ऐसे ही आक्रमण न्यूनाधिक मात्रा में सहने पड़े है। संगठित अभियानों को नष्ट करने के लिए कार्यकर्त्ताओं में फूट डालने, बदनाम करने, बल प्रयोग से आतंकित करने, जैसे प्रयत्न सर्वत्र हुए है। ऐसा क्यों होता है यह विचारणीय हैं। सुधारक पक्ष को अवरोधों का सामना करने पर उनकी हिम्मत टूट जाने, साधनों के अभाव से प्रगति क्रम शिथिल या समाप्त हो जाने जैसे प्रत्यक्ष खतरे तो हैं, किन्तु परोक्ष रूप से इसके लाभ भी बहुत हैं। व्यक्ति की श्रद्धा एवं निष्ठा कितनी सच्ची और कितनी ऊँची हैं इसका पता इसी कसौटी पर कसने से लगता हैं कि आदर्शों का निर्वाह कितनी कठिनाई सहन करने तक किया जाता रहा। अग्नि तपाये जाने और कसौटी पर कसे जाने से कम में, सोने के खरे-खोटे होने का पता चलता ही नहीं। आदर्शों के लिए बलिदान से ही महा-मानवों की अन्तःश्रद्धा परखी जाती है और उसी अनुपात से उनकी प्रामाणिकता को लोक-मान्यता मिलती हैं। जिसे कोई कठिनाई नहीं सहनी पड़ी ऐसे सस्ते नेता सादा सन्देह और आशंका का विषय बने रहते हैं। श्रद्धा और सहायता किसी पर कभी पर तभी बरसती हैं जब वह अपनी निष्ठा का प्रभाव प्रतिकूलताओं से टकरा कर प्रस्तुत करता हैं।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति अगस्त 1979 पृष्ठ 53
संसार के सुधारकों में प्रत्येक को प्रायः ऐसे ही आक्रमण न्यूनाधिक मात्रा में सहने पड़े है। संगठित अभियानों को नष्ट करने के लिए कार्यकर्त्ताओं में फूट डालने, बदनाम करने, बल प्रयोग से आतंकित करने, जैसे प्रयत्न सर्वत्र हुए है। ऐसा क्यों होता है यह विचारणीय हैं। सुधारक पक्ष को अवरोधों का सामना करने पर उनकी हिम्मत टूट जाने, साधनों के अभाव से प्रगति क्रम शिथिल या समाप्त हो जाने जैसे प्रत्यक्ष खतरे तो हैं, किन्तु परोक्ष रूप से इसके लाभ भी बहुत हैं। व्यक्ति की श्रद्धा एवं निष्ठा कितनी सच्ची और कितनी ऊँची हैं इसका पता इसी कसौटी पर कसने से लगता हैं कि आदर्शों का निर्वाह कितनी कठिनाई सहन करने तक किया जाता रहा। अग्नि तपाये जाने और कसौटी पर कसे जाने से कम में, सोने के खरे-खोटे होने का पता चलता ही नहीं। आदर्शों के लिए बलिदान से ही महा-मानवों की अन्तःश्रद्धा परखी जाती है और उसी अनुपात से उनकी प्रामाणिकता को लोक-मान्यता मिलती हैं। जिसे कोई कठिनाई नहीं सहनी पड़ी ऐसे सस्ते नेता सादा सन्देह और आशंका का विषय बने रहते हैं। श्रद्धा और सहायता किसी पर कभी पर तभी बरसती हैं जब वह अपनी निष्ठा का प्रभाव प्रतिकूलताओं से टकरा कर प्रस्तुत करता हैं।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति अगस्त 1979 पृष्ठ 53