मंगलवार, 28 नवंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 28 Nov 2023

🔶 बुराई, भ्रष्टाचार, अपराधों के सम्बन्ध में हमारी शिकायतें दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। प्रतिदिन एक बँधे हुए ढर्रे की तरह हम नित्य ही इस सम्बन्ध में टीका टिप्पणी करते हैं, तरह-तरह की आलोचनायें करते हैं। कभी सरकार को दोष देते हैं तो कभी प्रशासन व्यवस्था की छीछालेदार करते हैं। कभी किन्हीं व्यक्तियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। इस तरह की शिकायतें एक सामान्य व्यक्ति से लेकर उच्च-स्थिति के लोगों तक से भी सुनी जा सकती हैं। इनमें बहुत कुछ ठीक भी हो सकती हैं। लेकिन कभी हमने यह भी सोचा है कि इनके लिए हम स्वयं कितने जिम्मेदार हैं।

🔷 बुराइयों को मिटाने के लिए हमारा सर्व-प्रथम कर्तव्य है-हम दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार न करें, जिसे हम स्वयं अपने लिए न चाहते हों। भगवान मनु ने इसी तथ्य का प्रतिपादन करते हुए अपनी प्रजा को बताया था- “आत्मनः प्रतिकूलिति परेषाँ न समाचरेत्” जिस बात को तुम अपने लिए नहीं चाहते, उसे दूसरों के लिए मत करो।

🔶 स्मरण रहे, सहज मौन ही हमारे ज्ञान की कसौटी है। “जानने वाला बोलता नहीं और बोलने वाला जानता नहीं।” इस कहावत के अनुसार जब हम सूक्ष्म रहस्यों को जान लेते हैं तो हमारी वाणी बन्द हो जाती है। ज्ञान की सर्वोच्च भूमिका में सहज मौन स्वयमेव पैदा हो जाता है। स्थिर जल बड़ा गहरा होता है। उसी तरह मौन मनुष्य के ज्ञान की गम्भीरता का चिन्ह है। वाचालता पांडित्य की कसौटी नहीं है, वरन् गहन गम्भीर मौन ही मनुष्य के पण्डित, ज्ञानी होने का प्रमाण है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 उपासना और आत्म-निरीक्षण

मित्रो ! उपासना का तात्पर्य अपने आपको महानता के आदर्श के अधिकाधिक निकट लाना तथा आग और ईधन की तरह तादात्म्य स्थापित कर लेना है। साधना का तात्पर्य है संचित कुसंस्कारों और कषाय-कल्मषों की छाती पर चढ़ बैठना, उन्हें बेरहमी के साथ कुचल-मसल कर रख देना। इंद्रिय संयम, समय संयम, अर्थ संयम और विचार संयम की चतुर्विध तपश्चर्या के सहारे ही जीवन की वरिष्ठïता उभरती है और उस आत्मबल का उदय होता है जिसे संसार का सबसे बड़ा सामर्थ्य स्त्रोत कहा जाता है। आराधना वह है जिसमें 'आत्मवत् सर्वभूतेषु की, 'वसुधैव कुटुंबकम् की अनुभूति होती है। उपासना, साधना और आराधना का अवलंबन करके ही कोई वास्तविक आत्मिक प्रगति कर सका है। आत्मिक प्रगति का वास्तविक मार्ग एक ही है समूची जीवन- चर्या में उत्कृष्टता का समावेश। जिसने यह समझ लिए उसने अध्यात्म का सारतत्व समझ लिया।

मित्रो ! आत्म-निरीक्षण करके गुण, कर्म, स्वभाव में भरे हुये दोष दुर्गुणों को ढूंढा जा सकता है और उन्हें निरस्त करने का प्रयास आरम्भ किया जा सकता है। लोहे से लोहा कटता है और विचारों से विचारों की काट की जाती है। हेय आदतें, इच्छायें और मान्यतायें जो अपने मन: क्षेत्र में जड़ जमाये बैठी हों, उन्हें आत्म- निरीक्षण की टार्च जलाकर बारीकी से तलाश करना चाहिए और निश्चय करना चाहिए कि उनका उन्मूलन करके ही रहेंगे। प्रत्येक निकृष्टï विचार के विरोधी विचारों की एक सुसज्जित सेना खड़ी करनी चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...